कोई मजबूरी है तो मुझे बताता क्यूं नही
वो मेरी तरह यारी में पेश आता क्यूं नही
शक है मुझे समझकर भी नही समझा वो
समझ गया तो ढंग से समझाता क्यूं नही
दांतों तले ऊँगली दबाना तो छुट गया पीछे
मुझको देखकर अब वो शरमाता क्यूं नही
डालकर ख़ाक मेरी बरसों की दीवानगी पर
मेरी हालत पर थोडा रहम खाता क्यूं नही
टकरा ही जाते है बेचैन हर बार दुसरे लोग
हमजुबां से खुदा मुझको मिलाता क्यूं नही
3 comments:
bahut khoob ! Nirmal Kothari
♥
टकरा ही जाते है बेचैन हर बार दूसरे लोग
हमजुबां से ख़ुदा मुझको मिलाता क्यूं नही
पता नहीं हमें आप दूसरों में गिनेंगे बंधुवर वी एम बेचैन साहब या हमज़ुबां में ? … लेकिन भ्रमण करते हुए नेट ने हमें आपसे मिला दिया है …
आदाब कबूल कीजिएगा !
… और प्यारी ग़ज़ल के लिए मुबारकबाद !
बधाई और मंगलकामनाओं सहित…
- राजेन्द्र स्वर्णकार
rajendr bhai thnx
Post a Comment