पागल था जनूनी था ना जाने क्या था
वो शख्स दीवानगी की तस्वीरे निहा था
महफ़िल में उसे देखकर हंस रहे थे सभी
लेकिन मैं उसके दर्द के रूबरू बैठा था
हैरान हुआ आशिक का रोना देख कर
आंसुओ में उसके महबूब का चेहरा था
तुम तो उसकी महफ़िल में सारी रात थे
बता तो सही जिक्र मेरा कैसे चला था
दौरे अलम में जिसने साथ दिया बेचैन
वो शख्स मेरी नजर में एक मसीहा था
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