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Wednesday, 23 November 2011

मेरे हिस्से की मुझको खैरात याद आई

तेरे लबों को देखकर इक बात याद आई
गुलाब को भी अपनी औकात याद आई

सरे बज्म खिलखिलाकर तुम क्या हंसे
मुझको चांदनी की वो बरसात याद आई

मैं यूं इतराया अपनी खुशनसीबी पर
कॉलेज के दिनों की मुलाक़ात याद आई

अनजाने में जब मिलाया उसने हाथ
मेरे हिस्से की मुझको खैरात याद आई

अपनी तरह बेचैन जब देखा इक यार
हमें महोब्बत में मिली वो मात याद आई

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