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Monday 9 January 2012

तेरी आँखें पढना छोड़ रहा हूँ

लो मैं तुमसे लड़ना छोड़ रहा हूँ
तेरी आँखें पढना छोड़ रहा हूँ

आज से खुशियाँ मनाओ जानेमन
अपनी जिद पर अड़ना छोड़ रहा हूँ

चुम्बन तंगदस्ती ना होगा माथे पर
मैं अब आगे बढना छोड़ रहा हूँ

कह दिया है मन ने तन्हाइयों को
दिन और रात झड़ना छोड़ रहा हूँ

जान गया प्यार पाप नही है बेचैन
अब मैं शर्म से गढना छोड़ रहा हूँ


1 comment:

Anonymous said...

Ati sunder.