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Wednesday, 8 August 2012

धन्यावाद, मुझको कब्र तक छोड़कर जाने वालो

मैं ही जानता हूँ कितना खारा है यह पानी
शराबी -शराबी कहकर मुझे सताने वालो

मयकशी अचूक दवा होती है दर्दे जिगर की
सम्भलो,डाक्टरों से खुद को लुटवाने वालो

आगे का सफर अकेला ही तय कर लूँगा मैं
धन्यावाद, मुझको कब्र तक छोड़कर जाने वालो

तुम उसके भी तो कान खींचों जाकर किसी दिन
महोब्बत में मुझको ही सही गलत समझाने वालो

अब तो देख कर मुझे उड़ा लो कितनी ही हंसी
कभी होश में आया तो पूछूंगा जमाने वालो

किसी और का गुस्सा बोतल पर उतरा करेगा
अब तुम्हारी खैर नही है मयखाने वालो

गलतफहमी के शिकार हो जाओगे बेचैन
महबूब से हर बात का जिक्र उठाने वालो

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