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Wednesday 29 February 2012

आज बेहद ही रुंआसा है मन तुम्हारे बिन

उखड़ा-उखड़ा बुझा सा है मन तुम्हारे बिन
आज बेहद ही रुंआसा है मन तुम्हारे बिन

जमाना सारा मुझको सहरा नजर आता है
मत पूछों कितना प्यासा है मन तुम्हारे बिन

दीमक बनकर खा रही है जुदाई रात-ओ-दिन
मत सोचना अच्छा खासा है मन तुम्हारे बिन

होता था कभी जिसका आसमां जितना कद
आज छूकर देख जरा सा है मन तुम्हारे बिन

तुम लौट आओगे फिर मेर्र पास बेचैन
शायद झूठी ही दिलासा है मन तुम्हारे बिन

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