मत पूछो किसलिए आबे-जम पर लिखता हूँ
इक गजल रोजाना अपने गम पर लिखता हूँ
एक रोज़ तो जान जाऊंगा खारापन अश्को का
यही सोचकर मैं चश्मे-पुरनम पर लिखता हूँ
तेरे गेसू मेरी किस्मत दोनों उलझे-उलझे है
मैं इसीलिए तो जुल्फे- बरहम पर लिखता हूँ
दिल में सुलगे शोलो की रंजिस का राज यही
रोज़ सुबह अशआर मैं शबनम पर लिखता हूँ
ना सीखा ना फितरत में चोरी शामिल है बेचैन
जो भी लिखना होता है अपने दम पर लिखता हूँ
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