कुछ लोगों को है मुफ्त में सलाह जारी
वो कमीनापन छोड़ दे या रिश्तेदारी
अपनेपन की जिसमे बू तक भी नही हो
हम किसलिए करें उनकी खातिरदारी
सिक्के के पहलू ही देखे है बचपन से
खूब समझ आती है मुझे दुनियादारी
थपेड़े वक्त के खाए तो कुछ ज्ञान हुआ
नही धूप में सफेद हुई जुल्फें हमारी
कौन पूछता था मूंग मसूर की दाल
वक्त की हुई बेचैन ऐसी तैसी सारी
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