वो दोस्ती से पहले मुखबरी करता है
तब जाकर अपना शक बरी करता है
करके चिकनी चुपड़ी बातें कमबख्त
मौका मिलते ही वो जादूगरी करता है
हर कदम हर रिश्ते से फरेब मिला है
वो इसलिए बात खोटी-खरी करता हैं
माँ का दर्दे दिल महसूस नही है जिसे
बेटा फिर बेकार ही अफसरी करता है
वो उतना ही शातिर निकलेगा बेचैन
जो जितनी जुबान रसभरी करता है
तब जाकर अपना शक बरी करता है
करके चिकनी चुपड़ी बातें कमबख्त
मौका मिलते ही वो जादूगरी करता है
हर कदम हर रिश्ते से फरेब मिला है
वो इसलिए बात खोटी-खरी करता हैं
माँ का दर्दे दिल महसूस नही है जिसे
बेटा फिर बेकार ही अफसरी करता है
वो उतना ही शातिर निकलेगा बेचैन
जो जितनी जुबान रसभरी करता है
1 comment:
Wahhhhhh kya khoob likha h....
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