सरगोशी हो रही है तुम जिधर गये हो
क्या खिला दिया साजन ने निखर गये हो
कुछ नही हासिल,वक्त की दलील देने से
क्यू नही मानते जुबां से मुकर गया हो
घुंघट की आड़ में रहकर चंद रोज़ सांवली
हुश्न की कसोटी पर खरे उतर गये हो
चाल में बर्क है तो तब्बसुम है लबो पर
निकाह के बाद अंदाजों से भर गये हो
पहरों बीतते थे जिन हमनशीनो के साथ
उनके भी घर मुलाकाते मुख्तसर गये हो
हर कहानी का अंजाम एक जैसा नही होता
किसलिए शहर में हुवे हादसे से डर गये हो
छोड़ दिया बेचैन उसने देखना कनखियों से
जब से तुम इलज़ाम अपने सिर धर गये हो
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