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Tuesday, 13 September 2011

सोचता हूँ कई दफा फुर्सत में बैठकर



सोचता हूँ कई दफा फुर्सत में बैठकर
तेरा प्यार तेरी यादें होती ना अगर
फिर किसके सहारे जिंदगी जीते हम
चलता धडकनों के संग किसका गम

आँखों में तस्वीर किसकी बस्ती दोस्तों
मिट जाती आशिकों की हस्ती दोस्तों
होता नही गर कहीं यादों का मौसम
फिर किसके सहारे ..................

हुश्न की भी फिर कोई तारीफ ना करता
यहाँ एक हंसी के लिए ना कोई मचलता
बनाता नही गर किसी को कोई हमदम
फिर किसके सहारे ........................

हर खूबसूरत शै भी बेकार सी लगती
रात भर आँखें ना किसी के लिए जगती
वजूद ढूंढ़ती फिरती फिर अपना शबनम
फिर किसके सहारे ............................

वो दर्द मीठा-मीठा फिर आता कहाँ से
आहों का अहसास हमें सुहाता कहाँ से
बेचैन होकर ना कोई खाता फिर कसम
फिर किसके सहारे .........................



Monday, 12 September 2011

इक सनक सी दिखी बातों में उसकी



वो पास होकर भी मेरे पास नही लगा
न जाने क्यूं दिल को ख़ास नही लगा
बेशक से बढ़ी धडकने देखकर उसको
अपनेपन का पर अहसास नही लगा
इक सनक सी दिखी बातों में उसकी
विचारों में खुला आकाश नही लगा
यूं ही परेशां थे उसके मुरीद और वो
व्यवहार में मुझे विश्वास नही लगा
शातिर नही होते दिमाग वाले बेचैन
जुमला ये वाकई बकवास नही लगा

Sunday, 11 September 2011

मर्दानगी से तर हो तो मैदान में आइये



आम आदमी होने का न मातम मनाइए
मर्दानगी से तर हो तो मैदान में आइये
सच में गर व्यवस्था बदलना चाहते हो
इन्कलाब का हिस्सा आप बन जाइये
यूं ही साफ नही होगी काई तालाब की
मिल बैठकर विचार कोई आप बनाइए
गरूर गर हुआ है सूरज को रोशनी का
आइना आफ़ताब को मिलके  दिखाइए
गुस्सा हर बात पर अच्छा नही बेचैन
थोडा वक्त के सांचे में भी ढल जाइये



Friday, 9 September 2011

इश्क में दोनों का भला हो तो निपट ले



अकेले दिल का मामला हो तो निपट ले
इश्क में दोनों का भला हो तो निपट ले
जिक्र है दिमाग में मचती खलबली का
हिज्र कोई मामूली बला हो तो निपट ले
वही होता है जो भी तकदीर में लिखा है
कभी वार होनी का टला हो तो निपट ले
इश्क तो कर लेता है अब समझोते मगर
हुशन भी तजुर्बों में ढला हो तो निपट ले
इसलिए बेचैन हूँ मंजिल को लेकर दोस्त
मेरे पीछे कोई काफिला हो तो निपट ले

मेरे मित्र अरिहंत जैन के जन्मदिवस पर विशेष व्यापार हो या इश्क मुनाफा मिले बेचैन



खुशियाँ झूमे और आप सदा मुस्कुराये
जन्मदिन पर कोई शुभ संदेश घर आये
रंगीनी मिले बचपन से देखे ख्वाबों को
मन की मुराद हर हाल में पूरी हो जाये
मस्ती के सागर में गोते लगाये जिंदगी
कभी चाहके भी ना गम आपको छू पाए
कोई शख्स या कोई बात आँख में न चुभे
बस आपका भला चाहे वे अपने हो पराये 
व्यापार हो या इश्क मुनाफा मिले बेचैन
दुनिया में आप बेशक कही पर भी जाएँ

चुगली उसके जाने के बाद ना कर


बहाकर आंसू वक्त बर्बाद ना कर
भूलने वाले को तू भी याद ना कर
सौ फीसदी गूंगे बहरों का दौर है
बेकार किसी से फरियाद ना कर
बहाने उसके संजीदगी से लेकर
दर्द नया आये दिन इजाद ना कर
सरे बज्म कह दे जो भी कहना है
चुगली उसके जाने के बाद ना कर
हक मेरे हुनर का मुझे दे दे बेचैन
बेशक मेरी तू कोई इमदाद ना कर

Thursday, 8 September 2011

मेरे बेचैन होने का अफ़सोस न कर




नाम जब खुदा का लेने की सोची
रह रह कर आया ख्याल तुम्हारा
दिलों-दिमाग पर ये कैसा असर है
रूह पर बन है गया जाल तुम्हारा
कालेज के नये माहौल में जाकर
बताओ कैसा बीता साल तुम्हारा
किस कद्र दीवाना हूँ अदाओ का
अजीब सा लगा सवाल तुम्हारा
मेरे बेचैन होने का अफ़सोस न कर
छिपा नही है मुझसे हाल तुम्हारा
 

पढ़े लिखे बेकारों से कहाँ गजल होती है



तेरे इश्क ने बनाया मुझे काम का वरना
पढ़े लिखे बेकारों से कहाँ गजल होती है
तेरी जुदाई ने दी है रंगत मेरे हुनर को
लिखता हूँ जब-जब आँखें सजल होती है
छेड़खानी करने लगता है दिमाग से दिल
इसलिए जवानी में कम ही अक्ल होती है
संस्कारों से लबरेज़ हो सारी ही औलादें
कितनों के नसीब में ऐसी फसल होती है
किसी का भी काम देख लो नजर भर के
झूमती है रूह जब मेहनत सफल होती है
खूबसूरत महबूब और वफा की बात यारों
सुनकर मन में अजीब सी हलचल होती है
बेचैन हूँ मालूम हुआ है यह राज़ जब से
कलियाँ तो गुलशन में रोज़ कत्ल होती है


Wednesday, 7 September 2011

कईयों के लिए तो वनवास है रिश्तेदार


हर शख्स के गले की फांस है रिश्तेदार
बताओ किस किसके खास है रिश्तेदार
मैंने तो आज तक यही देखा है दोस्तों
गरीब आदमियों की आस है रिश्तेदार
नापते है कमबख्त औकात रिश्तों की
बारीकी से देखों बकवास है रिश्तेदार
उम्मीद के जंगले में भटकते है बेचारे
कईयों के लिए तो वनवास है रिश्तेदार
पीढ़ियों के राज सीने में दफन है बेचैन
अपनी पर आये तो राजफास है रिश्तेदार

चिल्ला उठी गरीबों की महोब्बत




सादा सा जिंदगी का राज होता है
फितरत का अक्स मिजाज होता है
कितने ही लगा लो चेहरे पर चेहरे
व्यवहार में छिपा अंदाज़ होता है
चिल्ला उठी गरीबों की महोब्बत
इंटों से बना भी कोई ताज होता है
किसका वास्ता देके समझा रहे हो
बड़ा ही ज़ालिम ये समाज होता है
स्कुल-ए-इश्क में दाखिलाधारी सुनो
हर वक्त हंसता चेहरा दगाबाज़ होता है
सही पेश आती है कई हुश्न की बलाएँ
मनचलों का लुटकर ही इलाज होता है
रुतबे के नाम पर बदतमीज़ ना बनो
आखिर छोटे बड़े का लिहाज़ होता है
बता किसको बेचैन नही करती ये फौज
आदमी नाहक रिश्तों से नाराज़ होता है

Monday, 5 September 2011

जाते ही खत लिखने का करके वादा बेचैन

ठहरी आँखों की कसम दिल की शान चली गई
तू शहर से क्या गई, मेरी तो जान चली गई
दौड़ता है लहू रगों में सिर्फ कहने भर को
जिसे जिंदगी कहते है वो जुबान चली गई
एक बोझ बनकर वो धरती पर रह गया
जमाने में जिस शख्स की पहचान चली गई
तस्वीर के बहाने देकर मेरी तनहाइयो को
देकर सज़ा ए हिज्र का सामन चली गई
पैगाम लेकर आई थी जो मौज साहिल का
उठा कर मेरी जिंदगी में तूफ़ान चली गई
जाते ही खत लिखने का करके वादा बेचैन
खाकर झूठी कसम वो बेइमान चली गई

सीने में छिपा वो राज हूँ में



मानो तो दिल की आवाज़ हूँ मैं
वरना टूटा हुआ  साज़ हूँ मैं
दौड़ कर मुझको गले लगा ले
अपने प्यार का आगाज़ हूँ मैं
बन जाते शाहजहाँ किसी तरह
कहकर तो देखते मुमताज़ हूँ मैं

देखें है जो दोनों ने  मिलकर
उन ख्वाबो की परवाज़ हूँ मैं
देख आईने के आगे बैठकर
तेरा ही नाज़-ओ अंदाज़ हूँ मैं
बेचैन कर देगा खुल गया तो
सीने में छिपा वो राज हूँ में

Sunday, 4 September 2011

यही सीखा उसने बरबाद होकर



बहुत पछताया हो वो सैयाद होकर
जब नही उडा पंछी आज़ाद होकर
जमाना साज़ियो से बावस्ता निकला
हुश्यारी दिखाई उसने उस्ताद होकर
भरोसा भी भरोसे के जितना करो
यही सीखा उसने बरबाद होकर
हंसी से कुछ तो मयस्सर हो शायद
कुछ नही पाओगे नाशाद होकर
मौत के रूबरू हुआ तो कांपने लगा
जो मकतल में रहा था जल्लाद होकर
बेचैन होकर बस मुझे देखने लगा
ना ले सका वो नाम मेरा याद होकर

चुपके-चुपके आहें निकालना सीखा दिया



दर्दे-दिल को हर्फों में ढालना सीखा दिया
शुक्रिया मुर्शिद गम पालना सीखा दिया
टूट जाता वरना, मैं तो दो कदम चलकर
बोझ जिंदगी का संभालना सीखा दिया
किस जुबान से कहूं क्या क्या सीखा दिया
चुटकियो में बुरा वक्त टालना सीखा दिया
परख अपने-बेगानों की बताने के साथ
मुदा सरे बज्म उछालना सीखा दिया
लबों को भी खबर ना हो, कब निकली
चुपके-चुपके आहें निकालना सीखा दिया
फंस जाये गर कभी तन्हाई के हाथों
खामोशी को हथियार डालना सीखा दिया
गजल की बारीकिय समझने के लिए
ज़ज्बात को बेचैन उबलना सीखा दिया 
 

मस्ती इनकी नौकरानी


देखो -देखो तीन तिलंगे
मन कर्म से एकदम चंगे
दुःख चिंता,सोच फ़िक्र के
ये नही लेते बिलकुल पंगे
सत प्रतिशत पवित्र है ये
बोल उठी ये माता गंगे
मस्ती इनकी नौकरानी
ये मनमर्जी के है  पतंगे
चैन की पुडिया है ये बेचैन
बेशक हो शहर में दंगे   

Saturday, 3 September 2011

पहला दुश्मन करीबी होगा



झूठ रास जब आ जाता है
सच को जिंदा खा जाता है
तन्हा बैठ कर रोता है वो
जो जज़्बात दबा जाता है
बेशक चारागर हो कोई
मौत से ना बचा जाता है
खेल तो सब तदबीर का है
तकदीर का तो कहा जाता है
गुलों से पहले बागवां को
खिज़ा का डर खा जाता है
पहला दुश्मन करीबी होगा
नाम जिसका छा जाता है 
जो दुनिया में छा जाता है
कैसा ही लिबास पहन बेचैन
व्यवहार सब बता जाता है 

Friday, 2 September 2011

छोडके कुछेक लोग सब कमजर्फ थे



पल पल जीते जी मारा है खुद को
तब जाके मैदान में उतारा है खुद को
डूबोने वालों ने तो कोई कमी न छोड़ी
बड़ी ही मुश्किल से उभारा है खुद को
छोडके कुछेक लोग सब कमजर्फ थे
जाने कहाँ-कहाँ से गुज़ारा है खुद को
अच्छे बुरे की समझ कोई नही देगा
अपना तो यह इशारा है खुद को
छट गए बेचैन मुश्किलात के बादल
ख़ामोशी से जब पुकारा है खुद को
  

घर की टूटी दिवार की चिंता कर


छोड़ दे शौक घरबार की चिंता कर
नादां ना बन व्यपार की चिंता कर
क्या हासिल हवाई किले बनाने से
घर की टूटी दिवार की चिंता कर
जवानी के भ्रम तो पछतावे देंगे
तू जिंदगी के सार की चिंता कर
खुदगर्जी में उम्र कैसे गुजरेगी
मन में छिपे विचार की चिंता कर
गजल का क्या बन ही जाएगी
अ सुखनवर असआर की चिंता कर
जो रहता है बेचैन तुझे पाने के लिए
कभी तो उस तलबगार की चिंता कर


Wednesday, 31 August 2011

पैग पे पैग लिए मगर नशा नही हुआ


खूब झूमा अपने ख्वाब के साथ बैठ कर
आज पी भाई साहब के साथ बैठ कर
पैग पे पैग लिए मगर नशा नही हुआ
सीखा बहुत कुछ नकाब के साथ बैठ कर
बहुत कम लोगो को मालूम था आज
फंस गया सवाल जवाब के साथ बैठ कर
लाजिम था पीने के बाद खुशबू आये मुझमे
महसूस किया ये सब गुलाब के साथ बैठ कर
ऐसी कोई तीर मारने वाली बात नही बेचैन
देख लिया हमने जनाब के साथ बैठ कर

Tuesday, 30 August 2011

गरूर-ए-हुश्न भी टूटे और वो मेरे भी हो जाएँ



वो कर ले इकरार तो दुगना हो ईद का मज़ा
समझे मेरा प्यार तो दुगना हो ईद का मज़ा
गमे-बेरुखी का मारा हूँ एक मुदत से दोस्तों
वो हंस दे एक बार तो दुगना हो  ईद का मज़ा
महबूब की इक ना से क्या बीतती है दिल पर
वो करें सोच विचार तो दुगना हो ईद का मज़ा
गरूर-ए-हुश्न भी टूटे और वो मेरे भी हो जाएँ
मगर ना हो शर्मसार तो दुगना हो ईद का मज़ा
कौम-ओ-मजहब को दफन करके सब बेचैन
मनाएं हम त्यौहार तो दुगना हो  ईद का मज़ा