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Sunday, 5 March 2017

आंगली धनुष के नीचे मेरी जद जद आई सै

आंगली धनुष के नीचे मेरी जद जद आई सै
अक्सर मर्द बणके हिम्मत मेरी मुस्कुराई सै

मैंने कई समुन्द्र पार कर दिए जोहड़ समझके
परिस्थितियां की काई मैंने जकड़ नही पाई सै

मेरे जद तै समझ आई सै जिंदगी अर दुनिया
उम्मीद मैंने दुसऱ्या तै फेर कम ए लगाई सै

उम्र और तज़ुर्बा नै जो दिया खुश होके लिया सै
कदे ओरां  की उपलब्धि पै नज़र नही गढ़ाई सै

देख लिए इसलिए होऊंगा मैं कामयाब बेचैन
क्योंकि कामयाब होण की मैंने कसम खाई सै



Monday, 20 February 2017

जिम्मेवारियों से जी चुराऊँ इतनी फुर्सत कहाँ है मुझे

जिम्मेवारियों से जी चुराऊँ इतनी फुर्सत कहाँ है मुझे
किसी को भी ठेस पहुंचाऊं इतनी फुर्सत कहाँ है मुझे

मन कस्तूरी गन्ध के पीछे कई जन्मों से भाग रहा हूँ
मैं मन्ज़िल से दगा कमाऊं इतनी फुर्सत कहाँ है मुझे

जिंदगी दोबारा न मिलेगी यह समझने के बावजूद भी
अपना हीरे सा जन्म गंवाऊं इतनी फुर्सत कहाँ है मुझे

अपने सुख की दुआओं में औरों का भी सुख मांगता हूँ
दुःख किसी का कभी बढाऊँ इतनी फुर्सत कहाँ है मुझे

कोई भी गलत मायने ना निकाले बेचैन मेरी बेचैनी के
मैं खुलकर सबको समझाऊँ इतनी फुर्सत कहाँ है मुझे










Monday, 5 October 2015

हमे महबूब से ज्यादा माँ की याद आती है

गुज़री हुई एक तिहाई जिंदगानी बताती है
हमे महबूब से ज्यादा माँ की याद आती है

खुदगर्ज़ी का अहसास जीवन की भागदौड़
हमसे आखरी साँस तक छूट नही पाती है

कौम मज़हब रबर के बने सियासती मुद्दे
इंसानियत इनमे चीखती है कुलबुलाती है

आंसूजल से पाक कोई भी दूसरा जल नही
जज्बात की नदियां अपना शोध बताती है

आरती किसी भी भी उतारो तो यूं उतारो
समझो बेचैन साँसे दीप है तो आँखे बाती है 

Wednesday, 22 July 2015

वाक्यात फन के सफर में हैरतंगेज़ आते रहे

मैं करता रहा मेहनत लोग जुगाड़ भिड़ाते रहे
वाक्यात फन के सफर में हैरतंगेज़ आते रहे

 बेईमानी करती रही रेप रोज ईमानदारी का
लोग उसी को किस्मत का लिखा बताते रहे

हालांकि लहू लुहान रहा मेरा वज़ूद उम्र भर
मगर जीना था हम इसलिए मुस्कुराते रहे

जहर महज़ब का था उन दोनों के ही मन में
जो झूठी राम अल्लाह की कसम खाते रहे

एक दो यारो ने रखी लब्ज़े यारी की लाज
बाकि अहसास तो हमे मुह ही चिढ़ाते रहे

यही दुनिया है तो ये दुनिया कुछ भी नही
क्या मतलब हुआ लोग आते रहे जाते रहे

वही लोग है बेचैन आज जनाजे के साथ
हम जीते जी जिन पर उम्मीदे लुटाते रहे

Saturday, 11 July 2015

फूलती सांसे करे इशारा जिस्म तो सबका मिट्टी है

रूहें लगा रही है नारा जिस्म तो सबका मिट्टी  है
क्या मेरा और क्या तुम्हारा जिस्म तो सबका मिटटी है

रिश्ते नाते प्यार महोब्बत और न जाने क्या क्या बंधन
लालच की हदो ने पुकारा जिस्म तो सबका मिट्टी है

दौलत शौहरत आदमी मौत पर काबू पा नही सकते
फूलती सांसे करे इशारा जिस्म तो सबका मिट्टी है

नाराजगी वक्त का नही नुक्सान जन्म का कर रही है
तू क्यूँ जिद्द करता है यारा जिस्म तो सबका मिट्टी है

कौन इतना दीवाना बेचैन मरे हुवो से लाड करे
जीते जी का झगड़ा सारा जिस्म तो सबका मिट्टी है
वी एम बेचैन भिवानी 9034741834

Thursday, 9 July 2015

रंजिशें साथ में रहकर भी तो कर सकते थे

रंजिशें साथ में रहकर भी तो कर सकते थे
हम मांगते प्यार और तुम मुकर सकते थे

तुम अगर चाहते तो आज के सड़ते ज़ख्म
नासूर नही बनते उन्ही दिनों भर सकते थे

जब हमारा वज़ूद तलक तेरे पास गिरवी था
करके कलम कदमो में सर भी धर सकते थे

इतना मुश्किल भी नही था बैठकर आपस में
हम गलतफहमियों के दौर से उभर सकते थे

लिखते तुम भी अगर बेचैन किताबे महोब्बत
तुम्हारे हमारी तरह जज्बात निखर सकते थे 

Tuesday, 7 July 2015

मैं उन्ही को चाहता हूँ जो मुझको चाहते है

मैं उन्ही को चाहता हूँ जो मुझको चाहते है
वरना बाकी लोग तो जानकारों में आते है

रिश्ते हो या पौधे हम लगाकर छोड़ दे तो
न संभालने की सूरत में वो सूख जाते है

किरदार की फालतू नुमाइश ना कर दोस्त
आप क्या है ये आपके संस्कार बताते है

क़र्ज़ मांगते है हमसे जो पिछले जन्म का
वो किसी न किसी बहाने जरूर टकराते है

आधी रात को मदद का दावा करने वाले
दिन के उजालो में मज़बूरियां गिनवाते है

मत परदेश में कमाने भेज मुझे तकदीर
बच्चे मेरे अभी बहुत जियादा तुतलाते है

इबादत हो जाती है जिनकी महोब्बत बेचैन
वो जीते जी किसी को भूल नही पाते है

Monday, 6 July 2015

झूठी हां में हां कभी मिलाता नही हूँ



झूठी हां में हां कभी मिलाता नही हूँ 
मैं इसलिए हर एक को भाता नही हूँ 

लड़ाईयां क्यूँ लड़ूं मैं हरेक तबके की 
आदमी हूँ अदना सा विधाता नही हूँ 

ख़ामोशी से लगा हूँ अपने मकसद में 
ये करूंगा वो करूंगा चिल्लाता नही हूँ 

आज बेशक बिरादरी संग नही है मेरे 
यह अफ़सोस मैं कभी मनाता नही हूँ 

जिनपे बहस का कोई अर्थ नही होता  
मैं मसले वो कभी भी उठाता नही हूँ 

जो दिल में भी एक दिमाग रखते है 
मैं उन लोगो के समझ आता नही हूँ 

हाँ थोड़ा बहुत बेचैन कमीना हूँ मैं भी 
नाता ख़ुदग़र्ज़ो के संग निभाता नही हूँ 

Sunday, 5 July 2015

यूं सबके दर्द को अपनी आह ना दो

यूं सबके दर्द को अपनी आह ना दो
पछताओगे बिन मांगे सलाह ना दो

वक्त के साथ मिटती है तो मिटने दो
धुंधली यादों को ज्यादा पनाह ना दो

अब तो ख्यालों की चोरी खूब होती है
हर शेर पर नए शायर को वाह ना दो

कुछ वज़ूद के लिए भी बचाकर रखो
अपने मन की कभी सारी थाह ना दो

जैसे की अधेड़ उम्र की महोब्बत बेचैन
कदमो को बिन मंज़िल की राह ना दो