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Friday, 5 June 2015

जब भी अपनी जड़ो से कोई पेड़ दूर हो जाता है

जब भी अपनी जड़ो से कोई पेड़ दूर हो जाता है
शाख का हर पत्ता सूखने पर मज़बूर हो जाता है

सबसे पहले माँ बाप की निगाहो में खटकता है
अपनी जवानी पर जब बेटे को गरूर हो जाता है

किसी वक्त भी कर सकती है गलतफहमी वार
दो लोगो के बीच प्यार जब भरपूर हो जाता है

हार न माने जिद्द पर अड़ा रहे अगर मेहनतकश
फिर मुकदर को भी दोस्त सब मंज़ूर हो जाता है

छोड़ ही देना चाहिए उनको उनके हाल पर बेचैन
जिनके दिमाग में बे वजह का फ़ितूर हो जाता है




Wednesday, 3 June 2015

पकड़ी जानी थी कभी तो कलाकारी उसकी








अव्वल तो कुछ हम दोनों के बीच था ही नही
कुछ था तो उसे समेट ले गई हुश्यारी उसकी

जबकि दोस्ती में ही इतनी तकलीफ दे गया
फिर क्या करता मैं पाकर रिश्तेदारी उसकी

फिल्म दो घंटे की होती है दो साल की नही
पकड़ी जानी थी कभी तो कलाकारी उसकी

तज़ुर्बो की फेहरिस्त में ये तज़ुर्बा और सही
ना हज़म हुई ना भुला सकूँगा यारी उसकी

मेरी सादा मिजाजी से कही मेल नही खाती
आदतें समझ गया हूँ मैं बेचैन सारी उसकी 

असमंजस का दौर है और मैं आहे भर रहा हूँ

इन दिनों दर्द की तलहटी से होके गुज़र रहा हूँ
नमालूम मैं बिखर रहा हूँ या की निखर रहा हूँ

मंज़िल मेरे करीब है या मेरे बहम का कोहरा
असमंजस का दौर है और मैं आहे भर रहा हूँ

फिर भी शक भरी निगाहो से लोग देख रहे है
जबकि ईमानदारी से अपना कर्म कर रहा हूँ

शोहरत जान ना ले कही मज़दूर का बेटा हूँ
मददगारों के साथ से इसलिए भी डर रहा हूँ

अजीब सा धोखा है जीने की आरज़ू में बेचैन
रोजाना एक दिन का हिसाब करके मर रहा हूँ

आदतें समझ गया हूँ मैं बेचैन सारी उसकी

अव्वल तो कुछ हम दोनों के बीच था ही नही
कुछ था तो उसे समेट ले गई हुश्यारी उसकी

जबकि दोस्ती में ही इतनी तकलीफ दे गया
फिर क्या करता मैं पाकर रिश्तेदारी उसकी

फिल्म दो घंटे की होती है दो साल की नही
पकड़ी जानी थी कभी तो कलाकारी उसकी

तज़ुर्बो की फेहरिस्त में ये तज़ुर्बा और सही
ना हज़म हुई ना भुला सकूँगा यारी उसकी

मेरी सादा मिजाजी से कही मेल नही खाती
आदतें समझ गया हूँ मैं बेचैन सारी उसकी

Monday, 1 June 2015

ढल जाएगी एक दिन जिंदगी ख़ाक में

दो जून की रोटी कमाने की फिराक में
ढल जाएगी एक दिन जिंदगी ख़ाक में

रिश्ता कोई भी हो तार रूह से जुड़ते है
अहसास को कोई भी ना ले मज़ाक में

लब्ज़ो की धमक दिमाग से टकराती है
बोलता है जो भी कोई आदमी नाक में

उफ़ तरक्की में डूबे नए युग के हादसे
गिद्ध की तरह रहते है हरदम ताक में

सब हर्फो की जादूगरी है वरना बेचैन
कोई फर्क नही बेशर्म और बेवाक में

Friday, 29 May 2015

कभी हरियाणा में आ प्यार सिखाऊंगा तुझे

मर्दानी मह्बूबाओ से रूबरू करवाऊंगा तुझे
कभी हरियाणा में आ प्यार सिखाऊंगा तुझे

स्वीट डिश की परिभाषा समझ आ जाएगी
गुलगुले माँ के बनाये जब खिलाऊंगा तुझे

इश्क में सबकुछ जायज़ यहाँ क्यूँ नही होता
मर्यादाओ की एक फेहरिस्त दिखाऊंगा तुझे

लट्ठ गड़ने के पीछे जो दास्ताँ है मेरी जान
किसी रोज फुरसत में वो भी सुनाऊंगा तुझे

हरियाणवी पॉप जिसने मुंबई में भी बजवाया
आ उस के डी सिंगर से भी मिलवाऊंगा तुझे

ना मुराद को संदेश इतना है बस मेरी ओर से
मैं तो मरने के बाद भी मेरी जान चाहूंगा तुझे

जब तक नही सुलझती उलझने जिंदगानी की
बेचैन शायद ही अपना वक्त भी दे पाऊंगा तुझे

















Thursday, 28 May 2015

अगले जन्म देखूँगा बकाया प्यार के कसमे वादों को

अगले जन्म देखूँगा बकाया प्यार के कसमे वादों को
फिलहाल जानने में उलझा हूँ मैं जिंदगी के इरादों को

बे- इज़ाज़त बे-मतलब कही पर भी तो चली आती है
सोच में रहता हूँ मैं दिन भर गोली मार दूँ यादों को

सामने वाले को खुद जैसा समझने की खता करते है
लोग इसलिए सताया करते है मासूम शरीफजादो को

मेरे सामने पैरवी शराफत की कोई न करे तो अच्छा है
मैं पिंघलते देख चूका हूँ  न जाने कितने फौलादो को

मुझमे इक यही बस सबसे बड़ी खामी छिपी है बेचैन
चाहते हुवे भी दबा नही पाता अहसास के उन्मादों को

Monday, 25 May 2015

चूजे अन्डो से निकलते ही उड़ान रखने लगे है

उफ़..अपनी उम्र से बढ़कर ज्ञान रखने लगे है
चूजे अन्डो से निकलते ही उड़ान रखने लगे है

क्या ऐसी तैसी करवाये तज़ुर्बो में लिपटे लोग
गली गली में नौसिखिये पहचान रखने लगे है

जो ज्ञान कच्ची उम्र में खतरे से खाली नही है
बच्चे उन्ही बातों पर अपने कान रखने लगे है

दो लोगो ने मोहल्ले भर में तारीफ़ क्या कर दी
सीखना छोड़ कई लोग योगदान रखने लगे है

उम्रदराज अपने महबूब को क्या कहेगा बेचैन
जब बच्चियों का नाम बच्चे जान रखने लगे है







Wednesday, 20 May 2015

कुत्ते भोकते रहते है हाथी निकल जाते है

मोबाइल हो या रिश्ते नेटवर्क लाज़मी है
वरना लोग गेम खेलना शुरू हो जाते है

नए युग के अहसास का इतना टोटल है
लोग हालात तोलने के बाद बतियाते है

जो भुगतभोगी है वो अच्छे से जानते है
कलाकारों के खेमे कैसे जलवे दिखाते है

लाख मीठा बोले लेकिन पकड़े ही जाते है
जो तल्ख़िया को अपने मन में छिपाते है

बरपते हंगामे पर बेचैन इतना ही कहूँगा
कुत्ते भोकते रहते है हाथी निकल जाते है


Sunday, 17 May 2015

मुझे जानते है वो जिनकी आँखों में शर्म है

उनकी तादाद में दम है मेरे जज्बे में दम है
अब देखना है ईमानदारी किस ओर कम है

कोरी हवाबाजी से मंज़िल पा लेंगे एक दिन
पैसा फूंकने वालो को ना जाने क्यूँ भरम है

तंज़ सुनकर मैं इसलिए निराश नही होता
मुझे जानते है वो जिनकी आँखों में शर्म है

ये परेशानिया ये दिक्क़ते ये बेवजह तनाव
कहो किसकी जिंदगी में नही पेचो खम है

साज़िसे मेरा कुछ भी बिगाड़ नही सकती
दोस्तों जब तक मेरे इन हाथों में कलम है

आखरी सांस तक फिर भी लड़ूंगा वक्त से
जबकि जानता हूँ मेरी परिस्थियाँ विषम है

जिन्हे होना चाहिए संग वही साथ नही है
यही सोचकर बेचैन आँखे थोड़ी सी नम है






नेता नादानों की भीड़ से प्रोफाइल बनाते है

वो जो सियासत में अपना हुनर दिखाते है 
सब कलाकारों से लोग उन्हें बड़ा बताते है 


थोड़ा सा सावधान रहना अक्लमंद दोस्तों 
नेता नादानों की भीड़ से प्रोफाइल बनाते है 

सड़क के साइन बोर्ड की लिखावट झूठ नही 
इक जरा सी चूक होते ही हादसे हो जाते है 

कटी उंगली के दर्द का जिन्हे अहसास नही 
वो हार्ट आपरेशन के गज़ब नुस्खे सुझाते है 

मुझको अफ़सोस है तो बस इतना है बेचैन 
कुछ बड़े बुज़ुर्ग कुछ बच्चों को बरगलाते है  











Saturday, 16 May 2015

कुछ रिश्तों को इस जन्म में फिर नही मिलूंगा

जब से भीड़ बढ़ी है यारो की तन्हा हो गया हूँ
जैसे ज़ख्मी अहसास के रूबरू खड़ा हो गया हूँ

नामालूम कैसी कसक है नए युग के रिश्तों में
सोच सोचकर मन में ही पागल सा हो गया हूँ

साया माँ बाप का जिस रोज से उठा है सर से
दरअसल उसी रोज से मैं कुछ बड़ा हो गया हूँ

मिली है जिस रोज से अच्छे लोगो की सोहबत
जियादा नही थोड़ा बहुत मैं भी भला हो गया हूँ

कुछ रिश्तों को इस जन्म में फिर नही मिलूंगा
बेचैन उनके खातिर मैं सचमुच फना हो गया हूँ

Friday, 8 May 2015

प्यार में वफ़ा ज्यादा गज़ब की अच्छी बात नही

हरेक वक्त दीवानगी मज़हब की अच्छी बात नही
खिल्ली उड़ाना किसी के रब की अच्छी बात नही

ईमानदारी के चक्कर में मुह की खानी पड़ती है
प्यार में वफ़ा ज्यादा गज़ब की अच्छी बात नही

शेर को सवा शेर ही टकराये है इतिहास गवाह है
हर बात पे टाँगे खींचना सबकी अच्छी बात नही 

कमी है तो बता वरना उसे वक्त जरूर बताएगा
कलाकार को देना झूठी थपकी अच्छी बात नही

मस्ती खोदकर जड़ो को उनमे आलस भर देगी
बेचैन आदत ये रोजाना पब की अच्छी बात नही

Friday, 13 March 2015

इस युग का लछमन कहाँ राम का होता है

वक्त पर काम आये तो काम का होता है
वरना पैसा और रिश्ता नाम का होता है

ये मैं नही कहता तज़ुर्बेकारो ने कहा है
अफसर केवल भूखा सलाम का होता है

बिके तो महोब्बत में नही करोड़ो कम है
किसने कहा कलाकार दाम का होता है

बेटा प्यार की गुठली जब मन करे चूस
अब तो हर एक सीज़न आम का होता है

इतना कहके भर आई बड़े भाई की आँखे
इस युग का लछमन कहाँ राम का होता है

उसकी हंसी का मन पर उतना ही असर है
दर्द पर जितना असर झंडूबाम का होता है

तकलीफ जिसको दे भर भर पैग बेचैन
वो बताएगा क्या मज़ा जाम का होता है

Thursday, 8 May 2014

कोई नही करता याद किसी को
ये तो फक्त भरम है आदमी को

जरूरत का दूसरा नाम प्यार है
टटोल लो बेशक खुदगर्ज़ी को

रूह में पसरा मातम दिखेगा नही
सोखना सीखो आँखों की नमी को

शक से लबरेज़ इमानदारो पीछे
क्यों खराब करते हो जिंदगी को

छोड़कर अपनी बेईमानी बेचैन
किसी की परवाह नही किसी को


Tuesday, 6 May 2014

किसने कहा बेटियां पराई होती है
ये तो माँ-बाप की परछाई होती है

पीड़ा समझती है हर एक रिश्ते की
बेटियां असल हातिमताई होती है

दहलीज जो भी कंवारी रह जाती है
उस आँगन में दर्ज़नो बुराई होती है

वही रखेगा बेटियों पर गलत निगाहें
जिसकी सोच में गंदगी समाई होती है

फेरो के साथ ही हकदार बदल जाते है
कब जिंदगी की बेटी मल्काइन होती है

कोख में मारने वालो सुनो बेटियां तो
नसीब अपने साथ लेकर आई होती है

दुनिया जिसे इज़्ज़त का नाम देती है
बेचैन वो बेटियो से ही कमाई होती है

Sunday, 27 April 2014

शर्म और लिहाज़ से जितना भरा होगा
व्यवहार में वो सख्स उतना खरा होगा

इक दफा रोज निहारता है वो पैर खुद के
इन पर जरूर किसी ने सर धरा होगा

अहसास में जुदाई मायने नही रखती
देख लो जिक्र छेड़कर जख्म हरा होगा

तस्वीरें यार देगी उसी की आँख को ठंडक
आंसू बनकर जिसका भी दर्द झरा होगा

दोगलेपन से वही पेश आएगा बेचैन
जिस भी इंसान का जमीर मरा होगा
यारब उसी की सोच थर्ड क्लास निकली वरना
हमने उसे कभी कलेक्टर से कम नही समझा

समझकर छोड़ा फिर उसको बेईमान सोच ने
हमदम को कभी जिसने हमदम नही समझा

क्या ख़ाक सुलझाएगा वो जमाने के मसलो को
जिस सख्स ने कभी हालात का खम नही समझा

रिश्तो के मुआमले में वक्त ने ठग लिया उसको
जिसने दूसरो की वफ़ा में कभी दम नही समझा

माँ बाप तक खो चुका हूँ खोने के मामले में बेचैन
इसलिए महबूब के गम को कभी गम नही समझा

Friday, 5 July 2013

तुझसे बने तो मेरी बेबसी का इलाज कर देना

तुझसे बने तो मेरी बेबसी का इलाज कर देना
वरना बाद मेरे घर आके अपना अफ़सोस धर देना

मैं दिल लगाने के खेल में कभी भी शिकस्त नही खाता
सीख ही गया होता गर मैं पर सच्चाई के कुतर देना

आखरी सांस मुझको बस उसी की गोद में लेनी है
अल्लाह अपने बच्चे को जिंदगी और मुख्तसर देना

वफा के मामले में रति भर भी अगर मैं झूठा निकलूँ
किस्मत मेरे हर चाहने वाले के हाथ में पत्थर देना

बहुत खौफनाक होती है ये जुदाई की जिंदगी बेचैन
तुम नई पीढ़ी को गलतफहमी से बचने का डर देना


Wednesday, 6 March 2013

रिश्ता मानव बम निकला है

सोच सोचकर दम निकला है
फिर भी साला कम निकला है

किसे बता दे हालत मन की
सबके भीतर गम निकला है

हाय रौशनी की हसरत में
दूर दूर तक तम निकला है

जान गंवा दी थी कीड़े ने
तब जाकर रेशम निकला है

मत पूछो रो-रोकर कैसे
पतझड़ का मौसम निकला है

क्या होगा बेचैन उनसे
रिश्ता मानव बम निकला है

Friday, 22 February 2013

सब कुछ है मगर तेरी कमी रहती है


अब हर वक्त आँखों में नमी रहती है
सब कुछ है मगर तेरी कमी रहती है

मैं कितनी ही गरम आहे भर लूं मगर
फिर भी सांसे जमी की जमी रहती है

गुम अंधेरो में इसलिए न हो पाया
जहन में यादों की रौशनी रहती है

दफन करके चले सब तो मुर्दे ने कहा
अपनेपन की बू जीते जी रहती है

वक्त रहते सुलझा लो वरना ता-उम्र
गलतफहमी तो गलतफहमी रहती है

हंसकर भी रोकर भी हामी भरता हूँ
हाँ दर्द में इन दिनों जिंदगी रहती है

तस्वीरों में दिखती है रौनक मुह पर
मगर नब्ज़ तो बेचैन थमी रहती है

Sunday, 17 February 2013

जब जिस्म का कोई हिस्सा खराब हो जाता है
क्या काट फेंकने से इलाज़ हो जाता है

है मुफलिसी ही ऐसी कुत्ती चीज़ जिसमे
सच्चा आदमी भी दगाबाज़ हो जाता है

हो मसला दिल का या फिर घरबार का यारों
चुप्पी साधने से लाइलाज हो जाता है

अश्को को उँगलियों पर रखके देखता है
हंसी का जब कोई मोहताज़ हो जाता है

बेचैन बुरा दिल से कभी नही चाहेगा
महबूब पर जिसे भी नाज़ हो जाता है


Friday, 11 January 2013

वक्त बेरहम है किसी के लिए रो नही सकता

फिलहाल जो है उससे अच्छा हो नही सकता
वक्त बेरहम है किसी के लिए रो नही सकता

गलतफहमी की चपेट में गर विश्वास आ जाये
कोई हो अश्को से दाग दिल के धो नही सकता

दुनिया के किसी भी हिस्से में रहो बिछड़कर आप
कभी अहसास का बच्चा सुख से सो नही सकता

महबूब लाख बुरा कर दे प्यार सच्चा है अगर
आखरी सांस तक राह में कांटे बो नही सकता

किसी का कुछ नही बिगड़ेगा नूर जाता रहेगा
बेचैन मोती आँखों के और खो नही सकता

Monday, 31 December 2012

तू वापिस लेकर जा मुबारकबाद अपनी

तू वापिस लेकर जा मुबारकबाद अपनी
करने जा रहा हूँ जिंदगी बरबाद अपनी

नया साल नया सूरज तुम ही देख लेना
अब ढंग से कर लेना हयात आबाद अपनी

मेरे लहूँ के छींटे तुम तक आ सकते है
तुम कसके सम्भाले रखना बुनियाद अपनी

तेरे प्यार की पैदाइश थी जो गजले
देख सब तेरे नाम कर दी औलाद अपनी

किसी राहत की कोई आरजू नही बेचैन
मैंने उठा ली है दर से फरियाद अपनी

Sunday, 30 December 2012

याद रख तारीख में तेरा नाम बेवफा होगा

तू अब भी नही आया तो पत्थर का खुदा होगा
याद रख तारीख में तेरा नाम बेवफा होगा

कोई गलती की होगी मैंने कोई कत्ल नही किया
मगर उस गलती से रिश्ता तेरा भी जुड़ा होगा

अपने दिमाग से निकाल दे तू ये बात सितमगर
अगले जन्म में फिर तेरा मेरा सामना होगा

मुझे इल्जाम मत देना आज के बाद कोई भी
बेहद खतरनाक मेरा जब कोई फैंसला होगा

याद रखना तुम भी उस वक्त खूब पछताओगे
जिंदगी में जिस रोज तुम्हारा वजूद हिला होगा

वादा रहा बेचैन का मरी माँ की कसम खाकर
मेरा कल के बाद तुझसे ना कोई भी रिश्ता होगा

Saturday, 29 December 2012

मेरा भी नया साल मनवा दो

दर्द को सकून में बदलवा दो
मेरा भी नया साल मनवा दो

थम थमकर चल रही है साँसे
हो सके तो ढंग से चलवा दो

आते है बुरे ख्याल रोजाना
सर से मेरे होनी टलवा दो

मौत देकर या देकर जिंदगी
बेबसी से बाहर निकलवा दो

उठाकर बेचैन मातम से
मुझे भी हंसी में नहलवा दो






सब कुछ है मगर तेरी कमी रहती है


अब हर वक्त आँखों में नमी रहती है
सब कुछ है मगर तेरी कमी रहती है

मैं कितनी ही गरम आहे भर लूं मगर
फिर भी सांसे जमी की जमी रहती है

गुम अंधेरो में इसलिए न हो पाया
जहन में यादों की रौशनी रहती है

दफन करके चले सब तो मुर्दे ने कहा
अपनेपन की बू जीते जी रहती है

वक्त रहते सुलझा लो वरना ता-उम्र
गलतफहमी तो गलतफहमी रहती है

हंसकर भी रोकर भी हामी भरता हूँ
हाँ दर्द में इन दिनों जिंदगी रहती है

तस्वीरों में दिखती है रौनक मुह पर
मगर नब्ज़ तो बेचैन थमी रहती है

Friday, 28 December 2012

मत मारो मुझे बेमौत अल्लाह के लिए

मुआफ़ कर दो मुझे मेरे गुनाह के लिए
लौट आओ दिल से उठती आह के लिए

बस एक बार आकर मेरे अश्क पोंछ दो
रो रहा हूँ कब से तेरी पनाह के लिए

अ इश्क मुझे अपना घर भी देखना है
मत मारो मुझे बेमौत अल्लाह के लिए

दर्द कम करने के लिए चला लेता हूँ कलम
वरना कभी नही लिखता मैं वाह के लिए

तुम्हारे साथ की आज बेहद जरूरत है
बेचैन को कामयाबी की राह के लिए






तू तो आज भी सांसो में हवा सा बसता है

किसने कहा की तू मर गया है मेरे लिए
तू तो आज भी सांसो में हवा सा बसता है

आ गौर से देख मेरी डबडबाई आँखों में
तेरा नाम लेकर जहा से दरिया बहता है

सुनकर तुम्हारी आवाज जो खिल उठता था
आजकल वही शख्स बेहद उदास रहता है

मैं यादाश्त भूल सकता हूँ मगर तुझको नही
तडफ-तडफकर वजूद मेरा यही कहता है

किसी सजा याफ्ता मुजरिम सा हाल है बेचैन
बता नही सकता दिल कितना दर्द सहता है

सिवा यार-दोस्तों के मेरे पास क्या है

सिवा यार-दोस्तों के मेरे पास क्या है
आप ही ने तो बताया अहसास क्या है

चिल्लाते है लोग रिश्तेदार रिश्तेदार
हां नही जानता मैं ये बकवास क्या है

 की ही न हो जिसने कभी सच्ची महोब्बत
वो क्या जाने जुदाई का बनवास क्या है

मेरी जगह खुद को बिठाकर पूछ मन से
किसी की याद में तडफ और प्यास क्या है

मुद्दत हो गई बेचैन मुस्कुराये अब तो
नही जानता ख़ुशी और उल्लास क्या है

Thursday, 27 December 2012

मुझको मार डालेगा मौसम सर्द गर्म करके

बाहर ठंडी हवाएं और दिल में हिज्र की आग
मुझको मार डालेगा मौसम सर्द गर्म करके

सचमुच जानलेवा है सच्ची महोब्बत यारों
देख चुका हूँ मैं ये गलती से कर्म करके

जाने क्यूं नही हो रही दोस्तों दुआ कबूल
सौ तरह के देख चुका हूँ दान धर्म करके

यादें तो रूह की खाल उतारकर छोड़ेगी
अ दर्द तू ही रख अपना लहज़ा नर्म करके

दिल तो बेचैन उसके जाते ही थम गया था
नब्ज़ चल रही है जाने किसकी शर्म करके







Wednesday, 26 December 2012

जब माँ के हाथ में बेटा पहली कमाई देता है

जंग जिसकी भी छिड़ी रहती है वक्त-ओ-हालात से
क्यूं शख्स वही जमाने को खुदगर्ज़ दिखाई देता है

तैयार नही कोई किसी के ज़ज्बात समझने को
सबको अपनी मजबूरी का शोर सुनाई देता है

ताकि फर्क महसूस करे अपने और बेगानों में
खुदा इसलिए हिस्से में सबके असनाई देता है

कामयाबी भी उसी पल से कुछ सोचने लगती है
जब माँ के हाथ में बेटा पहली कमाई देता है

इसलिए लाज़मी है अपनी सोच का भरम रखना
उम्मीदों को यही तो पलने की दवाई देता है

हर्ज़ ही क्या है उसको एक और मौका देने में
बेकसूर होने की जो रो रोकर सफाई देता है

मरकर भी उसी के ख्यालों में बेचैन रहूँगा
जो आज मेरी कलम को गजले रुबाई देता है



देख तेरी नफरत के मैं कितना काम आ गया

माँ मेरी कहती थी मैं किसी भी काम का नही
देख तेरी नफरत के मैं कितना काम आ गया

बददुआओ और गालियों के लिए ही सही
मैं खुश हूँ तेरे लबो में मेरा नाम आ गया

गिडगिडाने से जहाँ खैरात तक ना मिलती हो
वही सर पर मेरे मुफ्त में इल्जाम आ गया

सचमुच आज पीने का मेरा मन नही था दोस्त
देखो फिर भी मुझे ढूंढ़ते हुवे जाम आ गया

सच बता मुझको बेचैन करने के बाद कितना
फीसद तुम्हारी कसमकश को आराम आ गया

Monday, 24 December 2012

मैं कभी काबिल हुआ तो पास आकर छुडवा लूँगा
गिरवी है मेरा वजूद तेरे पास कभी भूलना मत

आज गलतफहमियों ने सर उठाया है तो क्या हुआ
गुज़रे दौर में था खूब इखलास कभी भूलना मत

आज मैं जा तो रहा हूँ जुदाई के जंगलों में लेकिन
एक दिन खत्म होगा मेरा बनवास कभी भूलना मत

चाहे कितनी ही गिर जाए ये सेहत मगर अक्सर
रखूंगा जान तेरे लिए उपवास कभी भूलना मत

बस इतना कह सकता है अपनी सफाई में बेचैन
मरकर भी रहेगी मुझे तेरी प्यास कभी भूलना मत 

Sunday, 23 December 2012

यादों की गरमी ने पसीने छुड़ा रखे है

इसलिए नही कांपता सर्दी से मेरा बदन
यादों की गरमी ने पसीने छुड़ा रखे है

मेरा सर्द हवाए क्या बिगाड़ेगी वाइज़
दोनों हाथों में मैंने जाम उठा रखे है

बताओ कैसे भूला दूं उस प्यार को मैं
जिसके लिए अश्को के मोती लुटा रखे है

क्यूं नही आएगी बता उस शख्स को मौत
जान देने जिसने सौ बहाने जुटा रखे है

उसी की याद में खोया रहता हूँ  बेचैन
लम्हे मेरे सकून के जिसने चुरा रखे है

Thursday, 20 December 2012

अ आस्तीन के सांपों दिल तुम्हारा आभारी है


एक ने दिल तो एक ने पेट पर लात मारी है
अ आस्तीन के सांपों दिल तुम्हारा आभारी है

मेरे सामने मत आना अ कातिलों तुम कभी भी
सचमुच अगर तुम में अपने भरम की खुद्दारी है

किसी पर भी यकीं करने लायक नही छोड़ा मुझे
खतरनाक तुम दोनों में सांझे की हुशयारी है

तुम कौन सा बाज़ी मार गये दिल दुखाकर मेरा
दुखों से लड़ाई मेरी तो बचपने से जारी है

मुफलिसी कब से चीख रही है दगाबाज़ अमीरों
हम धरती का बोझ है क्या औकात हमारी है

जमीन पर जिनको ढंग से चलना नही आता है
सुना है उनकी चाँद पर जाने की तैयारी है

बचने में ही भलाई है उन लोगों से बेचैन
दुनिया के सामने जो भी गजब के व्यवहारी है

Wednesday, 19 December 2012

फैंसला आज हमने एक अजब बदल लिया है


फैंसला आज हमने एक अजब बदल लिया है
जो कभी ना बदलना था वो सब बदल लिया है

पत्थर के खुदा अब तू बेशक से जी उठना
थक हार कर हमने अपना रब बदल लिया है

बकाया उम्र शायद अब कसमकश में न गुज़रे
हमने जिंदगी को जीने का सबब बदल लिया है

मन्दिरों में मुझको अब कभी तलाश मत करना
जाकर मस्जिद में हमने मजहब बदल लिया है

बहुत मायने रखती थी जो मेरे लिए कभी
बेचैन उन बातों का मतलब बदल लिया है

Monday, 17 December 2012

वक्त तुमको एक दिन पछाड़ेगा जरुर

शेर जंगल का हो या फिर किसी गजल का
वो जिधर भी जायेगा दहाड़ेगा जरुर 

बुलंदी पर कब्जा करने वालों याद रखना
वक्त तुमको एक दिन पछाड़ेगा जरुर

जो बन्दर दिखता है तुम्हे गरूर के मारो
देख लेना वही लंका उजाडेगा जरुर

झूठ बोलकर गरीब का हक मरने वालों
पाप तुम्हारी जडो को उखाड़ेगा जरुर

गम न कर बेचैन सिफार्सियों का एक दिन
कोई मेहनतकश हुलिया बिगाड़ेगा जरुर

मैं आज ढंग से मयखाने में जाकर आया हूँ

हाँ तुम्हारी यादों को आग लगाकर आया हूँ
मैं आज ढंग से मयखाने में जाकर आया हूँ

सेहत की औकात से बढ़कर लगाकर ज़ाम
होश की धज्जिया मैं आज उड़ाकर आया हूँ

किसी का भी तो डर नही मुझे टोके जरा भी
मैं शराब की नदियाँ आज बहाकर आया हूँ

मय रगों में जब तक न बहेगी पीता रहूँगा
ये राज की बात किसी को बताकर आया हूँ

जब तक दम है इन आँखों में जिद छोड़ना मत
अपने आंसुओं को आज समझाकर आया हूँ

मिटा लूँगा खुद को वो ना आया तो बेचैन
मैं अपने अहसास की कसम खाकर आया हूँ

न मजबूर करो बने कोई गुनेहगार दोस्तों

बेशक देख लो करके सोच विचार दोस्तों
पैसे पर भारी पड़ता है व्यवहार दोस्तों

वो बड़े से बड़ा स्कूल भी नकली दंगल है
गर शिक्षा के संग नही देता संस्कार दोस्तों

लात पीठ पर मारो किसी के पेट पर नही
मत छीनना किसी का भी रोजगार दोस्तों

जरा सी बात का अफ़सोस उम्र भर रहेगा
न मजबूर करो बने कोई गुनेहगार दोस्तों

न बचा सकोगे खुद को बरबाद होने से
हाय लग गई गरीब की जो एक बार दोस्तों

गलती करे तो माफ़ कर सीने से लगा लो
अपनों को मत करो इतना शर्मसार दोस्तों

मौसम की मानिंद जिसकी सोच बदलती हो
बेहद खतरनाक होते है वो यार दोस्तों 

सबब किसी की बरबादी का न बनो बेचैन
हरेक शख्स को पालने दो परिवार दोस्तों

Sunday, 16 December 2012

यादें उसको तकलीफ पहुंचाती नही .......कमाल है !

वो आती नही उसकी याद जाती नही.......कमाल है !
सोच इक कदम भी आगे बढ़ पाती नही .......कमाल है !

जबकि मेरे दिलो-दिमाग में तो कोहराम मचा है
यादें उसको तकलीफ पहुंचाती नही .......कमाल है !

बसेरा कर लिया है अपनी तो आँखों में नमी ने
उसकी कभी पलके भी भीग पाती नही .......कमाल है !

उसको लेकर मैं तो खुद से रोजाना झगड़ता हूँ
क्या वो खुद से भी कभी कुछ बतियाती नही  .......कमाल है !

ये कैसे मुमकिन है महबूब से बिछड़कर बेचैन
ठंडी आहें किसी की रूह तडफाती नही   .......कमाल है !

हुश्न तू खा जा गरीब को एक ग्रास समझकर

इश्क बेशक चाहे तुझे अपना ख़ास समझकर
 हुश्न तू खा जा गरीब को एक ग्रास समझकर

मिसाल ऐसी पैदा कर रूह कांप उठे सबकी
लोग ठोकर पे रखे प्यार को बकवास समझकर

आखिर क्यूं छिडक जाता है वही नमक जख्मो पर
दर्द साँझा करते है जिससे गम शनास समझकर

इसलिए नही करता कोई मुफलिस की पैरवी 
साला जीता है जिंदगी को बनवास समझकर

उसकी फुरसत के पलों का खेल था बेचैन
 सीने से लगाया था जिसको अहसास समझकर 

Saturday, 15 December 2012

तू वापिस ले जा दिल अपना सौ ग्राम का


सचमुच नही है देख मेरे किसी काम का
तू वापिस ले जा दिल अपना सौ ग्राम का

अब और नही चुसूंगा उम्मीद की गुठली
तुमने गंवा दिया मौसम प्यार के आम का

कोशिश मत कर मुझे आँखों से पिलाने की
फ़िलहाल वक्त हो चला है असली जाम का

तू भी सूख कर छुआरा कभी नही होती
मान लेती कहना जो अपने झंडुबाम का

भाड़ में जाये अहसास तेल लेने जा तू
बेचैन आशिक हो गया है श्री राम का

क्या जरूरी है वो होगा मुझसे भी बेहतर

क्या जरूरी है वो होगा मुझसे भी बेहतर
जिसके लिए तू मुझको ठोकर लगा गया

तुझको तुम्हारी कसमकश ने लूट लिया है
अंदाज़े-ख़ामोशी तेरा सब बता गया

अल्लाह का शुक्र था मैं फिर भी नही मरा
कातिल तो पीठ में पूरा खंजर घुसा गया

मैं ढंग से मुस्कुराऊँ शायद ही उम्र भर
लबों की हंसी दिल का तू सकून खा गया

तू ऐसा ही सच्चा था तो गुफ्तगू करता
क्यूं चोरों की तरह भागकर मुह छिपा गया

जा मेरी दुआ है तुझे हजार यार मिले
अपना तो एक तू था तू ही चला गया

जब चोट लगी दिल पे तो कहना पड़ा मुझे
बेचैन दौर सचमुच में ही बुरा आ गया

Friday, 14 December 2012

मरने के बाद किसने वफ़ा पाई है देखो तुम

गंगा मेरी आँखों में उतर आई है देखो तुम
मेरी सोच में मीलों तक तन्हाई है देखो तुम

मेरे हिस्से का आकाश वापिस मुझे लौटा दो
ये सरासर बेईमानी-ओ-चतुराई है देखो तुम

अश्को के सिवाय यादें कुछ भी नही देती है
मेरी सलाह में सौ फीसदी सच्चाई है देखो तुम

जिस घर में होंगे बर्तन वो आवाज भी करेंगे
बता इसमें कहाँ बातों की गहराई है देखो तुम

हम जिंदा है जब तलक आ प्यार कर ले बेचैन
मरने के बाद किसने वफ़ा पाई है देखो तुम


Wednesday, 12 December 2012

हमको तो इंतजार ले डूबा

हद से ज्यादा करार ले डूबा
हमको तो इंतजार ले डूबा

दुश्मन होता तो बात ना थी कुछ
हमें अपना ही यार ले डूबा

प्यास जिसने बढ़ा के छोड़ दिया
हमे उसका व्यवहार ले डूबा

जिंदगी भर नही पनपते है वो
ढंग से जिनको प्यार ले डूबा

हम बनावट से दूर थे बेचैन
हमे सादा किरदार ले डूबा

यूं भी और यूं भी गर मौत को ही आना है तो


यूं भी और यूं भी गर मौत को ही आना है तो
शराब भी पीजिये जनाब ऊपर ही जाना है तो

फर्क नही पड़ता कुछ भी थोड़ी पीओ या जियादा
मयकश ही कहेंगे सब हाथ में पैमाना है तो

वो गम मेरा समझेगा क्यूं रोजाना पीता हूँ
कभी भी उसने अगर मुझे अपना माना है तो

दर्दे दिल के मारे कम से कम मिलेंगे वहां पर
इलाके में जिनके भी यारो मयखाना है तो

कहो किसलिए गाऊँ मैं गजले लोगों की लिखी
गुनगुनाऊंगा नाम तेरा कुछ गुनगुनाना है तो

बेचैन आखरी दम तक यूं ही इबादत करना
उसके अहसास में दिल तेरा दीवाना है तो

Tuesday, 11 December 2012

तुझे तरस नही आया बच्चे को छोड़ कर यहाँ

इतनी बड़ी दुनिया करोड़ो लोग और मैं तन्हा
तुझे तरस नही आया बच्चे को छोड़ कर यहाँ

क्यूं नही सोचा कौन कराएगा रोते हुवे को चुप
बता कौन थामेगा मेरी सुबकियों का कारवां

तू था तो दिल थोडा बहुत बचपना कर लेता था
तू नही है तो वजूद पड़ा है मकतल में बेज़ुबां

छा जाती है अँधेरी और जी घबरा जाता है
तेरी यादों का लगता है जब आँखों में धूंआ

कृष्ण कण-कण में था पर राधा के नसीब में ना था
क्या बेचैन के साथ भी दोहराई गई वो दास्तां

फिर रोजाना दर पे जाकर उसके सर क्यूं रखता है

वास्ता नही रखना तो फिर मुझपे नजर क्यूं रखता है
मैं किस हाल में जिंदा हूँ तू ये सब खबर क्यूं रखता है

बात अगर फूलों की कलियों की गुलशन की करता है
अपने लब्जों में फिर छिपाकर तू पत्थर क्यूं रखता है

गर कुनबा ही समझता है तू इस पूरी दुनिया को
फिर ज़हन के कोने में सदा अपना घर क्यूं रखता है

तू तो कहता है मैं दुखाता नही दिल किसी का भी
फिर खुदा तुम्हारी दुआओं को बेअसर क्यूं रखता है

किसी को जीतने की कोशिश तू करना नही चाहता
बता फिर हारने का मन में अपने डर क्यूं रखता है

इश्क इबादत है खुदा की जिसे तुमने ठुकरा दिया
फिर रोजाना दर पे जाकर उसके सर क्यूं रखता है

तू मुझको छोड़ तो सकता है पर भूला नही सकता
बता बेचैन मेरा वजूद तुझे मुख्तसर क्यूं लगता है

Monday, 10 December 2012

मुझको दर्द की वो ऐसी दौलत दे गया है

जितना खर्चता हूँ उतनी बढती जाती है
मुझको दर्द की वो ऐसी दौलत दे गया है

किसी से भी बतियाने को मन नही करता
अपनी यादों वो ऐसी सोहबत दे गया है

आकर के कल रात मेरे ख्वाब में कमबख्त
कुछ और दिन जीने की मोहलत दे गया है

चुगली ही सही मेरी होने लगी है चर्चा
वो कैसी मेरे हिस्से शोहरत दे गया है

ना जाने कब सिमटेगा अफ़सोस ये बेचैन
वो बेबसी किस जुर्म की बदौलत दे गया है




Sunday, 9 December 2012

तुम्हारी तस्वीर तक नही इबादत करूंगा कैसे

मैं दर्दे जुदाई की ता-उम्र हिफाजत करूंगा कैसे
तुम्हारी तस्वीर तक नही इबादत करूंगा कैसे

कलेजा नोच रही है यादें हरेक लम्हा हर घड़ी
ऐसे में ज़िंदा रहने की मैं आदत करूंगा कैसे

मैं चला भी जाऊ बेशक बज्मे इशरत में लेकिन
तेरे ना होने के गम की खिलाफत करूंगा कैसे

लगा नही पाऊंगा रोक ज़हन की बदमाशियों पर
ओरों की छोडो खुद से ही शराफत करूंगा कैसे

गुस्से की सौ बात मगर तुझे तो हकीकत मालूम है
बेचैन मैं अपने अक्स से अदावत करूंगा कैसे

दम निकलने को है आके जिंदगी दे दे

धडकनों को सकून लबो को हंसी दे दे
दम निकलने को है आके जिंदगी दे दे

कम न थी पहले ही हालात की उलझन
ऊपर से हिज्र दाता हयात से मुक्ति दे दे

ले चुका है मुझको आगोश में अँधेरा
मेरे हिस्से की मुझे कोई रौशनी दे दे

वादा है उम्र भर उफ़ तक ना करूंगा
तू बैठकर पास चाहे बेरुखी दे दे

वरना मरकर भी बेचैन रूह भटकेगी
तोड़ दूं चैन से दम इतनी ख़ुशी दे दे