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Thursday, 23 August 2012

साला रोयेगा तो लोग कह देंगे भीगा हुआ है

वो बरसात के मौसम में ये सोचकर छोड़ गया
साला रोयेगा तो लोग कह देंगे भीगा हुआ है

हुश्न वालो की हुश्यारी देखकर सोचता हूँ
हरेक दांवपेच माँ के पेट से सीखा हुआ है

इतना भी रंज ना करो किसी की बेवफाई का
आपके साथ वो हुआ जो नसीब में लिखा हुआ है

महोब्बत, रिश्ते, व्यपार सब मुखोटाधारी है
आज अपने ईमान पर बता कौन टिका हुआ है

महबूब क्यूं करेगा फ़िक्र तुझ मुफलिस की बेचैन
वो ऐसो-आराम के हाथों में बिका हुआ है

Monday, 20 August 2012

खुदा जाने किस हाल में चाँद मेरा

मजबूरियों के जाल में है चाँद मेरा
खुदा जाने किस हाल में चाँद मेरा

ईद का मौका है मैं खुश तो हूँ मगर
अनसुलझे सवाल में है चाँद मेरा

तभी अपना दीदार नही करवाया
शायद मलाल में है में चाँद मेरा

जीते जी नही टूटेगा यह भ्रम
मेरे इस्तकबाल में है चाँद मेरा

परियो का जिक्र है जहाँ भी बेचैन
हरेक उस मिसाल में है चाँद मेरा

हमें तो अपनों ने गुलाम बनाया हुआ है

व्यवस्थाओ को पसीना आया हुआ है
इसलिए तो आदमी घबराया हुआ है

प्रशासन के चेहरे से साफ़ झलकता है
बुरी तरह से खादी का सताया हुआ है

होते अंग्रेज तो फिर भगा देते देशभग्त
हमें तो अपनों ने गुलाम बनाया हुआ है

किरदार नेताओ का छिपा नही किसी से
कितना टुच्चापन इनमे समाया हुआ है

अहिंसा का ढोल पीटने वालो शर्म करो
गाँधी का फूल देश में कुम्हलाया हुआ है

सुविधाओ ने मेहनत को मारा है जब से
अय्यासी ने जमीर बेचकर खाया हुआ है

यह कैसी शर्मिंदगी है माथे पर  बेचैन
जिसे भी देखो वही शख्स पछताया हुआ है


Monday, 13 August 2012

इश्क आदमी को दुनियादारी सिखाता है

वो दर्द बनकर ज़हन में जब उतर जाता है
शेर कहने का ढंग मुझे तभी तो आता है

कोई यकीं नही करेगा मगर सच कहता हूँ
वो तस्वीर से निकलकर अक्सर बतियाता है

कोई पागलपन कहे तो सौ बार कहे मगर
उसके ख्यालो को दिल ओढ़ता बिछाता है

रति भर भी झूठ नही इस जुमले में दोस्तों
इश्क आदमी को दुनियादारी सिखाता है

ईद होली दीपावली जैसी ख़ुशी मिलती है
मेरी सेहत की वो जब भी फ़िक्र उठाता है

खुल जाते है जख्मो के सब टांके बेचैन
वो जरा सी भी जब नाराजगी जताता है

Sunday, 12 August 2012

मुझे फरेब के दांवपेंच चलाने नही आते

मुझे चेहरे पर मुखौटे लगाने नही आते
शायद इसीलिए रिश्ते निभाने नही आते

मैं तो संजीदगी में लेता हूँ जीने का मज़ा
मुझे मस्ती के चोंचले अपनाने नही आते

बताओ कैसे पोत लूं झूठ से ज़हन अपना
मुझे फरेब के दांवपेंच चलाने नही आते

वो और ही होंगे जो थूक कर चाट लेते है
मुझको वायदे अपने झूठलाने नही आते

उसको लेकर देता हूँ रोज नया इंतिहान
ये नही की लोग मुझे उकसाने नही आते

उसका इसलिए नही मानता बुरा मैं कभी
दुखो की सौगात देने बेगाने नही आते

जब से मालूम हुआ इनमे खुदा बसता है
बच्चे मुझको बेचैन धमकाने नही आते

Saturday, 11 August 2012

सीने से लगाकर कमबख्त किताब रखता है

हुश्न अपनी अदाओ का कब हिसाब रखता है
ये मुनीमी आशिक का दिले-बेताब रखता है

अब कौन समझाए इस खूबसूरत बला को
पड़ोसी भी उसे पाने का ख्वाब रखता है

वो रफ्तार धडकनों की थामने के बहाने
सीने से लगाकर कमबख्त किताब रखता है

उसे देख हो ना जाये कही ट्रेफिक जाम
इसलिए चेहरे पर ढककर हिजाब रखता है

वो पीयेगा इन आँखों से पटियाला पैग
जो रगों में अपने मस्ती-ए-पंजाब रखता है

उसके बदन की महक कही कर न दे हंगामा
इसलिए जुल्फों पर लगाकर गुलाब रखता है

हो सके तो अपना बहम दफना दे बेचैन
कौन किसके लिए आँखे पुरआब रखता है

Friday, 10 August 2012

उनसे की उम्मीदे सारी समेटता चलूँ

आह,तडफ और बेकरारी समेटता चलूँ
उनसे की उम्मीदे सारी समेटता चलूँ

आज के बाद शायद हो इस राह से गुजर
सफर की हर एक यादगारी समेटता चलूँ

बहुत करवा चुका खराब मिटटी जज्बात की 
गिले-शिकवो की रेजगारी समेटता चलूँ

आने वाली पीढ़ियों को ना लगे ये रोग
मैं क्यूं ना इश्क की बिमारी समेटता चलूँ

जोडकर प्यार की नकदी का हिसाब बेचैन
कसमें-वादों की उधारी समेटता चलूँ

Wednesday, 8 August 2012

धन्यावाद, मुझको कब्र तक छोड़कर जाने वालो

मैं ही जानता हूँ कितना खारा है यह पानी
शराबी -शराबी कहकर मुझे सताने वालो

मयकशी अचूक दवा होती है दर्दे जिगर की
सम्भलो,डाक्टरों से खुद को लुटवाने वालो

आगे का सफर अकेला ही तय कर लूँगा मैं
धन्यावाद, मुझको कब्र तक छोड़कर जाने वालो

तुम उसके भी तो कान खींचों जाकर किसी दिन
महोब्बत में मुझको ही सही गलत समझाने वालो

अब तो देख कर मुझे उड़ा लो कितनी ही हंसी
कभी होश में आया तो पूछूंगा जमाने वालो

किसी और का गुस्सा बोतल पर उतरा करेगा
अब तुम्हारी खैर नही है मयखाने वालो

गलतफहमी के शिकार हो जाओगे बेचैन
महबूब से हर बात का जिक्र उठाने वालो

Friday, 3 August 2012

ना मालूम था यूं गुज़ेगी हमपे अब की साल यारों

इश्क ने हमसे सब कुछ लूटा कर डाले कंगाल यारों
ना मालूम था यूं गुज़ेगी हमपे अब की साल यारों

आँख में आंसू आहें लबों पर दिल में धुंआ सा उठता है
बेबस है बस जीने को और मरना हुआ है मुहाल यारो

ख्वाब दिखाए थे जो उसने सबके सब वो फर्जी थे
रोज पशेमा करते है अब मुझको मेरे ख्याल यारो

जो पाक महोल्ब्ब्त करते है वो खून के आंसू रोते है
कोई नही करता है उनकी आज के दिन सम्भाल यारो

चैन गंवाकर ही सीखा है हमने महोब्बत में बेचैन
अच्छी सूरत वाले ही तो बनते है जी का जंजाल यारो

Wednesday, 1 August 2012

वो बहन मुझे राखी बांधे जिनका भाई नही है

 अभी रिश्तो में इतनी गिरावट आई नही है
वो बहन मुझे राखी बांधे जिनका भाई नही है

किसी की आँखों में देखू रक्षा बंधन पर आंसू
कम से कम मेरा ज़हन इतना तमाशाई नही है

हमारी ही कमी से है आज टोटा लडकियों का
इसमें कुदरत की कही से भी अगुआई नही है

सदा याद रखना बेटे की चाहत रखने वालों
बिना बेटी के मुक्ति देवो ने भी पाई नही है

महबूबा को परी कहने वालो सच सच बताओ
क्या बहन में बेचैन खूबसूरती समाई नही है