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Tuesday, 10 January 2012

ढाढ़ी क्या बढ़ी वो बेचारा दिखने लगा

ढाढ़ी क्या बढ़ी वो बेचारा दिखने लगा
अंधे को भी इश्क का मारा दिखने लगा

चुराने लगा आँखे हर एक बात पर जब
हरकतों में छिपा हाल सारा दिखने लगा

महबूब का साथ उसको क्या मिला यारों
कमबख्त में हर वक्त तरारा दिखने लगा

सदियों से जिसे जमाना ताज कह रहा था
गरीब आशिक को वो ईंट गारा दिखने लगा

दिखाया उसने जब दिल का छाला बेचैन
वो उसी पल से अक्स हमारा दिखने लगा



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