झूठ रास जब आ जाता है
सच को जिंदा खा जाता है
तन्हा बैठ कर रोता है वो
जो जज़्बात दबा जाता है
बेशक चारागर हो कोई
मौत से ना बचा जाता है
खेल तो सब तदबीर का है
तकदीर का तो कहा जाता है
गुलों से पहले बागवां को
खिज़ा का डर खा जाता है
पहला दुश्मन करीबी होगा
नाम जिसका छा जाता है
जो दुनिया में छा जाता है
कैसा ही लिबास पहन बेचैन
व्यवहार सब बता जाता है
3 comments:
wah! bahot Khub
vaah kaabile taarif
nice
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