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Sunday, 20 November 2011

जंगल में सीधे पेड़ पहले काटे जाते है

 जंगल में सीधे पेड़ पहले काटे जाते है
लोग शरीफजादों को इसलिए सताते है

मैंने छुपकर सुनी है अमीरों की बातचीत
वो मुफलिसों को आदमी थोड़े बताते है

तू परदेश में कमाने मत भेज तकदीर
अभी तक मेरे नौनिहाल बहुत तुतलाते है

जड़ों की मिट्टी को ठुकराकर कुछ नही बचेगा
यारों बियाबा के पेड़ रोज़ ही बतियाते है

बस होशमंदों को थोडा होश रहे बेचैन
शराबी नशे में महज़ इसलिए बुदबुदाते है

1 comment:

Shoonya Akankshi said...

आप बहुत उम्दा ग़ज़ल लिखते हैं बेचैन जी | जहाँ तक इस ग़ज़ल का सवाल है यह तो दिल को छू गयी है | आपको बहुत-बहुत बधाई |
- शून्य आकांक्षी