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Thursday, 8 September 2011
पढ़े लिखे बेकारों से कहाँ गजल होती है
तेरे इश्क ने बनाया मुझे काम का वरना
पढ़े लिखे बेकारों से कहाँ गजल होती है
तेरी जुदाई ने दी है रंगत मेरे हुनर को
लिखता हूँ जब-जब आँखें सजल होती है
छेड़खानी करने लगता है दिमाग से दिल
इसलिए जवानी में कम ही अक्ल होती है
संस्कारों से लबरेज़ हो सारी ही औलादें
कितनों के नसीब में ऐसी फसल होती है
किसी का भी काम देख लो नजर भर के
झूमती है रूह जब मेहनत सफल होती है
खूबसूरत महबूब और वफा की बात यारों
सुनकर मन में अजीब सी हलचल होती है
बेचैन हूँ मालूम हुआ है यह राज़ जब से
कलियाँ तो गुलशन में रोज़ कत्ल होती है
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