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Sunday 30 September 2012

जीत जाता अगर महाभारत में दुर्योदन दोस्तों


जीत जाता अगर महाभारत में दुर्योदन दोस्तों
तारीख में लिखता द्रोपदी बेचती थी तन दोस्तों

सियासतगर्दो में रही है बुरी आदत आगाज़ से
नजर आती है इन्हें अपनी पीढ़ी निर्धन दोस्तों

जनता की तरह फूट है नेताओ में भी वरना
ये सौदागर बेच डालते कब का वतन दोस्तों

कहते है कभी आसमान जमीन के करीब था
इंसानियत मरी तो ऊँचा उठ गया गगन दोस्तों

दिल महबूब-ओ-समाज के लिए बराबर धडके
थोडा समझाकर रखो अपना बेचैन मन दोस्तों

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