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Monday, 9 January 2012

भूत बनकर डराती है यादें तुम्हारी

भूत बनकर डराती है यादें तुम्हारी
अंदर ही अंदर खाती है यादें तुम्हारी

जैसे तुम गई पैर पटक कर उस रोज
ऐसे क्यूं नही जाती है यादें तुम्हारी

सर्दी-गर्मी या बरसात का मौसम हो
कभी नही मुरझाती है यादें तुम्हारी

कई दफा तुम्हारी कसम रो पड़ता हूँ
जब सिसकियाँ सुनाती है यादें तुम्हारी

चेहरे से साफ झलक जाता है बेचैन हूँ
जब बिजलियाँ गिराती है यादें तुम्हारी

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