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Sunday, 27 November 2011
पीने के बाद हनुमान बन जाता हूँ
पीने के बाद हनुमान बन जाता हूँ
अपने मोहल्ले की शान बन जाता हूँ
मैं खूब खोलता हूँ पोल पड़ोसियों की
जब सच बोलने की खान बन जाता हूँ
जब लगाते है लोग शर्त मेरे होश पर
तब मैं गीता और कुरआन बन जाता हूँ
कर के देखो मुझसे किसी बात पर बहस
नशे में जहाँ भर का मैं ज्ञान बन जाता है
देता हूँ बेचैन ऊंचाई छोटे भाई को मैं
जाम लगाकर जब आसमान बन जाता हूँ
अपने मोहल्ले की शान बन जाता हूँ
मैं खूब खोलता हूँ पोल पड़ोसियों की
जब सच बोलने की खान बन जाता हूँ
जब लगाते है लोग शर्त मेरे होश पर
तब मैं गीता और कुरआन बन जाता हूँ
कर के देखो मुझसे किसी बात पर बहस
नशे में जहाँ भर का मैं ज्ञान बन जाता है
देता हूँ बेचैन ऊंचाई छोटे भाई को मैं
जाम लगाकर जब आसमान बन जाता हूँ
Friday, 25 November 2011
बस उम्मीद ने ही जीना दुश्वार कर दिया
दुश्मनों की चालों का मैं तो दे दूंगा जवाब
क्या होगा गर दोस्तों ने भी वार कर दिया
अब तक तो यही सिखलाया है तजुर्बे ने
वही मुकरेगा जिसने इकरार कर दिया
वही जुबान कहलाएगी रसभरी दोस्तों
जिसने वादों का तीर दिल के पार कर दिया
महज़ एक वादा वफा करने की चाह में
क्यूं भरोसे का कत्ल तुमने यार कर दिया
बकाया तो सब कुछ काबू में है बेचैन
बस उम्मीद ने ही जीना दुश्वार कर दिया
क्या होगा गर दोस्तों ने भी वार कर दिया
अब तक तो यही सिखलाया है तजुर्बे ने
वही मुकरेगा जिसने इकरार कर दिया
वही जुबान कहलाएगी रसभरी दोस्तों
जिसने वादों का तीर दिल के पार कर दिया
महज़ एक वादा वफा करने की चाह में
क्यूं भरोसे का कत्ल तुमने यार कर दिया
बकाया तो सब कुछ काबू में है बेचैन
बस उम्मीद ने ही जीना दुश्वार कर दिया
Wednesday, 23 November 2011
मेरे हिस्से की मुझको खैरात याद आई
तेरे लबों को देखकर इक बात याद आई
गुलाब को भी अपनी औकात याद आई
सरे बज्म खिलखिलाकर तुम क्या हंसे
मुझको चांदनी की वो बरसात याद आई
मैं यूं इतराया अपनी खुशनसीबी पर
कॉलेज के दिनों की मुलाक़ात याद आई
अनजाने में जब मिलाया उसने हाथ
मेरे हिस्से की मुझको खैरात याद आई
अपनी तरह बेचैन जब देखा इक यार
हमें महोब्बत में मिली वो मात याद आई
गुलाब को भी अपनी औकात याद आई
सरे बज्म खिलखिलाकर तुम क्या हंसे
मुझको चांदनी की वो बरसात याद आई
मैं यूं इतराया अपनी खुशनसीबी पर
कॉलेज के दिनों की मुलाक़ात याद आई
अनजाने में जब मिलाया उसने हाथ
मेरे हिस्से की मुझको खैरात याद आई
अपनी तरह बेचैन जब देखा इक यार
हमें महोब्बत में मिली वो मात याद आई
आज अपने सुदामा को पिला दे कृष्णा
होश का गिरेबां पकड़ के हिला दे कृष्णा
आज अपने सुदामा को पिला दे कृष्णा
कह रहे है लोग तू मस्ती का मालिक है
फिर थोड़ी मेरे जाम में मिला दे कृष्णा
अपना घर बसाऊं या फिर शराब पिऊ
फैसला कोई मजबूत सा सुझा दे कृष्णा
इक बार मिलने से तो दिल ना भरेगा
मुलाक़ात का ख़ास सिलसिला दे कृष्णा
बेचैन रहूँ उम्र भर होश के लिए मैं
तू नशे का फूल ऐसा खिला दे कृष्णा
आज अपने सुदामा को पिला दे कृष्णा
कह रहे है लोग तू मस्ती का मालिक है
फिर थोड़ी मेरे जाम में मिला दे कृष्णा
अपना घर बसाऊं या फिर शराब पिऊ
फैसला कोई मजबूत सा सुझा दे कृष्णा
इक बार मिलने से तो दिल ना भरेगा
मुलाक़ात का ख़ास सिलसिला दे कृष्णा
बेचैन रहूँ उम्र भर होश के लिए मैं
तू नशे का फूल ऐसा खिला दे कृष्णा
Monday, 21 November 2011
काश कुछेक लोगों से रिश्तेदारी ना होती
वो दूर है इसलिए तो याद आता है अक्सर
होते एक ही शहर में तो बेकरारी ना होती
जीऊंगा जब तक ना मिट सकेगा ये धोखा
काश कुछेक लोगों से रिश्तेदारी ना होती
मिल ही जाता हाथों हाथ मेहनत का फल
गर मुझसे मेरे नसीब की पर्देदारी ना होती
ख़ाक खूब पीते है वो लोग जमाने में
सर पर जिसके किसी की उधारी ना होती
आ ही जाती समझ में अगर बात संतों की
फिर दुनिया में बेचैन मारा मारी ना होती
Sunday, 20 November 2011
जंगल में सीधे पेड़ पहले काटे जाते है
जंगल में सीधे पेड़ पहले काटे जाते है
लोग शरीफजादों को इसलिए सताते है
मैंने छुपकर सुनी है अमीरों की बातचीत
वो मुफलिसों को आदमी थोड़े बताते है
तू परदेश में कमाने मत भेज तकदीर
अभी तक मेरे नौनिहाल बहुत तुतलाते है
जड़ों की मिट्टी को ठुकराकर कुछ नही बचेगा
यारों बियाबा के पेड़ रोज़ ही बतियाते है
बस होशमंदों को थोडा होश रहे बेचैन
शराबी नशे में महज़ इसलिए बुदबुदाते है
लोग शरीफजादों को इसलिए सताते है
मैंने छुपकर सुनी है अमीरों की बातचीत
वो मुफलिसों को आदमी थोड़े बताते है
तू परदेश में कमाने मत भेज तकदीर
अभी तक मेरे नौनिहाल बहुत तुतलाते है
जड़ों की मिट्टी को ठुकराकर कुछ नही बचेगा
यारों बियाबा के पेड़ रोज़ ही बतियाते है
बस होशमंदों को थोडा होश रहे बेचैन
शराबी नशे में महज़ इसलिए बुदबुदाते है
Saturday, 19 November 2011
वो सूदखोर नही तो मतलबी जरुर है
ज़हाज़ उड़ाने का उसे काम क्या आया
व्यवहार भी कमबख्त हवाई करता है
यूं तो मिलता है मुझसे भी मुस्कुराकर
मगर पीठ पीछे वो बुराई करता है
मैं मरूंगा जब तुम समझोगे छोटे
क्यूं फ़िक्र का सौदा बड़ा भाई करता है
अपनेपन की उससे उम्मीद ना रखिये
जो शख्स रिश्तों को तमाशाई करता है
वो सूदखोर नही तो मतलबी जरुर है
पैसे की औकात से नपाई करता है
उसको ही बेवकूफ कहती है दुनिया
बिना सोचे जो शख्स भलाई करता है
जीते जी कभी भी खुल सकते है बेचैन
वक्त जिन जख्मो की तुरपाई करता है
व्यवहार भी कमबख्त हवाई करता है
यूं तो मिलता है मुझसे भी मुस्कुराकर
मगर पीठ पीछे वो बुराई करता है
मैं मरूंगा जब तुम समझोगे छोटे
क्यूं फ़िक्र का सौदा बड़ा भाई करता है
अपनेपन की उससे उम्मीद ना रखिये
जो शख्स रिश्तों को तमाशाई करता है
वो सूदखोर नही तो मतलबी जरुर है
पैसे की औकात से नपाई करता है
उसको ही बेवकूफ कहती है दुनिया
बिना सोचे जो शख्स भलाई करता है
जीते जी कभी भी खुल सकते है बेचैन
वक्त जिन जख्मो की तुरपाई करता है
मेरे भीतर की कस्तूरी मुझे भी तो पता लगे
अल्लाह उसकी मजबूरी मुझे भी तो पता लगे
इंतजार के बीच की दूरी मुझे भी तो पता लगे
उलटे-सीधे ख्यालात दिल में पनाह ले रहे है
बेरहम वक्त की मंजूरी मुझे भी तो पता लगे
एक मुद्दत से खा रहा हूँ मैं ठोकरे दर-ब-बदर
मेरे भीतर की कस्तूरी मुझे भी तो पता लगे
महज़ अंदाज़े से उसे बेवफा करार कैसे दे दूं
आखिर दोस्तों बात पूरी मुझे भी तो पता लगे
सीखना पड़ता है बेचैन ये चमचागिरी का हुनर
करूं कितनी कहाँ जी हुजूरी मुझे भी तो पता लगे
इंतजार के बीच की दूरी मुझे भी तो पता लगे
उलटे-सीधे ख्यालात दिल में पनाह ले रहे है
बेरहम वक्त की मंजूरी मुझे भी तो पता लगे
एक मुद्दत से खा रहा हूँ मैं ठोकरे दर-ब-बदर
मेरे भीतर की कस्तूरी मुझे भी तो पता लगे
महज़ अंदाज़े से उसे बेवफा करार कैसे दे दूं
आखिर दोस्तों बात पूरी मुझे भी तो पता लगे
सीखना पड़ता है बेचैन ये चमचागिरी का हुनर
करूं कितनी कहाँ जी हुजूरी मुझे भी तो पता लगे
Thursday, 17 November 2011
अब तो लड़ेंगे यारों आखरी दम तक
जब पहुँच गये है जिंदगी के खम तक
अब तो लड़ेंगे यारों आखरी दम तक
अपनी मौत को तो मौत आने से रही
आजमाकर तो देखे खुद को भ्रम तक
क्या बिगाड़ लेगी दुश्मन की तरकीब
कोई वार ही जब ना पहुंचेगा हम तक
मिटा देगी आदम ज़ात को मजहबी जंग
मत नफरत बिछाईएगा दैरो हरम तक
यूं ही नही खुल जाते जन्नत के दरवाजे
खुदा नापकर देखते है बेचैन करम तक
जिसने काटे हो कभी मुफलिसी के कुत्ते दिन
गरीबों का हमदर्द तो वही शख्स बन पायेगा
जिसने काटे हो कभी मुफलिसी के कुत्ते दिन
अर्श पर ले जाकर बेशक बैठा दो औकात
भूल कर तो दिखाओ जिंदगी के कुत्ते दिन
अपनी हस्ती पर दोस्त ना इतरा इस कदर
जाने कब आ जाएँ आदमी के कुत्ते दिन
मैंने भी महोब्बत करके देखी है दोस्तों
बहुत रुलाते है बेबसी के कुत्ते दिन
ध्यान से उठाना दुःख की तोहमत बेचैन
इतिहास बन जाते है गमी के कुत्ते दिन
जिसने काटे हो कभी मुफलिसी के कुत्ते दिन
अर्श पर ले जाकर बेशक बैठा दो औकात
भूल कर तो दिखाओ जिंदगी के कुत्ते दिन
अपनी हस्ती पर दोस्त ना इतरा इस कदर
जाने कब आ जाएँ आदमी के कुत्ते दिन
मैंने भी महोब्बत करके देखी है दोस्तों
बहुत रुलाते है बेबसी के कुत्ते दिन
ध्यान से उठाना दुःख की तोहमत बेचैन
इतिहास बन जाते है गमी के कुत्ते दिन
Wednesday, 16 November 2011
चुगली समझता हूँ मैल ख्यालात का
समझ गया हूँ खेल है सारा जज्बात का
अब नही मानता मैं बुरा किसी बात का
बेशक कितनी करें बुराई मेरी दुश्मन
चुगली समझता हूँ मैल ख्यालात का
दिन के उजाले में ही होता है सब कुछ
अब इंतजार नही करता कोई रात का
तंज़ कसने वालों से ही सवाल है मेरा
कितना कद होना चाहिए औकात का
कमीन हर हाल में कमीन कहलायेगा
बेशक लबादा ओढ़ता हो मेरी ज़ात का
वो कल क्या करेगा इसकी फ़िक्र छोडो
जमाना है आजकल नगद करामात का
अगली दफा वो ही बाज़ी मारेगा बेचैन
जिसके समझ आया मतलब मात का
अब नही मानता मैं बुरा किसी बात का
बेशक कितनी करें बुराई मेरी दुश्मन
चुगली समझता हूँ मैल ख्यालात का
दिन के उजाले में ही होता है सब कुछ
अब इंतजार नही करता कोई रात का
तंज़ कसने वालों से ही सवाल है मेरा
कितना कद होना चाहिए औकात का
कमीन हर हाल में कमीन कहलायेगा
बेशक लबादा ओढ़ता हो मेरी ज़ात का
वो कल क्या करेगा इसकी फ़िक्र छोडो
जमाना है आजकल नगद करामात का
अगली दफा वो ही बाज़ी मारेगा बेचैन
जिसके समझ आया मतलब मात का
Monday, 14 November 2011
असली अंदाज़ में आकर मां-माँ कर दूं
सोचता हूँ आज पीकर हंगामा कर दूं
कई दिन हुवे मोहल्ले में ड्रामा कर दूं
दो-दो पैग देकर गली के सब बुढो को
मस्ती का पैदा एक कारनामा कर दूं
बहुत कान ऐंठे है बचपन से फूफा ने
क्यूं ना नशे में उसको मामा कर दूं
सच में अगर वो भी भूल गया है मुझे
खत्म यादों को खरामा-खरामा कर दूं
भूलके शर्म लिहाज़ पीने के बाद बेचैन
असली अंदाज़ में आकर मां-माँ कर दूं
कई दिन हुवे मोहल्ले में ड्रामा कर दूं
दो-दो पैग देकर गली के सब बुढो को
मस्ती का पैदा एक कारनामा कर दूं
बहुत कान ऐंठे है बचपन से फूफा ने
क्यूं ना नशे में उसको मामा कर दूं
सच में अगर वो भी भूल गया है मुझे
खत्म यादों को खरामा-खरामा कर दूं
भूलके शर्म लिहाज़ पीने के बाद बेचैन
असली अंदाज़ में आकर मां-माँ कर दूं
Sunday, 13 November 2011
हमजुबां से खुदा मुझको मिलाता क्यूं नही
कोई मजबूरी है तो मुझे बताता क्यूं नही
वो मेरी तरह यारी में पेश आता क्यूं नही
शक है मुझे समझकर भी नही समझा वो
समझ गया तो ढंग से समझाता क्यूं नही
दांतों तले ऊँगली दबाना तो छुट गया पीछे
मुझको देखकर अब वो शरमाता क्यूं नही
डालकर ख़ाक मेरी बरसों की दीवानगी पर
मेरी हालत पर थोडा रहम खाता क्यूं नही
टकरा ही जाते है बेचैन हर बार दुसरे लोग
हमजुबां से खुदा मुझको मिलाता क्यूं नही
वो दोस्ती से पहले मुखबरी करता है
वो दोस्ती से पहले मुखबरी करता है
तब जाकर अपना शक बरी करता है
करके चिकनी चुपड़ी बातें कमबख्त
मौका मिलते ही वो जादूगरी करता है
हर कदम हर रिश्ते से फरेब मिला है
वो इसलिए बात खोटी-खरी करता हैं
माँ का दर्दे दिल महसूस नही है जिसे
बेटा फिर बेकार ही अफसरी करता है
वो उतना ही शातिर निकलेगा बेचैन
जो जितनी जुबान रसभरी करता है
तब जाकर अपना शक बरी करता है
करके चिकनी चुपड़ी बातें कमबख्त
मौका मिलते ही वो जादूगरी करता है
हर कदम हर रिश्ते से फरेब मिला है
वो इसलिए बात खोटी-खरी करता हैं
माँ का दर्दे दिल महसूस नही है जिसे
बेटा फिर बेकार ही अफसरी करता है
वो उतना ही शातिर निकलेगा बेचैन
जो जितनी जुबान रसभरी करता है
Saturday, 12 November 2011
ख्वाबों को बच्चे समझ पालता ही रहा
मेरा सब्र गेंद की तरह उछालता ही रहा
कल के नाम पर वो मुझे टालता ही रहा
न मालूम था नही हो पाएंगे कभी जवां
ख्वाबों को बच्चे समझ पालता ही रहा
दुबारा टूटे तमाम भ्रम एक-एक करके
दोस्ती में इस बार भी मुगालता ही रहा
इससे ज्यादा ना और कुछ कर सका मैं
बस गजलों पर भडास निकालता ही रहा
जवां होते ही मिला था जो दर्द यारों से
मुझको उमर भर बेचैन सालता ही रहा
कल के नाम पर वो मुझे टालता ही रहा
न मालूम था नही हो पाएंगे कभी जवां
ख्वाबों को बच्चे समझ पालता ही रहा
दुबारा टूटे तमाम भ्रम एक-एक करके
दोस्ती में इस बार भी मुगालता ही रहा
इससे ज्यादा ना और कुछ कर सका मैं
बस गजलों पर भडास निकालता ही रहा
जवां होते ही मिला था जो दर्द यारों से
मुझको उमर भर बेचैन सालता ही रहा
Friday, 11 November 2011
आंसू न मेरी तरह किसी के तेज़ाब हो
इतना भी ना सोचो की दिमाग खराब हो
सवाल उलझते-उलझते लाजवाब हो
रोजाना खुदा से दुआ ये मांगता हूँ मैं
ना मेरे हाथों आज कोई भी अजाब हो
दिवार बटवारे की अगर नही चाहते हो
भाई से भाई का ना कोई हिसाब हो
आँखों की नमी दिलजला देती है बना
आंसू न मेरी तरह किसी के तेज़ाब हो
इतनी मेहर करना खुदा हम दीवानों पर
हालत ना इश्क में कभी भी इज़्तिराब हो
बेटी ही महकाती है घर और आंगन को
बेचैन ऐसा सबके हिस्से में गुलाब हो
Thursday, 10 November 2011
आग और पानी का किसको शौक है
होश औकात ना भूले इसलिए पीता हूँ
वरना खारे पानी का किसको शौक है
वो तो व्यापार में शर्त होती है वरना
अक्सर बेईमानी का किसको शौक है
बात मेरी नही किसी से भी पूछ लीजे
झूठी मेहरबानी का किसको शौक है
अय्यासी के मारे ही बतायेंगे यह सब
ना मुराद जवानी का किसको शौक है
छिपी नही बुजुर्गों से यह बात बेचैन
आग और पानी का किसको शौक है
वरना खारे पानी का किसको शौक है
वो तो व्यापार में शर्त होती है वरना
अक्सर बेईमानी का किसको शौक है
बात मेरी नही किसी से भी पूछ लीजे
झूठी मेहरबानी का किसको शौक है
अय्यासी के मारे ही बतायेंगे यह सब
ना मुराद जवानी का किसको शौक है
छिपी नही बुजुर्गों से यह बात बेचैन
आग और पानी का किसको शौक है
भीड़ के कंधे चढ़ इन्कलाब कोई मत देखना
मरने से पहले माँ मुझे समझा कर गई थी
रिश्तेदारों के भरोसे ख्वाब कोई मत देखना
करना हो कभी जो, अपने बूते पर ही करना
भीड़ के कंधे चढ़ इन्कलाब कोई मत देखना
आँखों में ही नही दिल भी दिक्कत में होगा
एकटक कभी भी आफताब कोई मत देखना
वो शादीशुदा है बडेपन का भ्रम ना रखेगा
कभी छोटे भाई से हिसाब कोई मत देखना
अच्छी आदतें देखेगा तो सुख पायेगा बेचैन
दोस्तों की अदा कभी खराब कोई मत देखना
रिश्तेदारों के भरोसे ख्वाब कोई मत देखना
करना हो कभी जो, अपने बूते पर ही करना
भीड़ के कंधे चढ़ इन्कलाब कोई मत देखना
आँखों में ही नही दिल भी दिक्कत में होगा
एकटक कभी भी आफताब कोई मत देखना
वो शादीशुदा है बडेपन का भ्रम ना रखेगा
कभी छोटे भाई से हिसाब कोई मत देखना
अच्छी आदतें देखेगा तो सुख पायेगा बेचैन
दोस्तों की अदा कभी खराब कोई मत देखना
Wednesday, 9 November 2011
रोजाना माँ के पैरों में सर झुका लेता हूँ
बचूंगा तो नही फिर भी आजमा लेता हूँ
सितमगर के नाम पर ज़हर खा लेता हूँ
जब भी आया है कोई ख़ास चेहरा सामने
एक बारगी देखकर आँखे झुका लेता हूँ
यारों की महोब्बत का कमाल है वरना
मैं तो नही मानता मैं अच्छा गा लेता हूँ
यूं करता हूँ इबादत की रस्म अदायगी
रोजाना माँ के पैरों में सर झुका लेता हूँ
नही मालूम कब बनती है अच्छी गजल
मैं कलम तो बेचैन रोजाना चला लेता हूँ
सितमगर के नाम पर ज़हर खा लेता हूँ
जब भी आया है कोई ख़ास चेहरा सामने
एक बारगी देखकर आँखे झुका लेता हूँ
यारों की महोब्बत का कमाल है वरना
मैं तो नही मानता मैं अच्छा गा लेता हूँ
यूं करता हूँ इबादत की रस्म अदायगी
रोजाना माँ के पैरों में सर झुका लेता हूँ
नही मालूम कब बनती है अच्छी गजल
मैं कलम तो बेचैन रोजाना चला लेता हूँ
अब नही निकलते चिरागों से जिन्न
माँ और गरीबी को जिसने भुलाया है
बुलंदी से वो शख्स जमीं पर आया है
खूब खाता है रिश्तेदारों से गालियाँ
औकात को जिसने कच्चा चबाया है
निखरी है और भी उसकी कामयाबी
बुजुर्गों से जिसने आशीर्वाद पाया है
वक्त के इंतिहान में मार गया बाज़ी
नसीब को जिसने आइना दिखाया है
अब नही निकलते चिरागों से जिन्न
जो जान गया उसने कमाकर खाया है
वो संस्कारों को पटरी से उतरें है बेचैन
औलाद को जिसने सर पर चढ़ाया है
बुलंदी से वो शख्स जमीं पर आया है
खूब खाता है रिश्तेदारों से गालियाँ
औकात को जिसने कच्चा चबाया है
निखरी है और भी उसकी कामयाबी
बुजुर्गों से जिसने आशीर्वाद पाया है
वक्त के इंतिहान में मार गया बाज़ी
नसीब को जिसने आइना दिखाया है
अब नही निकलते चिरागों से जिन्न
जो जान गया उसने कमाकर खाया है
वो संस्कारों को पटरी से उतरें है बेचैन
औलाद को जिसने सर पर चढ़ाया है
Monday, 7 November 2011
पीके होश वालो की चुगली खाता हूँ
अक्सर नशे का मजा यूं उठाता हूँ
पीके होश वालो की चुगली खाता हूँ
कर देता हूँ खाली एक घूँट में जाम
चुश्कियों के झंझट से जी चुराता हूँ
काम तो करना है जिंदगी भर दोस्तों
छुटी के दिन सिर्फ आराम फरमाता हूँ
बहुत से लोगों का मैं दुश्मन हूँ मगर
नही जानता मैं किस किसको भाता हूँ
सीने में इक दर्द सा महसूस करता हूँ
जब कभी तुम्हारी यादों से टकराता हूँ
मौत से टकराने का हौशला है तो मगर
अपने आप से यारों मैं बेहद घबराता हूँ
ब्याज तक डकारता हूँ व्यपार में मगर
झूठी कसम मैं बेचैन कभी नही खाता हूँ
पीके होश वालो की चुगली खाता हूँ
कर देता हूँ खाली एक घूँट में जाम
चुश्कियों के झंझट से जी चुराता हूँ
काम तो करना है जिंदगी भर दोस्तों
छुटी के दिन सिर्फ आराम फरमाता हूँ
बहुत से लोगों का मैं दुश्मन हूँ मगर
नही जानता मैं किस किसको भाता हूँ
सीने में इक दर्द सा महसूस करता हूँ
जब कभी तुम्हारी यादों से टकराता हूँ
मौत से टकराने का हौशला है तो मगर
अपने आप से यारों मैं बेहद घबराता हूँ
ब्याज तक डकारता हूँ व्यपार में मगर
झूठी कसम मैं बेचैन कभी नही खाता हूँ
Sunday, 6 November 2011
मजदूर का बेटा बेरोज़गार निकला
वो उम्मीद की हदों से पार निकला
मेरे रकीबों का पक्का यार निकला
देता रहा दिलासे पर दिलासा मुझे
वो बहानेबाजों का सरदार निकला
खबरें सम्पादक के दिल से गुजरी
जब भी छप कर अखबार निकला
दर्द आंसू और बेबसी का जानकार
आदमी नही एक कलाकार निकला
गरीबी के कंधे चढ़कर पढने पर भी
मजदूर का बेटा बेरोज़गार निकला
मुझे देखे बिना बेचैन होने वाले का
अहसास ही बाद में व्यपार निकला
मेरे रकीबों का पक्का यार निकला
देता रहा दिलासे पर दिलासा मुझे
वो बहानेबाजों का सरदार निकला
खबरें सम्पादक के दिल से गुजरी
जब भी छप कर अखबार निकला
दर्द आंसू और बेबसी का जानकार
आदमी नही एक कलाकार निकला
गरीबी के कंधे चढ़कर पढने पर भी
मजदूर का बेटा बेरोज़गार निकला
मुझे देखे बिना बेचैन होने वाले का
अहसास ही बाद में व्यपार निकला
Saturday, 5 November 2011
वो दौलत के इलावा कुछ कमाता नही है
औकात भूलकर भी वो शरमाता नही है
अजब शख्स है वजूद से घबराता नही है
खा खाकर झूठी कसमें सेहत बना गया
रोटी पे कमबख्त कभी ललचाता नही है
मिलते ही बताता है ख्यालात बड़े- बड़े
गरीबी के दिनों का जिक्र उठाता नही है
खबरों में उसने होने का यूं जिक्र किया
जैसे अखबार मेरे घर कभी आता नही है
अब समझा उसके व्यवहार की कंगाली
वो दौलत के इलावा कुछ कमाता नही है
वो तो पिछली सदी की शुरुआत थी यारों
आजकल अच्छे इन्सां खुदा बनाता नही है
सब तदबीर-ओ-तकदीर का खेल है बेचैन
जगत में कोई किसी का भी विधाता नही है
अजब शख्स है वजूद से घबराता नही है
खा खाकर झूठी कसमें सेहत बना गया
रोटी पे कमबख्त कभी ललचाता नही है
मिलते ही बताता है ख्यालात बड़े- बड़े
गरीबी के दिनों का जिक्र उठाता नही है
खबरों में उसने होने का यूं जिक्र किया
जैसे अखबार मेरे घर कभी आता नही है
अब समझा उसके व्यवहार की कंगाली
वो दौलत के इलावा कुछ कमाता नही है
वो तो पिछली सदी की शुरुआत थी यारों
आजकल अच्छे इन्सां खुदा बनाता नही है
सब तदबीर-ओ-तकदीर का खेल है बेचैन
जगत में कोई किसी का भी विधाता नही है
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