कई बार सोचता हूँ तुझको भुला दूं मैं
दिमाग और दिल की बत्ती बुझा दूं मैं
जिक्र तक तुम्हारे पहुंचे न मुझ तलक
यादों के काफिले को रस्ता भुला दूं मैं
तन्हाई और महफ़िल से रिश्ता तोड़कर
जहाँ के रंजो गम में खुद को घुसा दूं मैं
कर दूंगा बाद में झुक कर तुम्हे सलाम
बुजदिल नही हूँ पहले सबको बता दूं मैं
बेचैन रहना हर घड़ी छुट जायेगा शायद
आईना हाँ इक दिन खुद को दिखा दूं मैं
2 comments:
deekha diya aapne...........saduwad
apki ghazal bahut achchi hai
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