उभरे है तेरे रुख पर किस नादानी के मुहांसे
मच्छरों ने काट खाया या है जवानी के मुहांसे
चेहरा मन का आइना है क्या क्या छिपाओगे
छोड़ते है निशान अक्सर कारस्तानी के मुहांसे
हाँ रखते है लेखा जोखा हर अच्छे और बुरे का
खोलते है पोल चिल्लाकर प्रेम कहानी के मुहांसे
बस यही तो चाहता है दुनिया का हरेक दीवाना
मिट जाये जड़ से पल में मेरी रानी के मुहांसे
छिपा नही पता है उसे अच्छे से अच्छा मैकअप
अलग दिख जाते है बेचैन परेशानी के मुहांसे
No comments:
Post a Comment