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Thursday, 29 November 2012

कांप उठता हूँ तेरा जब भी नाम लेता हूँ

कांप उठता हूँ तेरा जब भी नाम लेता हूँ
मुहं को आते हुवे कलेजे को थाम लेता हूँ

हाँ इस तरह मैंने नशीली हयात कर डाली
कभी अश्को के तो कभी मय के जाम लेता हूँ

तू मेरे खुदा इश्क का था और रहेगा सदा
इसलिए नाम तेरा सुबह-ओ-शाम लेता हूँ

मन की हालत चेहरे पर उभर ही जाती है
कहने को तो मैं समझदारी से काम लेता हूँ

अपने बेचैन के खातिर तू लौटकर आजा
लो मैं अपने सर सारे ही इल्जाम लेता हूँ