Friends

Saturday, 8 September 2012

अल्लाह मेरी जानम को गुलफाम कर दो

मैंने कब कहा चाहत अपनी आम कर दो
ये रूतबा-ओ-आबरू मेरे नाम कर दो

तुम्हारी सोच ही तुम्हारी दुश्मन बनी है
बस ढंग से तुम इसका एहतराम कर दो

मैं दिल में नही तो दिमाग में तो रहूँगा
बस अपनी नफरत का मुझको गुलाम कर दो

तेरे घर आगे से हो रही गुजर आखरी
तुम अब तो मुझे आखरी इक सलाम कर दो

मेरे दामन में भर दो चाहे तमाम खार
अल्लाह मेरी जानम को गुलफाम कर दो

मिल जाये उसे शायद शकून-ए-दौलत
बेचैन मुझे वक्त के हाथो नीलाम कर दो


No comments: