हमेशा बाज़ बनकर ज़हन को दबोचा तुमने
बता किस रोज मेरे बारे में सोचा तुमने
खुद ही चुप हुआ हूँ हर बार सुबकिया लेकर
अफ़सोस मेरे आंसुओ को ना पोंछा तुमने
भरने लगे जब भी मेरी उदासियों के जख्म
जानबूझ कर अक्सर उनको खरोचा तुमने
लहू से सना हुआ दिल दिया था मैंने तुझको
मांस का टुकड़ा समझ चील सा नोचा तुमने
ये सिला मिला मुझको चाहत का बेचैन
मेरी दीवानगी को बता दिया ओछा तुमने
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