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Wednesday, 26 October 2011

जानता हूँ दीवाने और क्या करते है

जानता हूँ दीवाने और क्या करते है
महबूब की यादों का नशा करते है

किसी भी बहाने सज़ा मिलती ह
महोब्बत में जो लोग दगा करते है
मंदिरों में जाकर माथा रगड़ने वाले
वजूद की पत्थरों से चुगलियाँ करते है
जंग के साये कम से कम सयाने लोग
अमन और सलामती की दुआ करते है
ता-उम्र दुःख पाते हैं बेचैन वो लोग
हर किसी पर जो भरोसा करते है

बेशक रहे ख्वाब अधूरे रात मगर ये रात रहे

दिल में किसी यारी का शोर ना हो तो अच्छा है
करम दोस्तों के अब और ना हो तो अच्छा है
ना सजे महफ़िलें और ना कही मैं शेर कहू
झूठी वाह-सुनने का दौर ना हो तो अच्छा है
झूठी है तो झूठ रहे होठों की मुस्कान मगर
धडकनों पे किसी का गौर ना हो तो अच्छा है
बेशक रहे ख्वाब अधूरे रात मगर ये रात रहे
शबनम की कातिल भोर ना हो तो अच्छा है

देखा है परख कर  बेचैन , गैर-गैर ही निकले
अब दिल का कोई चितचोर ना हो तो अच्छा है