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Saturday, 10 December 2011

मेरी बुढ़ी भी पठा कहती है



"आज तुमको गुलाब देता है "
 इक महकता ख्वाब देता हूँ

लो देख लो अपना चेहरा
मैं आँखे पुर आब देता हूँ

मुझे हिज्र कहते वस्ल धारी
जब हालत इज़्तिराब देता हूँ

हंसी है जब मुझे देख तन्हाई
बदले में उसको शराब देता हूँ

ना बुरा मानिएगा आदत का
मैं तो यूं ही जवाब देता हूँ

मेरी बुढ़ी भी पठा कहती है
जब बालों में हिजाब देता हूँ

बेचैन समझ माफ़ कर देना
गर मैं गजले खराब देता हूँ

वो भी शादीशुदा निकली मेरे भी दो साले है

खुदा जाने क्या होगा बड़े गडबड घोटाले है
वो भी शादीशुदा निकली मेरे भी दो साले है

उम्र के इस दोराहे पर ख़ाक इकरार कर ले हम
ज़िम्मेदारी के दोनों ने गले में पट्टे डाले है

गिरे है सर के बल यारों अब तक तो वो लोग
बुढ़ापे में आशिकी के जिसने भी पर निकाले है

ज़ुल्फ़ को रंग देने से रंगने से कभी उम्र नही घटती
अलग महफ़िल में दीखते है जिनके बाल काले है

बुरा मत मानना मेरे महबूब मेरे दोस्त
आज हम जैसो के कारण दोस्ती में उजाले है

कही भी दिल लगा लूं मैं झट से टांग अदा देंगे
एक बीवी और दो बच्चे मेरे ऐसे घरवाले है

उन्हें बेचैन मत करना जो मुझको चाहते है मौला
बड़ी मुश्किल से यारों ने एक दो यार सम्भाले है