मैंने कब कहा चाहत अपनी आम कर दो
ये रूतबा-ओ-आबरू मेरे नाम कर दो
तुम्हारी सोच ही तुम्हारी दुश्मन बनी है
बस ढंग से तुम इसका एहतराम कर दो
मैं दिल में नही तो दिमाग में तो रहूँगा
बस अपनी नफरत का मुझको गुलाम कर दो
तेरे घर आगे से हो रही गुजर आखरी
तुम अब तो मुझे आखरी इक सलाम कर दो
मेरे दामन में भर दो चाहे तमाम खार
अल्लाह मेरी जानम को गुलफाम कर दो
मिल जाये उसे शायद शकून-ए-दौलत
बेचैन मुझे वक्त के हाथो नीलाम कर दो
ये रूतबा-ओ-आबरू मेरे नाम कर दो
तुम्हारी सोच ही तुम्हारी दुश्मन बनी है
बस ढंग से तुम इसका एहतराम कर दो
मैं दिल में नही तो दिमाग में तो रहूँगा
बस अपनी नफरत का मुझको गुलाम कर दो
तेरे घर आगे से हो रही गुजर आखरी
तुम अब तो मुझे आखरी इक सलाम कर दो
मेरे दामन में भर दो चाहे तमाम खार
अल्लाह मेरी जानम को गुलफाम कर दो
मिल जाये उसे शायद शकून-ए-दौलत
बेचैन मुझे वक्त के हाथो नीलाम कर दो
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