मन्दिर की आरती मस्जिद की अजान हो तुम
मुझसे पूछो तो गीता और कुरआन हो तुम
इस जन्म में तो हम तुम जुदा होने से रहे
बताओ तो सही किसलिए परेशान हो तुम
बहरी हो या तुम्हारे दिमाग में खराबी है
तुझसे कितनी दफा कहू मेरी जान हो तुम
रूह सकूं पाती है तुम्हारा नाम लेने से
भला फिर क्यूं नहीं कहूं मेरा ध्यान हो तुम
मेरे जमीर ने तो तुझे खुदा मान लिया है
अब बेशक से लाख दर्जा बेईमान हो तुम
पाकर तुझको ख्वाब सजाने सीख गया हूँ
हकीकतन मेरे हौशले की उड़ान हो तुम
बता तो सही तुझको छोड़कर जाऊंगा कहाँ
मेरी धरती और बेचैन आसमान हो तुम
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