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Thursday, 19 April 2012

मेरे ख्वाबो की परवाज हो तुम


मेरे ख्वाबो की परवाज हो तुम
जिंदगी किसलिए नाराज हो तुम

गुज़रा वक्त तो मुझे भी याद नही
मगर मेरा कल और आज हो तुम

मैं बेशक शाहशाह नही हूँ मगर
याद रखना मेरी मुमताज़ हो तुम

बिन तेरे मर जाऊंगा तडफ कर
मेरे दर्दे दिल का इलाज़ हो तुम

पाप मन का तेरे आगे रख दिया
मेरी उम्र भर का हमराज हो तुम

इक तेरे ही तो दम पर गूंज है
मेरी जुबां मेरी आवाज़ हो तुम

नही है कोई तुझ जैसा जहाँ में
बेचैन कर दे वो अंदाज़ हो तुम

1 comment:

दिगम्बर नासवा said...

बिन तेरे मर जाऊंगा तडफ कर
मेरे दर्दे दिल का इलाज़ हो तुम ...

बहुत खूब ... लाजवाब शेर है ... दर्द देने वाला ही इलाज भी होता है ... पूरी गज़ल मस्त है ...