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Saturday 17 February 2018

मन तन्हाई से बतिया कर बुद्ध हुआ है

जहन संग यादों का जब से युद्ध हुआ है
मन तन्हाई से बतिया कर बुद्ध हुआ है

जितना भी रोये हिज़्र में उनका नाम ले
इस रुह का कोना कोना शुद्ध हुआ है

मुमकिन नहीं फिर से मिले इस जन्म में
मुलाकात का हर रास्ता अवरूद्ध हुआ है

औकात भूल जुर्मे चाहत किया जब से
हालात तब से मुझ पे बहुत क्रुद्ध हुआ है

दिल के बदले जिसने वज़ूद दिया बेचैन
इश्क का जर्रा जर्रा उसके विरूद्ध हुआ है

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