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Tuesday, 30 August 2011

गरूर-ए-हुश्न भी टूटे और वो मेरे भी हो जाएँ



वो कर ले इकरार तो दुगना हो ईद का मज़ा
समझे मेरा प्यार तो दुगना हो ईद का मज़ा
गमे-बेरुखी का मारा हूँ एक मुदत से दोस्तों
वो हंस दे एक बार तो दुगना हो  ईद का मज़ा
महबूब की इक ना से क्या बीतती है दिल पर
वो करें सोच विचार तो दुगना हो ईद का मज़ा
गरूर-ए-हुश्न भी टूटे और वो मेरे भी हो जाएँ
मगर ना हो शर्मसार तो दुगना हो ईद का मज़ा
कौम-ओ-मजहब को दफन करके सब बेचैन
मनाएं हम त्यौहार तो दुगना हो  ईद का मज़ा