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Friday, 14 October 2011

शक्ल देखकर कोई भ्रम ना पाल



पहले जैसा अब जमाना नही हैं
मुकरने का कोई बहाना नहीं हैं
किसी भी बात से फिर सकते हो
जुबां सच्चाई का पैमाना नहीं हैं
दिल में सभी के होती हैं हलचल
इक शख्स बता जो दीवाना नहीं हैं
ओरों की तफ्तीश वो क्या करेगा
खुद को जिसने पहचाना नहीं हैं
जाम से नहीं तो आँखों से पी लो
दूर तुमसे कोई मयखाना नहीं हैं
शक्ल देखकर कोई भ्रम ना पाल
मिजाज मेरा आशिकाना नहीं हैं
बारहा आईने आगे वो जाएँ बेचैन
जिसका का भी चेहरा पुराना नहीं हैं

Wednesday, 12 October 2011

जल्दी में तो बोतल भी नही खोलता




कहते हैं लोग पीकर ड्रामा करता हूँ
दो पैग लगाते ही हंगामा करता हूँ
यूं ही गिनते हैं मुझे पीने वालों में
मैं तो शराब से रामा रामा करता हूँ
ढलते ही साँझ दोस्त खौफ खाते हैं
इल्जाम है की कारनामा करता हूँ
जल्दी में तो बोतल भी नही खोलता
जो करना हैं खरामा खरमा करता हूँ
ये तो बे-इंतिहा पिलाने वाले जाने
क्यूं बेचैन नशे में मां मां करता हूँ

Monday, 10 October 2011

गजल गायक जगजीत सिंह के निधन पर एक गजल दर्द का आभास छूट गया हमसे



मखमली अहसास छूट गया हमसे
शख्स कोई खास छूट गया हमसे
ग़ज़लें दुल्हन हैं तो दुल्हा था वो
मन का विश्वास छूट गया हमसे
जब भी सुनते थे मिलता था चैन
दर्द का आभास छूट गया हमसे
कौन मिलवायेगा दिल को दिल से
रिश्तों का "पास" छूट गया हमसे
कैसे गुजरेगी जिंदगी अब बेचैन
सच्चा इखलास छूट गया हमसे







Sunday, 9 October 2011

सितमगर से यारी हैं इन दिनों



मन थोडा सा भारी हैं इन दिनों
सितमगर से यारी हैं इन दिनों
कहने को तो सब ठीक हैं मगर
हल्की सी बेकरारी हैं इन दिनों
हार जीत की बात करते हैं सभी
हरेक शख्स जुआरी हैं इन दिनों
अपना तो जिक्र उठता ही नही
चर्चाए ही तुम्हारी हैं इन दिनों
फरेब से कोई बचकर दिखाए
हर तरफ कलाकारी हैं इन दिनों
काम पड़ने पर गधा बाप बना लो
यही तो दुनियादारी हैं इन दिनों
चैन नही बेचैन उसके बिना अब
अपनी यही लाचारी हैं इन दिनों

यहाँ क्या मैं ही बेचैन हूँ



शर्मिंदा हूँ किसी बात से
नही सोया हूँ कई रात से
हुआ जाने कैसे हादसा
अनचाही सी मुलाक़ात से
वो जवाब ऐसा ही दे गये
डरता हूँ अब सवालात से
रह जाता हूँ बस कांप कर
हाय इश्क के ख्यालात से
तुझे जीते जी मरवा देगा
नही यारी रख ज़ज्बात से

वो किसकी जुल्फें संवारेगा
जो उलझ रहा हो हालात से
यहाँ क्या मैं ही  बेचैन हूँ
कोई पूछ दे कायनात से

अनछुए ज़ज्बात है अभी



साधारण सी बात है अभी
कच्ची मुलाकात है अभी
दिल का हाल कैसे कह दूं
अनछुए ज़ज्बात है अभी
कैसे आयें इक छतरी नीचे
हल्की सी बरसात है अभी
वो होंगे धुरंधर इश्क में
मेरी तो शुरुआत है अभी
पकड़ हाथ सीने पर रखूं
मेरी कहाँ औकात है अभी
जवाब मिलते ही बताऊंगा
जिंदगी सवालात है अभी 
दिन ही तो गुज़रा है बेचैन
पहाड़ सी बाकि रात है अभी

दिल के इलावा चैन भी खोकर तो देखिये



शर्मिंदगी को माफ़ी से धोकर तो देखिये
मिलेगा शकुं तन्हाई में रोकर तो देखिये
पाने का छोड़कर लालच कभी मेरे हूजुर
दिल के इलावा चैन भी खोकर तो देखिये
मिल जायेंगे सवालों के सारे जवाब भी
अहसास के जंगल से भी होकर तो देखिये
हंसने का जब मन करे बिन बात आपका
तस्वीर मेरी में कोई भी जोकर तो देखिये
मेरी तरह से आप भी दिल ही दिल में
सपना कोई भी पहले संजोकर तो देखिये
हर वक्त जागे जागे ना रहा करो बेचैन जी
ख्वाबों में आऊंगा कभी सोकर तो देखिये



Saturday, 8 October 2011

उम्र को भी पछाड़ के रख दिया



हर अदा में छिपे हैं सौ-सौ राज
क्या लगाऊं अदाओं का अंदाज़
एक दफा जो भी मिल लें तुझसे
हो जाये है उसका दिल दगाबाज़
असर है तेरी खिलखिलाहट का
नींद में सुनता हूँ हंसी की आवाज़ 
उम्र को भी पछाड़ के रख दिया
बता तो दीजियेगा क्या है राज़
जिसे देखो वो ही बेचैन हुआ है
मान गये तुझको वाह मुमताज़

Wednesday, 5 October 2011

गुलों की खुशबू जिस्म में पुरजोर लाये हो



इतनी  सादगी कहाँ से बटोर लायें हो
लगता है खुदा के यहाँ से चोर लाये हो
शर्मों-हया से पलकें झुका कर चलना
हंसने की अदा काबिले गौर लाये हो
क्यूंकर ना परेशां हो देखकर वो चाँद
जुल्फों के साए में चेहरा चकोर लाये हो
देखकर महफ़िल में हर कोई कह रहा है
जुल्फें नही ज़ालिम रेशम की डोर लाये हो
सुनते ही लगे झूमने लोग होकर दीवाने
सावन के महीने का पायल में शोर लाये हो
हर कोई तुम्हारी और खिंचा जा रहा है
गुलों की खुशबू जिस्म में पुरजोर लाये हो
क्यूंकर ना बढ़े धडकने देखकर बेचैन
तवज्जो आज अपना मेरी ओर लाये हो

Monday, 3 October 2011

मन्दिरों में जाकर कभी माथा नही रगड़ता



मैं बहुत कम लोगों से मुलाक़ात करता हूँ
जिनसे याराना हो उन्ही से बात करता हूँ
कहने को तो आती है मुझे जादूगरी मगर
ना दोस्तों के साथ कोई करामात करता हूँ
बस सीख ही नही पाया टालने की आदत
सब फैंसले मैं दोस्तों हाथों हाथ करता हूँ
मन्दिरों में जाकर कभी माथा नही रगड़ता
अपनी तदबीर से ही मैं सवालात करता हूँ
नही ला पाया उस्तादों सा पैनापन हुनर में
तुकबंदियों के सहारे पेश ज़ज्बात करता हूँ
शायद इसी लिए लोग मुझे जानने  लगे है
आये रोज़ कोई ना कोई खुरापात करता हूँ
खुदा जाने हो जाते है क्यूं कमजोर बेचैन
मैं तो बारहा मजबूत अपने हालात करता हूँ


शाही अंदाज़ हूँ मैं नवाबों में मिलूँगा



मरने के बाद मैं ख्वाबों में मिलूँगा
ढूँढना गजलों की किताबों में मिलूँगा
कर सको तो करना महसूस मुझको
खुशबू बनकर मैं गुलाबों में मिलूँगा
यूं भीड़ में बेकार तलाश ना कीजिये
शाही अंदाज़  हूँ मैं नवाबों में मिलूँगा
जो असल की भेंट चढ़ा था वो सूद हूँ
मैं साहूकार के हिसाबों में मिलूँगा 
अधुरा हूँ मुकम्मल होकर भी बेचैन
मैं सवालात बनके जवाबों में मिलूँगा

Sunday, 2 October 2011

सच कहूं मैं बहुत बड़े दिलदार से मिला




जो ऑनलाइन पनपा उस प्यार से मिला
आज फेसबुक के अपने इक यार से मिला
मिलते ही बिछा दी धडकने स्वागत में
सच कहूं मैं बहुत बड़े दिलदार से मिला
बहुत दूर थी बनावटीपन से बातें उसकी
मैं साफ़ सुथरे सच्चे व्यवहार से मिला
यही कहूँगा इस मुलाकात को लेकर के
एक कलमकार एक कलाकार से मिला
 लोहा है जिसकी अदाकारी का जहाँ में
बेचैन आज उस लाठर सरकार से मिला

Friday, 30 September 2011

वो मिले तो किस्सा खत्म करूं



सोच सोचकर उम्र क्यूं कम करूं
वो नही मिला तो क्यूं गम करूं
ना हुआ ना सही दीदार उनका
किसलिए भला आँखे नम करूं
सोचता हूँ लिख डालु विरासत
उसके नाम भी कुछ नज्म करूं
हद हो गई फल के इंतजार की
कितने दिन और अब कर्म करूं
अब नही सुहाती इश्क की बातें
वो मिले तो किस्सा खत्म करूं
महबूब के कपड़ो की कंगाली पर
बता तो बेचैन कितनी शर्म करूं

Tuesday, 27 September 2011

कभी गया ही नही कोई आसमां झुकाने



ना आई नींद रात को किसी भी बहाने
रह रह कर तेरी याद आ बैठती सिरहाने
करवटें सैकड़ों बदली दिले-बेताब ने लेकिन
गूंजते रहे कानों में तेरे बोल अनजाने
महोब्बत के सिवा और भी किस्से है कई
क्यूं कुरेदते हो यारों वो जख्म पुराने
ज़ज्बात मुझसे अपने दबाए ना जायेंगे
कभी चल पड़ी जो मौज कोई तुफां उठाने
छोटी से तमन्ना के लिए जान की बाज़ी
क्या सोचकर बनाए खुदा तुमने परवाने
कौन सा काम है जो इंसां कर नही सकता
कभी गया ही नही कोई आसमां झुकाने
बुरा लगता गर उन्हें यूं मेरा करीब आना
ना जायेगा बेचैन किसी का दिल दुखाने

Monday, 26 September 2011

चेहरा कपड़ो की तरह बदलेगा



वही छिपाएगा हकीकत यारों
जिसके मन में चोर रहता हैं
वो रौब दूसरों पर ही झाड़ेगा
ना खुद पे जिसका जोर रहता हैं
नजर सभी पर शक की डालेगा
यकीं जिसका कमजोर रहता हैं
चेहरा कपड़ो की तरह बदलेगा
दिल में जिसके शोर रहता हैं
हाल बेचैन होने पर यारों
कहाँ अपनों पर गौर रहता हैं



Sunday, 18 September 2011

समझ सकता हूँ कजरारी आँखें



अंगूर की बेटी के जो दीवाने नहीं
वो लोग महफ़िल में बुलाने नहीं
कल के टूटते आज ही टूट जाएँ
झूठे रिश्ते नाते हमें निभाने नहीं
जिंदगी का नशा वो क्या जाने
जिसने उठाकर देखें पैमाने नही
समझ सकता हूँ कजरारी आँखें
इनसे बढ़कर कहीं मयखाने नही
इतना तो तय है सितमगर के
साँझ ढलते ही ख्वाब आने नहीं
कल का ही तो वाक्यात है बेचैन
जख्म महोब्बत के पुराने नहीं

खुल गये है टाँके जख्मों के बेचैन


शुक्र है सम्भाल लिया कलम ने मुझे
वरना मार डाला था तेरे गम ने मुझे
बेशक तुझे पाने का जज्बा था मगर
सनकी किया किस्मत ने भ्रम ने मुझे
किसी का हाथ नही बुलंदी के पीछे
यहाँ तक पहुँचाया है मेरे करम मुझे
बेबसी की कहानी मैं ही जानता हूँ
बहुत तडफाया झूठी कसम ने मुझे
खुल गये है टाँके जख्मों के बेचैन
जब भी कुरेदा है तेरी नज्म ने मुझे

Saturday, 17 September 2011

कौन जख्मी ख्यालात करेगा

खुदा जब करामात करेगा
फैंसले हाथों हाथ करेगा
मतलबियों के मोहल्ले में 
कौन गहरे ज़ज्बात करेगा
वो नेता जी है आदमी नही
क्यूं भूखों का साथ करेगा
फिर खोली है जुल्फें उसने
फिर वो दिन को रात करेगा
शादी शुदा से दिल लगाकर
कौन जख्मी ख्यालात करेगा
बड़े से बड़ा चोर भी बेचैन
घर से ही शुरुआत करेगा

Thursday, 15 September 2011

देखना बोलेगी इक रोज़ मेरी किस्मत



उस दिन समझेंगे मेरी यायावरी लोग
बताऊंगा जब दुनिया में कहाँ क्या है
वक्त के थपेड़ों ने पहुँचाया है यहाँ तक
नही जानता विरासत की हवा क्या है
भरोसा है जिनको इश्क-ए-हकीकी में
वही तो बतायेंगे असर-ए-दुआ क्या है
मुझे इतना समझा दो बस मेरे रकीबों 
रश्क रखने से आखिर फायदा क्या है
देखना बोलेगी इक रोज़ मेरी किस्मत
बता दें बेफिक्र  बेचैन तेरी रज़ा क्या है

कोई हाथ मिलाकर दगा दे जायेगा


महोब्बत का दिल में मान रखा कर
आँखों में दर्द की  पहचान रखा कर

कोई हाथ मिलाकर दगा दे जायेगा
इतनी मत जान पहचान रखा कर
दीवानगी को लोग मजाल समझेंगे
हथेली पे ना अपनी जान रखा कर
मतलब परस्ती कहेंगे आपको सभी
ना दोस्तों के याद अहसान रखा कर
हर अच्छे बुरे की समझा देगा वक्त
बस खुले अपने दोनों कान रखा कर 
घर में  कितनी ही विदेशी चीज़ रख
दिल में पर अपने हिंदुस्तान रखा कर
शेर को सवा शेर जूमला है जब तक
तू  ताकत का ना अभिमान रखा कर
बचपन के देखें ख्वाब पूरे होंगे बेचैन
अपनी सोच की ऊँची उड़ान रखा कर