जब पहुँच गये है जिंदगी के खम तक
अब तो लड़ेंगे यारों आखरी दम तक
अपनी मौत को तो मौत आने से रही
आजमाकर तो देखे खुद को भ्रम तक
क्या बिगाड़ लेगी दुश्मन की तरकीब
कोई वार ही जब ना पहुंचेगा हम तक
मिटा देगी आदम ज़ात को मजहबी जंग
मत नफरत बिछाईएगा दैरो हरम तक
यूं ही नही खुल जाते जन्नत के दरवाजे
खुदा नापकर देखते है बेचैन करम तक
No comments:
Post a Comment