जीत जाता अगर महाभारत में दुर्योदन दोस्तों
तारीख में लिखता द्रोपदी बेचती थी तन दोस्तों
सियासतगर्दो में रही है बुरी आदत आगाज़ से
नजर आती है इन्हें अपनी पीढ़ी निर्धन दोस्तों
—तारीख में लिखता द्रोपदी बेचती थी तन दोस्तों
सियासतगर्दो में रही है बुरी आदत आगाज़ से
नजर आती है इन्हें अपनी पीढ़ी निर्धन दोस्तों
जनता की तरह फूट है नेताओ में भी वरना
ये सौदागर बेच डालते कब का वतन दोस्तों
कहते है कभी आसमान जमीन के करीब था
इंसानियत मरी तो ऊँचा उठ गया गगन दोस्तों
दिल महबूब-ओ-समाज के लिए बराबर धडके
थोडा समझाकर रखो अपना बेचैन मन दोस्तों
ये सौदागर बेच डालते कब का वतन दोस्तों
कहते है कभी आसमान जमीन के करीब था
इंसानियत मरी तो ऊँचा उठ गया गगन दोस्तों
दिल महबूब-ओ-समाज के लिए बराबर धडके
थोडा समझाकर रखो अपना बेचैन मन दोस्तों
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