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Monday, 13 August 2012

इश्क आदमी को दुनियादारी सिखाता है

वो दर्द बनकर ज़हन में जब उतर जाता है
शेर कहने का ढंग मुझे तभी तो आता है

कोई यकीं नही करेगा मगर सच कहता हूँ
वो तस्वीर से निकलकर अक्सर बतियाता है

कोई पागलपन कहे तो सौ बार कहे मगर
उसके ख्यालो को दिल ओढ़ता बिछाता है

रति भर भी झूठ नही इस जुमले में दोस्तों
इश्क आदमी को दुनियादारी सिखाता है

ईद होली दीपावली जैसी ख़ुशी मिलती है
मेरी सेहत की वो जब भी फ़िक्र उठाता है

खुल जाते है जख्मो के सब टांके बेचैन
वो जरा सी भी जब नाराजगी जताता है

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