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Friday 14 September 2012

न जाने कौन पायेगा मुस्कुराहट तुम्हारी

हमें तो अक्सर मिलती है गुर्राहट तुम्हारी
न जाने कौन पायेगा मुस्कुराहट तुम्हारी

उफ़.जिस्म के पुर्जे पुर्जे की बेजोड़ नक्कासी
फिर ऊपर से जानलेवा खिलखिलाहट तुम्हारी

ये तेरे हुश्न की महक है या काला जादू
अंधे तलक पहचान लेते है आहट तुम्हारी

जब भी देखा है गुस्सा नाक पर देखा है
आखिर कब देख पायेंगे नरमाहट तुम्हारी

सच बता तो सही बेचैन ये क्या माजरा है
क्यूं बढ़ रही दिनों दिन छटपटाहट तुम्हारी

2 comments:

yashoda Agrawal said...

आपकी यह बेहतरीन रचना बुधवार 19/09/2012 को http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर लिंक की जाएगी. कृपया अवलोकन करे एवं आपके सुझावों को अंकित करें, लिंक में आपका स्वागत है . धन्यवाद!

Yashwant R. B. Mathur said...

बहुत ही बढ़िया

सादर