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Sunday, 6 November 2011

मजदूर का बेटा बेरोज़गार निकला

वो उम्मीद की हदों से पार निकला
मेरे रकीबों का पक्का यार निकला

देता रहा दिलासे पर दिलासा मुझे
वो बहानेबाजों का सरदार निकला

खबरें सम्पादक के दिल से गुजरी
जब भी छप कर अखबार निकला
दर्द आंसू और बेबसी का जानकार
आदमी नही एक कलाकार निकला

गरीबी के कंधे चढ़कर पढने पर भी
मजदूर का बेटा बेरोज़गार निकला



मुझे देखे बिना बेचैन होने वाले का
अहसास ही बाद में व्यपार निकला

2 comments:

विशाल सिंह (Vishaal Singh) said...

BHAI BAHUT KHOOB BECHAIN JI.............AAP JIS CHEEZ SE BHI BECHAIN HOTE HAIN..............LIKH DAALTE HAIN USPE !!!

V M BECHAIN said...

thnx vishal bhai thnx