जब जिस्म का कोई हिस्सा खराब हो जाता है
क्या काट फेंकने से इलाज़ हो जाता है
है मुफलिसी ही ऐसी कुत्ती चीज़ जिसमे
सच्चा आदमी भी दगाबाज़ हो जाता है
हो मसला दिल का या फिर घरबार का यारों
चुप्पी साधने से लाइलाज हो जाता है
अश्को को उँगलियों पर रखके देखता है
हंसी का जब कोई मोहताज़ हो जाता है
बेचैन बुरा दिल से कभी नही चाहेगा
महबूब पर जिसे भी नाज़ हो जाता है
क्या काट फेंकने से इलाज़ हो जाता है
है मुफलिसी ही ऐसी कुत्ती चीज़ जिसमे
सच्चा आदमी भी दगाबाज़ हो जाता है
हो मसला दिल का या फिर घरबार का यारों
चुप्पी साधने से लाइलाज हो जाता है
अश्को को उँगलियों पर रखके देखता है
हंसी का जब कोई मोहताज़ हो जाता है
बेचैन बुरा दिल से कभी नही चाहेगा
महबूब पर जिसे भी नाज़ हो जाता है
1 comment:
वहा वहा क्या बात है
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प्रेमविरह
एक स्वतंत्र स्त्री बनने मैं इतनी देर क्यूँ
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