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Wednesday 10 October 2012

कागज़ के फूलो की मुझे क्या जरूरत है



कागज़ के फूलो की मुझे क्या जरूरत है
जब पहलू में महका गुलाब लिए बैठा हूँ

कोई सितारों सी चमक रखता है तो रखे
मैं दिल में अपने महताब लिए बैठा हूँ

तू मंजिल की हद जिसे समझता है रकीब
मैं उससे आगे का ख्वाब लिए बैठा हूँ

यूं कम नही होगा मेरा नशा उम्र भर
इश्क की आँखों में शराब लिए बैठा हूँ

इसलिए नही देता तरजीह सवालों को
जवाबो का भी मैं जवाब लिए बैठा हूँ

वजूद के जिंदा रहने का यही सबब है
सच से टकराने की ताब लिए बैठा हूँ

बाकि है अभी मिलनी लानत दुनिया की
यही सोचकर जिंदा कसाब लिए बैठा हूँ

वक्त मुझे धोखा देगा तो कैसे देगा
पाई पाई का बेचैन हिसाब लिए बैठा हूँ

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