Friends

Saturday 21 July 2012

वो शायद मेरी हालत खराब में दिखता है

दिन भर ख्यालो में रात ख्वाब में दिखता है
पढने बैठता हूँ तो किताब में दिखता है

जब भी जाता हूँ टहलने गुलशन में यारो
नामुराद का चेहरा गुलाब में दिखता है

गम गलत करने को क्या ख़ाक जाऊ मयखाने
वो कमबख्त मुझको अब शराब में दिखता है

मुझे देख रहे है घूरकर इसीलिए लोग
वो शायद मेरी हालत खराब में दिखता है

आइना तू क्या बतायेगा राज की बात
यह सच है वो चश्मे- पुरआब में दिखता है

मैं या मेरा भगवान ही जानता है सब
वो कैसे ज़हन के इन्कलाब में दिखता है 

मैं हरेक बात का जिक्र अब क्या करू बेचैन
वो आहों के इक इक हिसाब में दिखता है

चश्मे- पुरआब=आंसूओ से भरी आँखे



No comments: