वो दूर है इसलिए तो याद आता है अक्सर
होते एक ही शहर में तो बेकरारी ना होती
जीऊंगा जब तक ना मिट सकेगा ये धोखा
काश कुछेक लोगों से रिश्तेदारी ना होती
मिल ही जाता हाथों हाथ मेहनत का फल
गर मुझसे मेरे नसीब की पर्देदारी ना होती
ख़ाक खूब पीते है वो लोग जमाने में
सर पर जिसके किसी की उधारी ना होती
आ ही जाती समझ में अगर बात संतों की
फिर दुनिया में बेचैन मारा मारी ना होती
No comments:
Post a Comment