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Wednesday, 7 November 2012

आह कलेजे से निकली हाय हाय हाय

नहा धोकर जब उसने बाल बिखराए
आह कलेजे से निकली हाय हाय हाय

सांसो में बर्फ सी जम गई आँखों के रस्ते
मुझे देखकर उसने  जब होठ दबाए

जिस्म के पुर्जे पुर्जे में हथियार छिपे थे
उफ़ कत्ल खुद का क्यूं नही करवा पाए

नजर उतनी ही गहरी धंसती गई मन में
मेरी ओर देखकर वो जितना मुस्कुराए

यकीन हो ही गया आज सचमुच बेचैन
दिल झूठ से लगाकर हम बहुत पछताए





Friday, 2 November 2012

मुझे माँ के बाद उसी बीवी ने सम्भाला है

मेरे घर में मेरे जहन में जिससे उजाला है
मुझे माँ के बाद उसी बीवी ने सम्भाला है

शुक्र है बच्चों की माँ रूह में उतर गई वरना
साला हरेक रिश्तेदार मेरा देखा भाला है

इसलिए नही रखता मैं इश्कबाजी में यकीन
दिलो दिमाग पर लगा मोहतरमा का ताला है

सिवाय कमाने के मैं और करता भी क्या हूँ
सब बीवी ने जिम्मेवारी का बोझ सम्भाला है 

कहो उससे बढ़कर मेरा कौन होगा गमख्वार
जिसके दिलो दिमाग में मेरी फ़िक्र का छाला है

वक्त के रहते पा लो अपने पाप से छुटकारा
दोस्तों मन तुम्हारा अगर कही से भी काला है

कैसे जीते जी भूलूँ  उसका अहसान बेचैन
मिटाकर खुद को जिसने मेरे रंग में ढाला है



Monday, 29 October 2012

सकून देकर के वो बेकसी दे गया

सकून देकर के वो बेकसी दे गया
जाने आँखों में कैसी नमी दे गया

मुझसे लेकर के वादा खुश रहने का
वो बदले में मुझको बेबसी दे गया

मैंने मुस्कुराहट उनसे क्या मांग ली
खुद पे हंसता रहूँ वो हंसी दे गया

शायद मिलकर मुझसे ख़ुशी नहीं मिली
इसलिए वो करार अजनबी दे गया

सीने में जारी है एक घबराहट सी
वो कहने को तो मुझे जिंदगी दे गया

रिश्ता पक्का हुआ दोनों में बीच में
कहकर हाथों में वो एक घड़ी दे गया

बोलकर आखरी बेचैन मुलाक़ात है
अपनी उम्र भर की मुझको कमी दे गया

Saturday, 27 October 2012

आज मेरी आवाज़ ही नही दिल भी भारी है

आज मेरी आवाज़ ही नही दिल भी भारी है
छोड़कर मुझको तेरी जाने की तैयारी है

रोके नही रुकता है सैलाब आंसुओ का
बिना पानी बगेर मछली सी तडफ जारी है

नही सरक रही जिंदगी उन लम्हों से आगे
तेरी गोद में जितनी मैंने उम्र गुजारी है

मत भूलना कभी अ मेरे इश्क के खुदा
मैंने कैसे निगाहों से आरती उतारी है

वादा रहा कभी बेबसी उफ़ तक ना करेगी
मंजूर है बेचैन जो भी ख़ुशी तुम्हारी है

हम आज महोब्बत के कदमो में माथा टेक कर आये है

हम आज महोब्बत के कदमो में माथा टेक कर आये है
सकून था कितना मत पूछो हम कितना अब इतराए है

हम रोते रहे बेखुद होकर वो पोंछता रहा अश्क मेरे
छुवन हम उनके हाथों की गालों पर रचाकर लाये है

हम तकते रहे पहरों तक, वो सोचता रहा ये क्या है सब
हम रखकर उनकी गोद में सर कई देर तलक सुस्ताये है

उनसे जन्मो का नाता है हमने ये परख कर देख लिया
इस दर्द के रिश्ते के उसने हमको छाले दिखलाए है

दाता अहसान करना इतना जब साँस आखरी ले बेचैन
हो उनकी गोद में सर मेरा अरमान ये मन में जगाए है


Tuesday, 23 October 2012

जियादा दिन नही चलते एक तरफा प्यार के रिश्ते

सोचता हूँ तोड़ डालू झूठे जीत हार के रिश्ते
जियादा दिन नही चलते एक तरफा प्यार के रिश्ते

आदमी की परेशानियों का यही तो सबब होता है
अपना समझता है जो होते है उधार के रिश्ते

क्यूं नही समझते जमीन को ओढने बिछाने वाले
कभी भी रास नही आते है ऊँची मीनार के रिश्ते

छुड्वाया है तेरे अहसास ने हाथों से जब हाथ
मेरी नजरो में हो चले है सब बेकार के रिश्ते

यहाँ सब हाथों की लकीरों का ही भ्रम है बेचैन
इस पार नही मिलते किसी को उस पार के रिश्ते

Monday, 22 October 2012

एक ही बात कमबख्त को रोज समझानी पडती है

मत पूछो इश्क में क्या क्या दिक्कत उठानी पडती है
एक ही बात कमबख्त को रोज समझानी पडती है

तब जाकर आता है उसको बड़ी मुश्किल से यकीन
छोटी छोटी बातों पर हमें कसम खानी पडती है

नाज़ जरूरत से ज्यादा रोज उठा कर उसके
जान छिडकने की हमको यूं रस्म निभानी पडती है

इसलिए बदलता है मौसम जैसे मिजाज उसका
नाराज होने की उसकी आदत पुरानी पडती है

फीका पड़ जाता है चाँद बदली का भी बेचैन
रुखसार पर जब उसकी चुनर धानी पडती है

Sunday, 21 October 2012

सफेदी जब से बालों में उतरने लगी है


सफेदी जब से बालों में उतरने लगी है
अदाए नौजवानी की मुकरने लगी है

ये क्या हो रहा है दिन-ओ-दिन आदत को
दिल-ओ-दिमाग से गद्दारी करने लगी है

घुटने लगता है दम महफ़िल में जाते ही
जब से तन्हाईया मुझ पर मरने लगी है

हो ना जाये कही गलतफहमी की शिकार
जरा सी बात पर भी धडकने डरने लगी है

कुछ भी बोल बेचैन सचमुच में यही सच है
जिंदगी उसके बाद से ही संवरने लगी है

बेवकूफों को कुर्सी विद्वान बना देती है

बेवकूफों को कुर्सी विद्वान बना देती है
टुच्चों को भी महफ़िल की शान बना देती है

बेशक तमीज़ ना हो कपड़े तक पहनने की
दौलत मगर सबको कद्रदान बना देती है

सदियों तक बजता है उसके नाम का डंका
बिरादरी जिसकी भी पहचान बना देती है

दाग उम्र भर उसका पीछा नही छोड़ता
रंजिश में जिसे खाकी शैतान बना देती है

कितनी ही सरगोशी क्यूं ना हो बुराई की
चुगली दीवारों के भी कान बना देती है

दादा के कंधे पर पोता चढ़ते ही बोला
महोब्बत रिश्तों को नादान बना देती है

बेकारी से यही तजुर्बा मिला है बेचैन
नौकरी गधों को भी इंसान बना देती है


Tuesday, 16 October 2012

जिसका अहसास मेरे जीने का सहारा था

मदद खातिर जिसका मैंने नाम पुकारा था
पहला पत्थर भीड़ से उसी ने मारा था

वो भी शामिल था मेरी हंसी उड़ाने में
जिसका अहसास मेरे जीने का सहारा था

सुलगी है जिसको लेकर चिंगारी नफरत की
लब्ज़ नही है बता दूं वो कितना प्यारा था

जाने किस किस नाम से कर रहा था मुखबरी
मन का जिसके आगे मैंने दर्द उतारा था

शायद दिखावे से था प्यार उसे बेचैन
इसलिए मेरा सादापन बेहद नकारा था

Monday, 15 October 2012

जो पीते नही उनको बीच में आने नही देंगे

जो पीते नही उनको बीच में आने नही देंगे
काजू भूजिया मुफ्त के चने खाने नही देंगे

हम होश में रहे या नशे में याद रखना दोस्तों
अपने उसूलो से किसी को टकराने नही देंगे

हम चम्मच से बजायेंगे बोतल को खाली करके
मज़ा नशे का बेकार में यूं ही जाने नही देंगे

दम नही है जिसमे बैठकर यारों संग पीने का
महफ़िल पर उसे हक कोई भी जमाने नही देंगे

हंसकर सुनाएगा जो कोई भी दास्ताने महोब्बत
बिन रोये उसे बेचैन किस्सा सुनाने नही देंगे

ढंग ख़ामोशी का कहता है चाहत ही नही

ऐसा लगता है उसे मेरी जरूरत ही नही
यूं पेश आता है जैसे महोब्बत ही नही

पास होकर भी नही करता वो आजकल बातें
ढंग ख़ामोशी का कहता है चाहत ही नही

और यकी जियादा जां देकर ही दिला सकता हूँ
बदनसीबी जीते जी उसे अकीदत ही नही

सजने लगे गमलो में कागज़ के फूल जब से
कीचड़ के कमल की कोई कीमत ही नही

सच तो यही है सुर्ख आँखों की कसम यारो
बेचैन मिन्नते करने की और हिम्मत ही नही

Sunday, 14 October 2012

नही समझ पाता जिंदगी का क्या इशारा है

जब भी रसोई की तरफ मैंने निहारा है
महंगाई ने हाँ जोर का चांटा मारा है

तनख्वा को कभी जरुरतो को देखता हूँ
नही समझ पाता जिंदगी का क्या इशारा है

कई बार सोचा गुस्सा बीवी का है जायज़
हाँ ख्वाबो के जिसके सूली पर उतारा है

दर्द बेकारी का पहले ही कुछ कम ना था
मुझे ऊपर से महोब्बत ने चाबुक मारा है

ये सारी ऐसी तैसी नेताओ की हुई है
खौफ आम आदमी का जिसने निखारा है

शायद मिठास ज्यादा है तेरे अहसास का
मेरे अश्को का स्वाद इसलिए खारा है

बेचैन रिश्तेदारो की फ़िक्र नही करता
महबूब उसका उसके लिए ध्रुव तारा है



Saturday, 13 October 2012

हूँ कसमकश में तमन्नाओं का क्या होगा


हूँ कसमकश में तमन्नाओं का क्या होगा
क्या हक में मेरे कोई ना फैंसला होगा

उन्हें ये शक में दुनिया को सब बता दूंगा
मुझे ये खौफ वो ना संग रहा तो क्या होगा

कही से भेज वो लम्हे सकून हो जिसमे
अ वक्त तेरा कसम से बड़ा भला होगा

वो जिरह करते करते कभी जो बिछड़ गया
ता उम्र भर के लिए बहुत ही बुरा होगा

कपकपी उनके लब्जो की यही कहती है
मजबूरियों के सिवा ना सबब दूसरा होगा

मेरे इश्क ने बेचैन पक्का सोच लिया
हर एक जन्म में मेरा वही खुदा होगा

सांसे हुई है भारी भारी आपके बिना


कैसे कटेगी उम्र सारी आपके बिना
सांसे हुई है भारी भारी आपके बिना

बज्मे सुखन में जब भी कोई शेर पढूंगा
झलकेगी साफ़ लाचारी आपके बिना

किसके लिए करू बता बालों में कंघी
आईने से तोड़ दी यारी आपके बिना

कितना ही इल्म लोगों से सीख लूं लेकिन
ना आएगी समझदारी आपके बिना

कहने को तो बैठा हूँ खोलकर बोतल
छाएगी कैसे खुमारी आपके बिना

जन्नत में बैठकर भी मैं यही कहूँगा
बेकार है सब बेकरारी आपके बिना

मैं बेचैन इसे जियादा और क्या कहूं
कुछ भी नही किस्मत हमारी आपके बिना

ज़ुल्फ़ की रस्सी बनाकर मुझे फांसी तोड़ दे

ज़ुल्फ़ की रस्सी बनाकर मुझे फांसी तोड़ दे
नही बस में तो चुप रहने की जिद छोड़ दे

या तो इन घटाओ को बोल खुलकर बरसे
या बोल मुझे आँखों से समन्दर निचोड़ दे

यूं हक ना मारिये अपने गरीब आशिक का
मेरी प्यास,नींद-ओ-चैन का हिसाब जोड़ दे

दूर बहुत दूर जाकर ही मुस्कुरा लूँगा मैं
कोई तो राह ख़ुशी की मेरी और मोड़ दे

ऐसा अपाहिज बनाया है इश्क ने बेचैन
कह नही सकता खुद को कही ओर दौड़ दे

तस्वीर भेज अपनी अगर मुझसे प्यार है

तू सच में कही से जो मेरा गमख्वार है
तस्वीर भेज अपनी अगर मुझसे प्यार है

मैं लाश जिंदा बन गया हूँ दो ही रोज में
दिन बाकि उम्र के पड़े अभी कई हजार है

वादा वफा हंसने का हर हाल में होगा
वैसे भी मेरा चुटकलों का कारोबार है

मत भूलना कभी कही कोई तडफ रहा है
दुनिया में किसी को तुम्हारा इंतजार है

हम किस तरह करीब आये एक दूजे के
हाहा दास्तान अपनी वाकई मजेदार है

मजबूरी-ओ-नसीब दोनों पीछे पड़े है
शायद इसी का नाम बेचैन संसार है

बंदिश लगाके आहों पे कहता है प्यार कर

बंदिश लगाके आहों पे कहता है प्यार कर
मेरे पास बैठ कर ही मेरा इंतजार कर

मुजरिम समझ बैठा हूँ खुद को तुम्हारा मैं
इतना भी जान मुझको ना अब शर्मसार कर

आता नही समझ में अब करू तो क्या करू
कैसे मैं खुद से ही कहूं गूंगा व्यवहार कर

शक की नजर से रोज मेरा ना इंतिहान ले
इंसान गलत नही हूँ मेरा एतबार कर

मजबूरिया तुम्हारी मुझे अच्छे से पता है
मेरी बेबसी पे तू भी तो सोच विचार कर

कब तक करेंगे नसीब से दो दो हाथ हम
सिक्का उछाल कर ही सही जीत हार कर

तू भी बेचैन होता है सुनकर मेरा नाम
मिल जायेगा सकूं मुझे तू इकरार कर