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Wednesday, 20 May 2015

कुत्ते भोकते रहते है हाथी निकल जाते है

मोबाइल हो या रिश्ते नेटवर्क लाज़मी है
वरना लोग गेम खेलना शुरू हो जाते है

नए युग के अहसास का इतना टोटल है
लोग हालात तोलने के बाद बतियाते है

जो भुगतभोगी है वो अच्छे से जानते है
कलाकारों के खेमे कैसे जलवे दिखाते है

लाख मीठा बोले लेकिन पकड़े ही जाते है
जो तल्ख़िया को अपने मन में छिपाते है

बरपते हंगामे पर बेचैन इतना ही कहूँगा
कुत्ते भोकते रहते है हाथी निकल जाते है


Sunday, 17 May 2015

मुझे जानते है वो जिनकी आँखों में शर्म है

उनकी तादाद में दम है मेरे जज्बे में दम है
अब देखना है ईमानदारी किस ओर कम है

कोरी हवाबाजी से मंज़िल पा लेंगे एक दिन
पैसा फूंकने वालो को ना जाने क्यूँ भरम है

तंज़ सुनकर मैं इसलिए निराश नही होता
मुझे जानते है वो जिनकी आँखों में शर्म है

ये परेशानिया ये दिक्क़ते ये बेवजह तनाव
कहो किसकी जिंदगी में नही पेचो खम है

साज़िसे मेरा कुछ भी बिगाड़ नही सकती
दोस्तों जब तक मेरे इन हाथों में कलम है

आखरी सांस तक फिर भी लड़ूंगा वक्त से
जबकि जानता हूँ मेरी परिस्थियाँ विषम है

जिन्हे होना चाहिए संग वही साथ नही है
यही सोचकर बेचैन आँखे थोड़ी सी नम है






नेता नादानों की भीड़ से प्रोफाइल बनाते है

वो जो सियासत में अपना हुनर दिखाते है 
सब कलाकारों से लोग उन्हें बड़ा बताते है 


थोड़ा सा सावधान रहना अक्लमंद दोस्तों 
नेता नादानों की भीड़ से प्रोफाइल बनाते है 

सड़क के साइन बोर्ड की लिखावट झूठ नही 
इक जरा सी चूक होते ही हादसे हो जाते है 

कटी उंगली के दर्द का जिन्हे अहसास नही 
वो हार्ट आपरेशन के गज़ब नुस्खे सुझाते है 

मुझको अफ़सोस है तो बस इतना है बेचैन 
कुछ बड़े बुज़ुर्ग कुछ बच्चों को बरगलाते है  











Saturday, 16 May 2015

कुछ रिश्तों को इस जन्म में फिर नही मिलूंगा

जब से भीड़ बढ़ी है यारो की तन्हा हो गया हूँ
जैसे ज़ख्मी अहसास के रूबरू खड़ा हो गया हूँ

नामालूम कैसी कसक है नए युग के रिश्तों में
सोच सोचकर मन में ही पागल सा हो गया हूँ

साया माँ बाप का जिस रोज से उठा है सर से
दरअसल उसी रोज से मैं कुछ बड़ा हो गया हूँ

मिली है जिस रोज से अच्छे लोगो की सोहबत
जियादा नही थोड़ा बहुत मैं भी भला हो गया हूँ

कुछ रिश्तों को इस जन्म में फिर नही मिलूंगा
बेचैन उनके खातिर मैं सचमुच फना हो गया हूँ

Friday, 8 May 2015

प्यार में वफ़ा ज्यादा गज़ब की अच्छी बात नही

हरेक वक्त दीवानगी मज़हब की अच्छी बात नही
खिल्ली उड़ाना किसी के रब की अच्छी बात नही

ईमानदारी के चक्कर में मुह की खानी पड़ती है
प्यार में वफ़ा ज्यादा गज़ब की अच्छी बात नही

शेर को सवा शेर ही टकराये है इतिहास गवाह है
हर बात पे टाँगे खींचना सबकी अच्छी बात नही 

कमी है तो बता वरना उसे वक्त जरूर बताएगा
कलाकार को देना झूठी थपकी अच्छी बात नही

मस्ती खोदकर जड़ो को उनमे आलस भर देगी
बेचैन आदत ये रोजाना पब की अच्छी बात नही

Friday, 13 March 2015

इस युग का लछमन कहाँ राम का होता है

वक्त पर काम आये तो काम का होता है
वरना पैसा और रिश्ता नाम का होता है

ये मैं नही कहता तज़ुर्बेकारो ने कहा है
अफसर केवल भूखा सलाम का होता है

बिके तो महोब्बत में नही करोड़ो कम है
किसने कहा कलाकार दाम का होता है

बेटा प्यार की गुठली जब मन करे चूस
अब तो हर एक सीज़न आम का होता है

इतना कहके भर आई बड़े भाई की आँखे
इस युग का लछमन कहाँ राम का होता है

उसकी हंसी का मन पर उतना ही असर है
दर्द पर जितना असर झंडूबाम का होता है

तकलीफ जिसको दे भर भर पैग बेचैन
वो बताएगा क्या मज़ा जाम का होता है

Thursday, 8 May 2014

कोई नही करता याद किसी को
ये तो फक्त भरम है आदमी को

जरूरत का दूसरा नाम प्यार है
टटोल लो बेशक खुदगर्ज़ी को

रूह में पसरा मातम दिखेगा नही
सोखना सीखो आँखों की नमी को

शक से लबरेज़ इमानदारो पीछे
क्यों खराब करते हो जिंदगी को

छोड़कर अपनी बेईमानी बेचैन
किसी की परवाह नही किसी को


Tuesday, 6 May 2014

किसने कहा बेटियां पराई होती है
ये तो माँ-बाप की परछाई होती है

पीड़ा समझती है हर एक रिश्ते की
बेटियां असल हातिमताई होती है

दहलीज जो भी कंवारी रह जाती है
उस आँगन में दर्ज़नो बुराई होती है

वही रखेगा बेटियों पर गलत निगाहें
जिसकी सोच में गंदगी समाई होती है

फेरो के साथ ही हकदार बदल जाते है
कब जिंदगी की बेटी मल्काइन होती है

कोख में मारने वालो सुनो बेटियां तो
नसीब अपने साथ लेकर आई होती है

दुनिया जिसे इज़्ज़त का नाम देती है
बेचैन वो बेटियो से ही कमाई होती है

Sunday, 27 April 2014

शर्म और लिहाज़ से जितना भरा होगा
व्यवहार में वो सख्स उतना खरा होगा

इक दफा रोज निहारता है वो पैर खुद के
इन पर जरूर किसी ने सर धरा होगा

अहसास में जुदाई मायने नही रखती
देख लो जिक्र छेड़कर जख्म हरा होगा

तस्वीरें यार देगी उसी की आँख को ठंडक
आंसू बनकर जिसका भी दर्द झरा होगा

दोगलेपन से वही पेश आएगा बेचैन
जिस भी इंसान का जमीर मरा होगा
यारब उसी की सोच थर्ड क्लास निकली वरना
हमने उसे कभी कलेक्टर से कम नही समझा

समझकर छोड़ा फिर उसको बेईमान सोच ने
हमदम को कभी जिसने हमदम नही समझा

क्या ख़ाक सुलझाएगा वो जमाने के मसलो को
जिस सख्स ने कभी हालात का खम नही समझा

रिश्तो के मुआमले में वक्त ने ठग लिया उसको
जिसने दूसरो की वफ़ा में कभी दम नही समझा

माँ बाप तक खो चुका हूँ खोने के मामले में बेचैन
इसलिए महबूब के गम को कभी गम नही समझा

Friday, 5 July 2013

तुझसे बने तो मेरी बेबसी का इलाज कर देना

तुझसे बने तो मेरी बेबसी का इलाज कर देना
वरना बाद मेरे घर आके अपना अफ़सोस धर देना

मैं दिल लगाने के खेल में कभी भी शिकस्त नही खाता
सीख ही गया होता गर मैं पर सच्चाई के कुतर देना

आखरी सांस मुझको बस उसी की गोद में लेनी है
अल्लाह अपने बच्चे को जिंदगी और मुख्तसर देना

वफा के मामले में रति भर भी अगर मैं झूठा निकलूँ
किस्मत मेरे हर चाहने वाले के हाथ में पत्थर देना

बहुत खौफनाक होती है ये जुदाई की जिंदगी बेचैन
तुम नई पीढ़ी को गलतफहमी से बचने का डर देना


Wednesday, 6 March 2013

रिश्ता मानव बम निकला है

सोच सोचकर दम निकला है
फिर भी साला कम निकला है

किसे बता दे हालत मन की
सबके भीतर गम निकला है

हाय रौशनी की हसरत में
दूर दूर तक तम निकला है

जान गंवा दी थी कीड़े ने
तब जाकर रेशम निकला है

मत पूछो रो-रोकर कैसे
पतझड़ का मौसम निकला है

क्या होगा बेचैन उनसे
रिश्ता मानव बम निकला है

Friday, 22 February 2013

सब कुछ है मगर तेरी कमी रहती है


अब हर वक्त आँखों में नमी रहती है
सब कुछ है मगर तेरी कमी रहती है

मैं कितनी ही गरम आहे भर लूं मगर
फिर भी सांसे जमी की जमी रहती है

गुम अंधेरो में इसलिए न हो पाया
जहन में यादों की रौशनी रहती है

दफन करके चले सब तो मुर्दे ने कहा
अपनेपन की बू जीते जी रहती है

वक्त रहते सुलझा लो वरना ता-उम्र
गलतफहमी तो गलतफहमी रहती है

हंसकर भी रोकर भी हामी भरता हूँ
हाँ दर्द में इन दिनों जिंदगी रहती है

तस्वीरों में दिखती है रौनक मुह पर
मगर नब्ज़ तो बेचैन थमी रहती है

Sunday, 17 February 2013

जब जिस्म का कोई हिस्सा खराब हो जाता है
क्या काट फेंकने से इलाज़ हो जाता है

है मुफलिसी ही ऐसी कुत्ती चीज़ जिसमे
सच्चा आदमी भी दगाबाज़ हो जाता है

हो मसला दिल का या फिर घरबार का यारों
चुप्पी साधने से लाइलाज हो जाता है

अश्को को उँगलियों पर रखके देखता है
हंसी का जब कोई मोहताज़ हो जाता है

बेचैन बुरा दिल से कभी नही चाहेगा
महबूब पर जिसे भी नाज़ हो जाता है


Friday, 11 January 2013

वक्त बेरहम है किसी के लिए रो नही सकता

फिलहाल जो है उससे अच्छा हो नही सकता
वक्त बेरहम है किसी के लिए रो नही सकता

गलतफहमी की चपेट में गर विश्वास आ जाये
कोई हो अश्को से दाग दिल के धो नही सकता

दुनिया के किसी भी हिस्से में रहो बिछड़कर आप
कभी अहसास का बच्चा सुख से सो नही सकता

महबूब लाख बुरा कर दे प्यार सच्चा है अगर
आखरी सांस तक राह में कांटे बो नही सकता

किसी का कुछ नही बिगड़ेगा नूर जाता रहेगा
बेचैन मोती आँखों के और खो नही सकता

Monday, 31 December 2012

तू वापिस लेकर जा मुबारकबाद अपनी

तू वापिस लेकर जा मुबारकबाद अपनी
करने जा रहा हूँ जिंदगी बरबाद अपनी

नया साल नया सूरज तुम ही देख लेना
अब ढंग से कर लेना हयात आबाद अपनी

मेरे लहूँ के छींटे तुम तक आ सकते है
तुम कसके सम्भाले रखना बुनियाद अपनी

तेरे प्यार की पैदाइश थी जो गजले
देख सब तेरे नाम कर दी औलाद अपनी

किसी राहत की कोई आरजू नही बेचैन
मैंने उठा ली है दर से फरियाद अपनी

Sunday, 30 December 2012

याद रख तारीख में तेरा नाम बेवफा होगा

तू अब भी नही आया तो पत्थर का खुदा होगा
याद रख तारीख में तेरा नाम बेवफा होगा

कोई गलती की होगी मैंने कोई कत्ल नही किया
मगर उस गलती से रिश्ता तेरा भी जुड़ा होगा

अपने दिमाग से निकाल दे तू ये बात सितमगर
अगले जन्म में फिर तेरा मेरा सामना होगा

मुझे इल्जाम मत देना आज के बाद कोई भी
बेहद खतरनाक मेरा जब कोई फैंसला होगा

याद रखना तुम भी उस वक्त खूब पछताओगे
जिंदगी में जिस रोज तुम्हारा वजूद हिला होगा

वादा रहा बेचैन का मरी माँ की कसम खाकर
मेरा कल के बाद तुझसे ना कोई भी रिश्ता होगा

Saturday, 29 December 2012

मेरा भी नया साल मनवा दो

दर्द को सकून में बदलवा दो
मेरा भी नया साल मनवा दो

थम थमकर चल रही है साँसे
हो सके तो ढंग से चलवा दो

आते है बुरे ख्याल रोजाना
सर से मेरे होनी टलवा दो

मौत देकर या देकर जिंदगी
बेबसी से बाहर निकलवा दो

उठाकर बेचैन मातम से
मुझे भी हंसी में नहलवा दो






सब कुछ है मगर तेरी कमी रहती है


अब हर वक्त आँखों में नमी रहती है
सब कुछ है मगर तेरी कमी रहती है

मैं कितनी ही गरम आहे भर लूं मगर
फिर भी सांसे जमी की जमी रहती है

गुम अंधेरो में इसलिए न हो पाया
जहन में यादों की रौशनी रहती है

दफन करके चले सब तो मुर्दे ने कहा
अपनेपन की बू जीते जी रहती है

वक्त रहते सुलझा लो वरना ता-उम्र
गलतफहमी तो गलतफहमी रहती है

हंसकर भी रोकर भी हामी भरता हूँ
हाँ दर्द में इन दिनों जिंदगी रहती है

तस्वीरों में दिखती है रौनक मुह पर
मगर नब्ज़ तो बेचैन थमी रहती है