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Friday, 7 December 2012

मैं जीने के लिए ज़हर खाऊँ की नही

हूँ कशमकश में कदम उठाऊँ की नही
छोड़कर हयात-ए-बज्म जाऊं की नही

सचमुच में होती है मौत महबूबा तो
मैं जीने के लिए ज़हर खाऊँ की नही

मुझे बख्शे है जिसने खून के आंसू
मैं जिंदगी भर उसको रुलाऊँ की नही

रोज पूछ लेता मुह को आता कलेजा
बोल मैं निकलकर बाहर आऊँ की नही

मेरे बाद रहेगा वो बेचैन होकर
शर्त ये अपने आप से लगाऊँ की नही


Thursday, 6 December 2012

बे-मतलब बेकसूर मैंने नही छोड़ा वो छोड़कर गया है

बे-मतलब बेकसूर मैंने नही छोड़ा वो छोड़कर गया है
वो जानता था मैं अपाहिज हूँ इसलिए दौडकर गया है

अब पागलपन में देता रहूँगा उसे रोज नया इलज़ाम
दिल और दिमाग को परेशानियों से ऐसे जोड़कर गया है

ख़्वाबों को तो छोडिये यहाँ तो जीने से भी मन भर गया है
वो कम्बखत मेरे हौसले को इस कदर तोड़ कर गया है

उसका चलते ही जिक्र मुसलाधार बरस उठती है आँखे
इतने बुरे तरीके से वो मेरी रूह झंझोड़ कर गया है

शायद ही जीते जी आये कभी इस बात का सब्र बेचैन
वो जान बुझकर मेरी राह से अपनी राह मोड़कर गया है

मैं जिंदगी पर इन दिनों किताब लिख रहा हूँ

मैं जिंदगी पर इन दिनों किताब लिख रहा हूँ
भारी पड़े कौन कौन से ख्वाब लिख रहा हूँ

सच को सच और झूठ को झूठ पेश करके
वक्त की हेराफेरी का हिसाब लिख रहा हूँ

जिससे वास्ता नही उसकी क्यूं करूं पैरवी
गैर जरूरी सवालों के जवाब लिख रहा हूँ 

जो होगा देखा जायेगा परवाह नही अब 
करके हिम्मत खुलासों को जनाब लिख रहा हूँ

हिज्र में कोयले की तरह सुलगाते है रूह
मैं अश्को को इसलिए तेज़ाब लिख रहा हूँ

इबादत में नही मय्यत पर गिरने वाला
माफ़ करना तुझको वो गुलाब लिख रहा हूँ

भला कईयों का होगा इस बहाने बेचैन
कौन रखता है कितने नकाब लिख रहा हूँ

Wednesday, 5 December 2012

निभानी है मुझको और भी जिम्मेदारियां कई

आकर मुझे दर्द के दरिया से बाहर निकाल दे
निभानी है मुझको और भी जिम्मेदारियां कई

कम से कम तू तो मेरा उमर भर साथ दे दे
रिश्तेदार कर चुके है साथ मेरे गद्दारियां कई

अब इतने पेचीदा मत कर वजूद के हालात
तेरे गम के सिवा जिंदगी में है दुश्वारियां कई

बारूद का ढेर बन गई है सब यादें तुम्हारी
कर सकती है धमाका अश्कों की चिंगारियां कई 

कबूल करने से कद छोटा नही होता बेचैन
आदमी करता है मसखरी में मक्कारियां कई

Monday, 3 December 2012

बिन तेरे इतिहास कोई गढ़ ना पाऊंगा




जूते पहनकर मन्दिर में चढ़ ना पाऊंगा
कभी कलमा बेवफाई का पढ़ ना पाऊंगा

मौके हजार आ जाए हाथों में लेकिन
बिन तेरे इतिहास कोई गढ़ ना पाऊंगा

तू खोल दे आकर वजूद पर लगी बेड़िया
वरना एक कदम भी आगे बढ़ ना पाऊंगा

जो दिल में आयेगा बेबाक कह दूंगा
मैं सच पे, झूठ दोस्त कभी मढ न पाऊंगा

माफ़ करना चुभन होती है मुझे बेचैन
मैं शेर अपना मुकर्र कोई पढ़ ना पाऊंगा



Sunday, 2 December 2012

बंदिश है तेरे ख्वाबो में भी आऊँ तो आऊँ कैसे

बता एक खबर ख़ुशी की तुझ तक पहुँचाऊ कैसे
बंदिश है तेरे ख्वाबो में भी आऊँ तो आऊँ कैसे

वो काम हो गया है जो तू चाहता था मुद्दत से
अब दूर बैठा है मैं बात  कान में बताऊं कैसे

मैं खुश तो बहुत हूँ मगर मेरी आँखों में नमी है
तेरे दामन पर अब ख़ुशी के अश्क छलकाऊ कैसे

मुझे उसने बुलाया है जिसका इंतजार था कब से
बता अब तुझसे पूछे बगैर पास उसके जाऊं कैसे

किस तरह होगी तुम्हारे बिन सब तैयारिया बेचैन
मैं कशमकश में हूँ बात चढाऊँ तो चढाऊँ कैसे


Saturday, 1 December 2012

ऐसी क्या चीज़ थी जो उसको नही दे पाया

मेरे हर हाल पर रखता है वो नजर यारो
करता हूँ क्या मैं उसे होती है खबर यारों

वो जानबूझ कर फिर इतना सताता क्यूं है
क्या वो चाहता है रोता रहू उमर भर यारो

ऐसी क्या चीज़ थी जो उसको नही दे पाया
जब दे चुका वजूद तक का करके कलम सर यारो

हां कूच दुनिया से कब का कर जाता मैं लेकिन
वो तन्हा रह जायेगा रोके है यही डर यारो

मैं होकर बेचैन सोचता हूँ उसने आखिर
छिपा के फूलों में मारे है क्यूं पत्थर यारों



ये दिन ही दिखाना था तो ना आता हयात में

हाय क्यूं सेंध लगाई तुमने मेरे ज़ज्बात में
ये दिन ही दिखाना था तो ना आता हयात में 

मैं ढूंढता रहता हूँ शक्ल खुद की रात-ओ-दिन
चेहरे पर उगती ढाढ़ी के इस जंगलात में

फिर बैठकर अफ़सोस ही जताना तुम उमर भर
दम निकलेगा मेरा किसी दिन बातों ही बात में

कोई ढंग से जानता हो तो बतला दो दोस्तों
इबादत का समर दोजख है क्यूं कायनात में

मैं कब का भूला देता उस शख्स को बेचैन
रिहायश नही करता वो अगर ख्यालात में



Friday, 30 November 2012

मेरे ज़ज्बात को तुमने सहलाया क्यूं था

दूर ही जाना था तो पास में आया क्यूं था
मेरे ज़ज्बात को तुमने सहलाया क्यूं था

मैं बेहद खुश था छोटी सी अपनी दुनिया में
तुमने दुनिया से मुझे बाहर बुलाया क्यूं था

मारना ही था तमाचा तो मुह पे मार देता
तुमने अहसास को हथियार बनाया क्यूं था

दर्द के रिश्ते से बढ़कर नही है रिश्ता कोई
बांधकर हाथ में घड़ी तुमने बताया क्यूं था

रोने देता मुझे मुलाकात पर समझकर पागल
पौछ्कर आंसू मेरे चुप ही कराया क्यूं था

झूठ था सब कुछ तो फिर वो मुलाकात क्या थी 
पहरों मुझको गोद में तुमने सुलाया क्यूं था

सच यही है मैं चैन मरकर भी नही पाऊंगा
मेरे अल्लाह मुझे दुनिया ही लाया क्यूं था

Thursday, 29 November 2012

कांप उठता हूँ तेरा जब भी नाम लेता हूँ

कांप उठता हूँ तेरा जब भी नाम लेता हूँ
मुहं को आते हुवे कलेजे को थाम लेता हूँ

हाँ इस तरह मैंने नशीली हयात कर डाली
कभी अश्को के तो कभी मय के जाम लेता हूँ

तू मेरे खुदा इश्क का था और रहेगा सदा
इसलिए नाम तेरा सुबह-ओ-शाम लेता हूँ

मन की हालत चेहरे पर उभर ही जाती है
कहने को तो मैं समझदारी से काम लेता हूँ

अपने बेचैन के खातिर तू लौटकर आजा
लो मैं अपने सर सारे ही इल्जाम लेता हूँ

Wednesday, 28 November 2012

देता है कौन साथ उमर भर किसी का

देता है कौन साथ उमर भर किसी का
बोझ खुद ही उठाना पड़ेगा जिंदगी का

अहसास रिश्ते नाते कदम भर ही चलेंगे
हाँ सदियों से तजुर्बा रहा है आदमी का

ज़ज्बात की बारिश है वादे और कुछ नही
यारो ये  दौर होता है फ़क्त संजीदगी का

समझ जाना असर रूह पर भी हो गया है
आँखों में नमी भर दे जो लम्हा ख़ुशी का

मिलेगा हर हाल में अगर किस्मत में है वो
बस बेचैन यही है इलाज़ बेकसी का



सब कुछ तुम्हारा है कही भी करिये बसेरा

ये दिल है ये दिमाग है ये जहन है मेरा
सब कुछ तुम्हारा है कही भी करिये बसेरा

कब्जा था इस रूह पर मुद्दत से किसी का
छुडवाया है मुश्किल से कर जादू का घेरा

आँखों में रहो सांसो में या धडकनों में तुम
लहू बन रगों में दौड़ने का हक़ है तेरा

ना जाने कितनी रातों से मैं मुन्तजिर था
मेरे दाता शुक्रिया किया जो तुमने सवेरा

वैसे भी जाने वालों को किसने रोका है
बेचैन आना जाना कुदरत का है फेरा

Tuesday, 27 November 2012

अल्लाह उसे जहाँ भर का सकून देना

अल्लाह उसे जहाँ भर का सकून देना
कभी जरूरत पड़े तो मेरा खून देना

देना उलझनों को मेरे घर का पता
उसे कभी ना कोई उधेड़बून देना

जिंदगी भर उसी के हक में फैंसला हो
अ कुदरत उसे ऐसा कानून देना

उसको खूब चाहने वाले मिले मगर
कभी मुझसा ना कोई अफलातून देना

जिसको पढकर रूह झूम उठे बेचैन
उसको खतों में ऐसा मज़मून देना

Monday, 26 November 2012

तुझसे तो कही बेहतर अंगूर की बेटी निकली

तुझसे तो कही बेहतर अंगूर की बेटी निकली
ढलते ही शाम देखकर मुझको मुस्कुरा देती है

जितना भी अहसान मानू कम है तन्हाइयों का
खूब रोने के बाद अश्को को सूखा देती है

दोस्तों बचपन से नफरत थी मुझको मयकशी से
उसकी याद मगर नफरतों को भूला देती है

आज मेरी तरफ है तो कल उसकी ओर होगा
यादें नम्बर से रोने का सिलसिला देती है

मैंने देखी है सच्ची महोब्बत में वो ताकत
तडफ तो वजूद की जडो तक को हिला देती है

इतनी पी ले बेचैन की हद की हद हो जाए
सुना है बेहोशी में मौत अपना बना लेती है



Sunday, 25 November 2012

शायद ज्यादा पी ली है आज शराब दोस्तों

शायद ज्यादा पी ली है आज शराब दोस्तों
कमबख्त हो रही हालत कुछ खराब दोस्तों

क्यूं टिक नही रहे है साले पैर जमीन पर
मुझको जाना है करने कुछ हिसाब दोस्तों

सांसो की तरह जुबा भी लडखडा उठी है
सुबह दूंगा सब सवालों का जवाब दोस्तों

उसकी खूबियों का जिक्र अब क्या करू भला
उसका पसीना था खुशबू-ए-गुलाब दोस्तों

रहने लगेगी हर घड़ी आँखे सुर्ख तुम्हारी
मत देखना कभी महोब्बत में ख्वाब दोस्तों

दम कल निकलता बेचैन अब ही निकल जाये
नही चाहिए लम्बी उम्र का खिताब दोस्तों 

उस पर लिखे एक एक शेर हमे रुलाते है

दिल में यादों के नश्तर कुछ यूं सुई चुभाते है
उस पर लिखे एक एक शेर हमे रुलाते है

अश्क नही आँखों से अब लहू टपकने लगा है
क्या होगा हम बिगडती हालत से घबराते है

रकीब को भी ना मिले ऐसी तडफ-ओ-बेबसी
हम सजदे में दिन रात यही दुआ फरमाते है

मुझको तो इल्म नही है अपनी हालत का मगर
मुश्किल बचेगा देखने वाले ही बताते है

इश्क है तो बुरे ख्याल भी आयेंगे बेचैन
मानता नही जबकि मन को खूब समझाते है

Saturday, 24 November 2012

या तो शराब में तैरकर तेरा गम निकलेगा


या तो शराब में तैरकर तेरा गम निकलेगा
वरना तब तक पीऊंगा ना जब तक दम निकलेगा

मेरे बाद, जमाने के साथ तुम भी देखोगे
फिर कभी ना तेरी जुल्फों-सोच का खम निकलेगा

इसलिए बैठ गया हूँ साँझ ढलते ही पीने
आखरी जाम के साथ में रंजो-अलम निकलेगा

आज काबू से बाहर हो चला है दर्दे बेबसी
शायद इस दिल के धडकने का भ्रम निकलेगा

बेचैन रूह को चाँद सी ठंडक बख्शने वाले
नही सोचा था तेरा लहजा यूं गरम निकलेगा

खम= उलझन

बहर-ओ-वजन में ख्याल कम तोलता हूँ

आज मेरे एक शायर दोस्त के चेले से तीखी गुफ्तगू हुई तो लिखने पर मजबूर हुआ ..........

बहर-ओ-वजन में ख्याल कम तोलता हूँ
मैं तो सीधे सीधे मन की बात बोलता हूँ

रखकर गुरेज हर्फों की जादूगरी से
सादगी का शेरो में रंग घोलता हूँ

कुछ भी तो नही रखता दिल में छिपाकर
ज़ज्बात की गाँठ सरेआम खोलता हूँ

उस्तादों सी संजीदगी नही है मुझमे
मैं शागिर्दों की तरह मस्त डोलता हूँ

छेड़ता हूँ बेचैन फक्त दिलजलो को
खुशहालों का कलेजा कम छोलता हूँ


Thursday, 22 November 2012

तू कितना घटिया था ख्याल दिल से मरने नही दूंगा

तेरी  बेवफाई के जख्मो को कभी भरने नही दूंगा
तू कितना घटिया था ख्याल दिल से मरने नही दूंगा

थूकता रहूँगा सुबह और शाम तेरी तस्वीर पर
तेरी इबादत अब धडकनों को करने नही दूंगा

ले लेकर तेरा नाम बहुत रो चुका बिलख-बिलखकर
आइन्दा आंसुओ को दिन रात झरने नही दूंगा

निकाह मौत से करना पड़ा तो कर लूँगा चुपचाप
अब दर्द-ए-जुदाई को जियादा निखरने नही दूंगा

बेचैन तेरे साथ गुज़ारे हुवे लम्हों की कसम
तुम्हारी यादों को कदम ज़हन में धरने नही दूंगा

Wednesday, 21 November 2012

वो घटियापन की सब हदों को पार किये बैठा था

मेरा दिल जिस शख्स का इंतजार किये बैठा था
वो घटियापन की सब हदों को पार किये बैठा था

समझता था मैं जिसको जमाने में सबसे जुदा
बदलकर नाम अपने दर्जनों यार किये बैठा था

बेवकूफी में बहाए जिस बदजात के लिए अश्क
ना जाने मुझसे कितनो को बीमार किये बैठा था

मन झूमता रहता था जिस अहसास के आंगन में
उस दर्द के रिश्ते को वो शर्मसार किये बैठा था

शुक्र है मिल गई रिहाई वक्त के रहते हुवे बेचैन
वरना झूठ से रूह को गिरफ्तार किये बैठा था