यूं गौर चेहरे की खेती बाड़ी में रखता हूँ
इसलिए नही आती मुझे सफर में दिक्कत
उसकी तस्वीर हमेशा गाडी में रखता हूँ
मालूम हुआ है जब से उसका पसंदीदा रंग
तब से बीवी को नीली साडी में रखता हूँ
यही तो सबब है मेरी सांसे महकने का
उसे छिपाकर दिल की फुलवाड़ी में रखता हूँ
बता जीते जी कैसे वो दूर होगा बेचैन
लहू सा उसे शरीर की नाडी में रखता हूँ
No comments:
Post a Comment