रूह से चिपक जाता हैं उतरता नहीं हैं
इश्कियां भूत जीते जी मरता नहीं हैं
कितना ही पुराना हो जख्मे-महोब्बत
पूरी तरह से यह कभी भरता नहीं हैं
लफ्जों से झलक जाता हैं हाले-दिल
चेहरा आइना हैं कभी मुकरता नहीं हैं
वो आता हैं याद चाहे बुढ़ापे में आये
यादों का नश्तर रहम करता नहीं हैं
हर आँख में हैं मौत का खौफ बेचैन
किसने कहा की वो कभी डरता नही हैं
1 comment:
shandaar behchain sahab
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