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Wednesday, 9 November 2011

अब नही निकलते चिरागों से जिन्न

 माँ और गरीबी को जिसने भुलाया है
बुलंदी से वो शख्स जमीं पर आया है

खूब खाता है रिश्तेदारों से गालियाँ
औकात को जिसने कच्चा चबाया है

निखरी है और भी उसकी कामयाबी
बुजुर्गों से जिसने आशीर्वाद पाया है

वक्त के इंतिहान में मार गया बाज़ी
नसीब को जिसने आइना दिखाया है

अब नही निकलते चिरागों से जिन्न
जो जान गया उसने कमाकर खाया है

वो संस्कारों को पटरी से उतरें है बेचैन
औलाद को जिसने सर पर चढ़ाया है



1 comment:

satish sharma 'yashomad' said...

बहूत सुंदर और सटीक लिखा है ...!!