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Wednesday, 22 July 2015

वाक्यात फन के सफर में हैरतंगेज़ आते रहे

मैं करता रहा मेहनत लोग जुगाड़ भिड़ाते रहे
वाक्यात फन के सफर में हैरतंगेज़ आते रहे

 बेईमानी करती रही रेप रोज ईमानदारी का
लोग उसी को किस्मत का लिखा बताते रहे

हालांकि लहू लुहान रहा मेरा वज़ूद उम्र भर
मगर जीना था हम इसलिए मुस्कुराते रहे

जहर महज़ब का था उन दोनों के ही मन में
जो झूठी राम अल्लाह की कसम खाते रहे

एक दो यारो ने रखी लब्ज़े यारी की लाज
बाकि अहसास तो हमे मुह ही चिढ़ाते रहे

यही दुनिया है तो ये दुनिया कुछ भी नही
क्या मतलब हुआ लोग आते रहे जाते रहे

वही लोग है बेचैन आज जनाजे के साथ
हम जीते जी जिन पर उम्मीदे लुटाते रहे

Saturday, 11 July 2015

फूलती सांसे करे इशारा जिस्म तो सबका मिट्टी है

रूहें लगा रही है नारा जिस्म तो सबका मिट्टी  है
क्या मेरा और क्या तुम्हारा जिस्म तो सबका मिटटी है

रिश्ते नाते प्यार महोब्बत और न जाने क्या क्या बंधन
लालच की हदो ने पुकारा जिस्म तो सबका मिट्टी है

दौलत शौहरत आदमी मौत पर काबू पा नही सकते
फूलती सांसे करे इशारा जिस्म तो सबका मिट्टी है

नाराजगी वक्त का नही नुक्सान जन्म का कर रही है
तू क्यूँ जिद्द करता है यारा जिस्म तो सबका मिट्टी है

कौन इतना दीवाना बेचैन मरे हुवो से लाड करे
जीते जी का झगड़ा सारा जिस्म तो सबका मिट्टी है
वी एम बेचैन भिवानी 9034741834

Thursday, 9 July 2015

रंजिशें साथ में रहकर भी तो कर सकते थे

रंजिशें साथ में रहकर भी तो कर सकते थे
हम मांगते प्यार और तुम मुकर सकते थे

तुम अगर चाहते तो आज के सड़ते ज़ख्म
नासूर नही बनते उन्ही दिनों भर सकते थे

जब हमारा वज़ूद तलक तेरे पास गिरवी था
करके कलम कदमो में सर भी धर सकते थे

इतना मुश्किल भी नही था बैठकर आपस में
हम गलतफहमियों के दौर से उभर सकते थे

लिखते तुम भी अगर बेचैन किताबे महोब्बत
तुम्हारे हमारी तरह जज्बात निखर सकते थे 

Tuesday, 7 July 2015

मैं उन्ही को चाहता हूँ जो मुझको चाहते है

मैं उन्ही को चाहता हूँ जो मुझको चाहते है
वरना बाकी लोग तो जानकारों में आते है

रिश्ते हो या पौधे हम लगाकर छोड़ दे तो
न संभालने की सूरत में वो सूख जाते है

किरदार की फालतू नुमाइश ना कर दोस्त
आप क्या है ये आपके संस्कार बताते है

क़र्ज़ मांगते है हमसे जो पिछले जन्म का
वो किसी न किसी बहाने जरूर टकराते है

आधी रात को मदद का दावा करने वाले
दिन के उजालो में मज़बूरियां गिनवाते है

मत परदेश में कमाने भेज मुझे तकदीर
बच्चे मेरे अभी बहुत जियादा तुतलाते है

इबादत हो जाती है जिनकी महोब्बत बेचैन
वो जीते जी किसी को भूल नही पाते है

Monday, 6 July 2015

झूठी हां में हां कभी मिलाता नही हूँ



झूठी हां में हां कभी मिलाता नही हूँ 
मैं इसलिए हर एक को भाता नही हूँ 

लड़ाईयां क्यूँ लड़ूं मैं हरेक तबके की 
आदमी हूँ अदना सा विधाता नही हूँ 

ख़ामोशी से लगा हूँ अपने मकसद में 
ये करूंगा वो करूंगा चिल्लाता नही हूँ 

आज बेशक बिरादरी संग नही है मेरे 
यह अफ़सोस मैं कभी मनाता नही हूँ 

जिनपे बहस का कोई अर्थ नही होता  
मैं मसले वो कभी भी उठाता नही हूँ 

जो दिल में भी एक दिमाग रखते है 
मैं उन लोगो के समझ आता नही हूँ 

हाँ थोड़ा बहुत बेचैन कमीना हूँ मैं भी 
नाता ख़ुदग़र्ज़ो के संग निभाता नही हूँ 

Sunday, 5 July 2015

यूं सबके दर्द को अपनी आह ना दो

यूं सबके दर्द को अपनी आह ना दो
पछताओगे बिन मांगे सलाह ना दो

वक्त के साथ मिटती है तो मिटने दो
धुंधली यादों को ज्यादा पनाह ना दो

अब तो ख्यालों की चोरी खूब होती है
हर शेर पर नए शायर को वाह ना दो

कुछ वज़ूद के लिए भी बचाकर रखो
अपने मन की कभी सारी थाह ना दो

जैसे की अधेड़ उम्र की महोब्बत बेचैन
कदमो को बिन मंज़िल की राह ना दो

Thursday, 2 July 2015

कुचलकर रिश्तों को लगे है दौलत कमान में

किसी का बुरा नही करता कभी खुदा जमाने में
वो तो लगा है आदमी ही आदमी को मिटाने में

ये कैसी भूख सवार हो गई है हमारे जहन पर
कुचलकर रिश्तों को लगे है दौलत कमान में

उसी दिन से हो गया था बनवास संबधो को
बेटा बैठने लगा था बाप के जबसे सिरहाने में

जबकि मौत सबको आनी है हो राजा या रंक
फिर क्यूँ लगे है एक दूजे को नीचा दिखाने में

गुज़रती उमर पर सोचो कभी बैठ तन्हाई में
रहेंगे याद किस किसको हम किस बहाने में

कोई अपना है तो इशारो में ही समझ जायेगा
ऊर्जा मत गँवाओ फालतू चीखने चिल्लाने में

जिन्दा है तो जिन्दा है मरे तो मर ही जायेंगे
बात छोटी बेचैन बड़ी है समझने समझाने में






कदर वक्त पर न तो हुनर अपाहिज हो जाता है

ये सच है देर सवेर मेहनत रंग लाती है लेकिन
कदर वक्त पर न तो हुनर अपाहिज हो जाता है

बड़ी बड़ी बातें ही होती है बड़े काम नही होते है
टकरा कर हकीकत से जरूरतमंद चिल्लाता है

अफ़सोस से कही ज्यादा उनपे हैरत हो रही है
समाज सेवा से जिनका आज सीधा नाता है

सियासत-ओ-कलाकारी ही फ़क्त ऐसे फिल्ड है
उम्र के साथ साथ ही जिसमे निखार आता है

आज दौलत के बूते पर सब कुछ तो हो रहा है
हो खुदा का या सरकारी निज़ाम आंसू बहाता है

मनोरंजन की आड़ में संस्कृति से रेप हो रहा है
आज का गीत संगीत युवाओ को बरगलाता है

ना मोदी खरा उतरा न फेयर लवली खरी उतरी
बेचैन कई जुमलों पर आवाम ठहाके लगाता है


Tuesday, 30 June 2015

जिंदगी क्या है ये तो वक्त ही समझाता है

संबधों का निचोड़ तभी निकलकर आता है
आदमी जब हर एक तरफ से घिर जाता है

किसी के समझाने से समझ नही आती है
जिंदगी क्या है ये तो वक्त ही समझाता है

जहाँ हौंसले से बड़ा कद ख्वाईश का होगा
नाकामी का अंदेशा वही पर मुह उठाता है

सुरक्षा चक्र दुआओ का उन्हें घेरे रखता है
जिन लोगो के जिन्दा पिता और माता है

उसके व्यवहार में झूठ का तड़का मिलेगा
बात बात पर जो आदमी कसमे खाता है

मेहनत से कतराया हुआ नाकारा मुफ़लिस
अक्सर बाप दादाओ की दौलत गिरवाता है

ना होती तवायफें तो सुखनवर भी ना होते
आपस में मेल इनका दर्द-ओ-फन खाता है

सब ले रहे है अपने अपने हिस्से की सांसे
बेचैन कौन किसका यहाँ भाग्य विधाता है 

Sunday, 21 June 2015

फादर्स डे पर मेरी और से ,,,



मुझे अपनी और जमाने की औकात समझ में आ गई
बाउजी क्या गए दुनिया से कायनात समझ में आ गई

मैं अब अनसुनी नही करता हूँ हो बात कोई भी बाउजी
क्यूँ पाँव दबाते वक्त मारी थी वो लात समझ में आ गई

देने लगी है जब से पहरा मेरे सिरहाने पर जिम्मेदारियां
सचमुच कितनी लम्बी होती है रात समझ में आ गई

मेरा इससे जियादा ज्ञान बताओ क्या बढ़ेगा दुनिया का
यार प्यार और रिश्तेदारो की भी जात समझ में आ गई

अच्छे बुरे की समझ बेचैन लगभग आने लगी है क्यूकी
अब बाउजी की झिड़कियों भरी हर बात समझ में आ गई

Saturday, 20 June 2015

आदमी जब तक सच को निंगलता नही है

आदमी जब तक सच को निंगलता नही है
उसके भरम का हिमालय पिंघलता नही है

बुज़ुर्गो की दुआ और राय बेहद लाज़मी है
वरना सकूँ का पौधा फूलता फलता नही है

बस इतना ही पढ़ा देखा आज तलक मैंने
असर मुफ़लिस की हाय का टलता नही है

मानो तो दामाद बेटो से बढ़कर चैन देता है
किसने कहा बेटियो से वंश चलता नही है

टाइमपास होता है जिनके प्यार का टोटल
उनका जुदाई में कभी मन मचलता नही है

जब तक न पहुंचे जरुरतमंदो तक रौशनी
अपनी मर्ज़ी से आफताब भी ढलता नही है

जिंदगानी धोखा नही देती सुख से मरता है
जो आदमी रिश्तो को कभी छलता नही है

कमीनेपन का कोर्स पूरा होता नही बेचैन
लीडर जब तलक पार्टिया बदलता नही है



Wednesday, 17 June 2015

अपना अपना राग अपना अपना व्यवहार है सबका
मैं क्यूँ परेशान होऊँ अपना अपना विचार है सबका

कोई पैदल तो कोई गाडी में कोई जहाज में चलता है
वक्त और मौके के मुताबिक़ जीवन रफ़्तार है सबका

मैं अव्वल तो किसी को अपना रकीब मानता ही नही
कोई मुझे माने तो माने सोच का अधिकार है सबका

खीज अपनी नाकामी की किसलिए उतारूँ किसी पर
किसी से शिकायत नही व्यवहारिक प्यार है सबका

कोई क्यूँ माने तुम्हारी महोब्बत ही पाक महोब्बत है
खुद की नज़र में दुनिया से अलग दिलदार है सबका

हर एक शख्स बंधा हुआ है अपने संबधो के दायरे में
दोस्तों दखल ना करो अपना अपना संसार है सबका

एक हद तक तो साथ निभाएगा निभाने वाला बेचैन
उसके बाद नही यहाँ अपना अपना परिवार है सबका 

Monday, 15 June 2015

जरूरत बड़े से बड़े को भी झुका देती है


जिंदगी भरम का जब पर्दा उठा देती है
जरूरत बड़े से बड़े को भी झुका देती है  

मैंने देखी है संबधो की गहराई नापकर 
उम्मीदों का मज़बूरी बहम मिटा देती है 

सदा रखना चाहिए याद चुगलखोरों को 
इक जरा सी चिंगारी आग लगा देती है 

रिश्तो की फ़ौज भी उतना दे नही सकती 
जितना प्यार औलाद को एक माँ देती है 

यकीन नही होता जिनको खुदी पर बेचैन 
उन सवारों को कश्तियाँ खुद डूबा देती है 















Saturday, 13 June 2015

उसूलो की बात तो करना बहुत आसान है

उसूलो की बात तो करना बहुत आसान है
निभाओ तो जानो खुद में कितनी जान है

अपनी बर्बादी की झूठी खबर फैलाकर देखे
अपनेपन का रिश्तेदारो पर जिसे गुमान है

यकीं है मेरे वज़ूद पर तो चली आ मंज़िल
मेरा बंद गली में एक कच्चा सा मकान है

बात तो जब है जब जनून को दिशा मिले
वरना तो हर सख्स के सीने में तूफ़ान है

नादान ना-समझ जिसे अहसास बोलते है
उसी वजह सैकड़ो जिंदगानियां हलकान है

अपनी दिक़्क़तों पर इतना दुखी मत होवो
हर सख्स किसी न किसी कारण परेशान है

हर शै से भारी बोझ है जेब का खाली होना
मन बेचैन हलका रखना पैसे को वरदान है


Wednesday, 10 June 2015

मुमकिन नही कामयाबी बुरे दौर के बिना



ज़िंदगी खामोश है ख्वाबो के शोर के बिना 
मुमकिन नही कामयाबी बुरे दौर के बिना

अपने जहन में बिठा लो ये बात नौजवानो 
बशर कुछ भी नही साहस की डोर के बिना 

तू फ़िज़ूल बहस मत कर दिल के चौकीदार 
चोरी हो नही सकती कही भी चोर के बिना 

मालूम है अंधेरो को इसलिए तो गरूर में है 
दिन निकल नही सकता कभी भोर के बिना 

जहाँ भर की ख़ाक छानकर मैं लौट आता हूँ 
दिल लगता नही बेचैन मेरा इंदौर के बिना 


Sunday, 7 June 2015

तीन पैग तक तो उदासी महबूबा को बुलाती है

तीन पैग तक तो उदासी महबूबा को बुलाती है
उसके बाद केवल दिवंगत माँ की याद आती है

हदें पहचानते है मेरे पीने की शहर के ठेकेदार
इसलिए तो मयखानों में पर्चियां चल जाती है

शराबखोरी से मुझको बचपन से ही नफरत है
बोतल देखते ही रूह खत्म करो बुदबुदाती है

करोड़ो का कर्ज़ा मगर फिर भी मौज मस्तियाँ
समझ नही पाया कुछ लोगो की कैसी छाती है

किस मंडी में ले जाऊं अपनी बेबसी के गुलाब
यहाँ हर दुकान से खुदगर्ज़ी की बू ही बू आती है

ख़ुदकुशी की कोशिश वज़ूद ने कई बार की है पर
मेरे संस्कारो की सीख अक्सर आड़े आ जाती है

दीदार की भूख ने जिनको भिखारी बना दिया है
वो जानते है रूह अनाज नही अहसास खाती है

कही और जाकर बोलता है मेरी रगो का नशा
बेचैन तन्हाईयाँ मेरी इसीलिए तो मुस्कुराती है 

रूह की बुनियाद हिला देगी ये लम्बी उदासी

तू सचमुच जुड़ा है गर मेरी जिंदगी के साथ
तो कबूल कर मुझको मेरी हर कमी के साथ

रूह की बुनियाद हिला देगी ये लम्बी उदासी
हमेशा मत रहा कर आँखों की नमी के साथ

इससे ज्यादा यकीं बाप क्या करे रिश्तो पर
बेटी विदा कर देता है एक अजनबी के साथ

बाऊं जी मरने से पहले मुझे बताकर गए थे
समय शतरंज खेलता है हर आदमी के साथ

परेशान मत हो बेचैन इश्क और तिज़ारत में
जीते जी पेश आती है दिक्क़ते सभी के साथ







Saturday, 6 June 2015

सचमुच मैगी जैसी ही तो थी उसकी महोब्बत

सचमुच मैगी जैसी ही तो थी उसकी महोब्बत
कैरियर की सेहत जिसने बिगाड़ी बरसो तक

मौके हज़ार दिए उसके मिजाज ने हकीकत के
मगर रहे हम भी अनाड़ी के अनाड़ी बरसो तक

जिस रुट पर हो हर एक जंक्शन जफ़ाओ का
कोई कितना खींचे वफ़ा की गाडी बरसो तक

सरकार-ओ-मौसम की साज़िश ने खदेड़ दिया
वरना खूब की थी हमने खेतीबाड़ी बरसो तक

जिम्मेदारियों ने घेर लिया हमको हरसू वरना
हम भी रहे है अहसास के खिलाड़ी बरसो तक

कैसे भूल पायेगा खंडहर जिंदगानी का बेचैन
जिसने ईंटे मेरे भरोसे की उखाड़ी बरसो तक 

पेड़ के जैसी जिंदगी किरदार में लाओ दोस्तों



हर साल अपना जन्मदिन यूं मनाओ दोस्तों
कम से कम एक पौधा जरूर लगाओ दोस्तों

सब आने वाली पीढ़िया सेहतमंद हो जाएगी
पेड़ के जैसी जिंदगी किरदार में लाओ दोस्तों

शौक है अगर गाड़ियां छाँव में खड़ी करने का
सूख रहे पेड़ पौधों तक पानी पहुँचाओ दोस्तों

हुआ हरा भरा पर्यावरण तो पंछी दुआएं देंगे
इसलिए कहता हूँ दुआ मत ठुकराओ दोस्तों

बेशक तुलसी लगा लो तुम आँगन में बेचैन
जंगली झाड़ यानी केक्टस मत उगाओ दोस्तों 

Friday, 5 June 2015

जब भी अपनी जड़ो से कोई पेड़ दूर हो जाता है

जब भी अपनी जड़ो से कोई पेड़ दूर हो जाता है
शाख का हर पत्ता सूखने पर मज़बूर हो जाता है

सबसे पहले माँ बाप की निगाहो में खटकता है
अपनी जवानी पर जब बेटे को गरूर हो जाता है

किसी वक्त भी कर सकती है गलतफहमी वार
दो लोगो के बीच प्यार जब भरपूर हो जाता है

हार न माने जिद्द पर अड़ा रहे अगर मेहनतकश
फिर मुकदर को भी दोस्त सब मंज़ूर हो जाता है

छोड़ ही देना चाहिए उनको उनके हाल पर बेचैन
जिनके दिमाग में बे वजह का फ़ितूर हो जाता है