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Sunday 17 May 2015

मुझे जानते है वो जिनकी आँखों में शर्म है

उनकी तादाद में दम है मेरे जज्बे में दम है
अब देखना है ईमानदारी किस ओर कम है

कोरी हवाबाजी से मंज़िल पा लेंगे एक दिन
पैसा फूंकने वालो को ना जाने क्यूँ भरम है

तंज़ सुनकर मैं इसलिए निराश नही होता
मुझे जानते है वो जिनकी आँखों में शर्म है

ये परेशानिया ये दिक्क़ते ये बेवजह तनाव
कहो किसकी जिंदगी में नही पेचो खम है

साज़िसे मेरा कुछ भी बिगाड़ नही सकती
दोस्तों जब तक मेरे इन हाथों में कलम है

आखरी सांस तक फिर भी लड़ूंगा वक्त से
जबकि जानता हूँ मेरी परिस्थियाँ विषम है

जिन्हे होना चाहिए संग वही साथ नही है
यही सोचकर बेचैन आँखे थोड़ी सी नम है






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