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Friday, 28 October 2011

हां आज भी मैं गरीबी से प्यार करता हूँ



मुफलिसी मेरी माँ थी स्वीकार करता हूँ
हां आज भी मैं गरीबी से प्यार करता हूँ

ज्यादा बड़ा अब भी वजूद नही है मेरा
फिर भी छोटा होने का इकरार करता हूँ
औकात की बात आप न करो तो अच्छा
मैं हैसियत वालों पे कम एतबार करता हूँ
शोहरत और दौलत मेरी नौकरानी होगी
मैं मन ही मन दोस्तों इंतजार करता हूँ
लगाकर दिल काँटों से कभी कभी बेचैन
मैं फूलों को भी अक्सर शर्मसार करता हूँ

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